उच्च शिक्षा की दशा , दिशा और दुर्दशा


अशोक कुमार

चेयरमैन-सोशल रिसर्च फाउंडेशनकानपुर

कुलपति, निर्वाण विश्वविद्यालय, जयपुर ।

 पूर्व कुलपति श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय, निम्बाहेड़ा (राजस्थान )

 तथा

पूर्व कुलपति, कानपुर विश्वविद्यालय व गोरखपुर विश्वविद्यालय (उत्तरप्रदेश )

दुर्दशा के कुछ अंश : विगत कई वर्षों में भारतवर्ष में विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों की संख्या में वृद्धि हुई है लेकिन क्या शिक्षा संस्थानों की वृद्धि ही शिक्षा की  गुणवत्ता का संकेत है ऐसा देखा गया है की संख्या के नाम पर शिक्षा के संस्थानों की संख्या काफी ज्यादा हो गई है लेकिन उसमें विभिन्न विषयों में कक्षा के लिए विशेष तौर से जो के प्रयोगात्मक विषय हैं उनके समाधान के लिए बहुत ही कम प्रयोगशाला मे काम  में आने वाले संसाधनों की बहुत कमी है राजस्थान में मेरे बहुत से छात्र राजकीय महाविद्यालय में शिक्षक नियुक्त है मैं अक्सर उनसे उनके महाविद्यालयों की गतिविधि के बारे में पूछता रहता हूं विशेष तौर से विद्यार्थियों से उनके महाविद्यालयों में प्रयोगात्मक संसाधनों के बारे में ज्ञान प्राप्त करता हूं एक 2 वर्ष पूर्व मैंने अपने एक छात्र जो कि एक महाविद्यालय में जीव विज्ञान का शिक्षक है उससे कहा कि वह अपने छात्रों को स्नातक के छात्रों को जीव विज्ञान में कौन-कौन से प्रयोग करा रहा है वह छात्र जो अब शिक्षक है कुछ समय से मुस्कुरा रहा था मैंने उस मुस्कुराहट का कारण पूछा तब उसने यह बताया कि सर यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि महाविद्यालय को खुले हुए 3 वर्ष हो गए हैं लेकिन अभी भी जीव विज्ञान की प्रयोगशाला में कोई भी सूक्ष्मदर्शी नहीं है और कोई भी अन्य उपकरण नहीं है इसलिए मूल रूप से महाविद्यालय में जीव विज्ञान में जो भी प्रैक्टिकल होने चाहिए  वह नहीं हो पा रहे मुझे बहुत आश्चर्य हुआ और दुख भी हुआ मैंने यह पूछा कि जब साल भर में कोई प्रैक्टिकल ही नहीं हुआ तब उनकी परीक्षाएं कैसे होती है और उन परीक्षाओं में कितने अंक छात्रों को मिलते हैं वह एक बार पुनः मुस्कुराया और बोला कि सर परीक्षाओं के नाम पर परीक्षक आते हैं और छात्रों को 80 से 90% अंक दे जाते हैं यह कितनी दुखद बात है जिस महाविद्यालय में वर्ष में कोई भी प्रयोगशाला में प्रयोग न कराए गए हों लेकिन  परीक्षा में उनको 80 से 90% अंक प्राप्त हो रहे हैं आप स्वयं समझ सकते हैं कि शिक्षा का क्या स्तर होगा , विद्यार्थियों को कितना ज्ञान होगा 

ऐसे बहुत से उदाहरण आपको मिल जाएंगे और यह विशेष तौर से राज्यकीय महाविद्यालयों में शिक्षकों की कमी है और प्रयोगशाला में प्रयोग संसाधनों की कमी है विज्ञान के क्षेत्र में बिना प्रयोगशाला के संस्थानों के प्रयोग हो रहे हैं यह एक बहुत ही चिंता का विषय है 

 मैं आपको एक अपने साथी महिला शिक्षिका का एक बहुत ही चिंता वाला संस्मरण सुनाना चाहता हूं एक बार एक शिक्षिका एक कन्याओं के महाविद्यालय में जीव विज्ञान की प्रयोगिक परीक्षा लेने के लिए गई और परीक्षा लेने के लिए जब वह प्रयोगशाला में गई तो सब छात्राएं उनको खड़ी हुई मिली उन्होंने सोचा कि यह मेरे स्वागत में खड़ी हैं उन्होंने सबका स्वागत स्वीकार किया और फिर परीक्षक की कुर्सी पर बैठ गई उनको बहुत आश्चर्य हुआ की छात्राएं उनके बैठने के बाद भी खड़ी हुई थी उन्होंने बहुत आश्चर्य से उनसे कहा कि आप सब लोग अपना अपना स्थान ग्रहण कर ले और हम उसके बाद आपको परीक्षा में प्रश्न बताएंगे और आपको उनको सॉल्व करना है उनके बार बार कहने पर भी छात्राएं खड़ी रही और बैठी नहीं  थोड़ी देर बाद यह मालूम चला प्रयोगशाला में छात्रों के बैठने के लिए कोई भी सुविधा नहीं थी यह भी ज्ञात हुआ इस प्रयोगशाला में कभी भी कोई प्रायोगिक कक्षा नहीं हुई छात्राएं केवल परीक्षा के समय महाविद्यालय में आती हैं और बिना कोई भी प्रयोग करके उनको 80 से 90 पर नंबर मिल जाते थे लेकिन मेरे साथी शिक्षिका ने ऐसे महाविद्यालय में जब परीक्षा लेने से इनकार कर दिया तब महाविद्यालय की प्राचार्य बहुत ही प्रार्थना करी और कहा कि वह अभी सारी सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं और आप परीक्षा ले लीजिए थोड़ी देर बाद महाविद्यालय के बाहर कुछ सब्जी वाले , चाट वालों के पास जो बैठने की सुविधा थी छोटे-छोटे स्टूल  वह मंगाए गए हैं और छात्राओं ने परीक्षा दी यह कितने अफसोस की बात है कि आज महाविद्यालयों में इस प्रकार से शिक्षा कार्य हो रहा है आप स्वतः  ही समझ सकते हैं कि ऐसे वातावरण में छात्रों में शिक्षा की क्या गुणवत्ता होगी 

इसी प्रकार से मैंने अपने एक अन्य छात्र  को जब उसकी नियुक्ति राजस्थान के राजकीय महाविद्यालय में हुई तब  एक उपदेश दिया कि तुम मेरे छात्र रहो हो इसलिए तुम महाविद्यालय में बहुत ही मेहनत और ईमानदारी से छात्र छात्राओं को शिक्षण कार्य करना मेरे छात्र ने मुझ को आश्वासन दिया कि वह एक शिक्षक के रूप में छात्रों को पूर्ण ज्ञान देगा कुछ वर्ष बाद मेरी उससे मुलाकात फिर हुई और मैंने उससे पूछा कि तुम्हारा शिक्षण कार्य किस प्रकार से चल रहा है उसने बड़े उत्साह पूर्वक मुझे बताया की सर मैंने अपने लैपटॉप के माध्यम से छात्रों को बहुत मेहनत करके गंभीरता से पढ़ाया छात्र भी बहुत उत्सुक हुए उत्साहित हुए 1 सप्ताह के बाद मुझे महाविद्यालय के प्राचार्य ने बुलाया और मुझसे पूछा कि आप कक्षा में इतनी मेहनत क्यों करते हैं आप अन्य शिक्षकों को क्या बताना चाहते हैं क्या आप यह कहना चाहते हैं कि इस महाविद्यालय में केवल आप ही छात्रों को पढ़ाते हैं और शिक्षक लोग नहीं पढ़ाते हैं आपको  इतनी गंभीरता से छात्राओं छात्रों को पढ़ाने की आवश्यकता नहीं है आपका विशेष ध्यान छात्रों के परीक्षा के बारे में होना चाहिए और आप यह सुनिश्चित करें परीक्षा के समय में आप छात्रों की पूर्ण सहायता करेंगे और उनको परीक्षा में अच्छे श्रेणी में अंक प्राप्त होंगे और वह उच्च श्रेणी प्राप्त करेंगे मेरा छात्र बहुत आश्चर्यचकित हो गया और उसने कहा कि सर महाविद्यालय के प्राचार्य से बातचीत के बाद मुझको समझ में नहीं आया कि मुझे क्या करना चाहिए और कुछ समय बाद मेरे छात्र का स्थानांतरण दूसरे महाविद्यालय में हो गया !


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