निर्मल मन शांत चित् से अपनी ग़लतीको मान लेना ही आदर्श और यश सम्मान दिलाता है ग़रूर आपको पतन की ही तरफ़ ले जाएगा ये सनद रहे, हमारे धार्मिक ग्रंथ भी सर्वथा यही कहते चले आ रहे , हमारे आराध्य भगवान राम , भगवान कृष्ण या माता गौरी की जीवनी से हमें सीखने की ज़रूरत है, रामराज्य की शुरुआत ख़ुद के घर से ही शुरू करे, एक समृद्ध समाज ,राष्ट्र , रामराज्य निश्चित होगा।
जीवन में गलतियां किससे नहीं होती लेकिन गलती भले ही स्वयं की हो मगर हम दोषी किसी और को ही बनाना चाहते हम गिरते हैं तो पत्थर को दोष देते हैं डूबते हैं तो पानी को और यदि कुछ न कर सके तो किस्मत को दोष देने लगते हैं
किसी और कारण को दोषी कहना मात्र इतना सा है कि हममें स्वयं की गलती स्वीकार करने का साहस नहीं और इस तरह हम अपने में सुधार की समस्त संभावनाओं को ही कुचल देते हैं
खुद के जीवन में दोष होने से भी अधिक घातक है दूसरों को दोष देना क्यूंकि इससे समय का अपव्यय एवं आत्म प्रवंचना दोनों ही होते हैं
बेहतर होगा हम आत्म सुधार का प्रयत्न करें और बड़े हृदय से अपनी गलती को स्वीकारते हुए आत्म सुधार के मार्ग पर चलें क्यूंकि परमात्मा के मिलन का द्वार इसी मार्ग से होकर जाता है
आज अपने प्रभु से खुद की गलती को स्वीकार करने की दैवीय शक्ति की अलौकिक प्रार्थना के साथ रामायण सुंदरकांड में वर्णित एक चौपाई लिखना चाहूँगी.........
निर्मल मन जन सो मोहि पावा मोहि कपट छल छिद्र न भावा !!
आशय स्पष्ट वर्णित है, ईश्वर को भी निर्मल मन। वाला भाव ही प्रिय है ।
ज्योत्स्ना मिश्रा “ज्योति”
नई दिल्ली ।
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