किसी ने सत्य ही कहा है-
'अगर किसी कथा को पढ़ने के बाद पाठक को रोना आ जाए, तो लेखक की लेखनी सफल हो जाती है।'
कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ मुझे तत्सम्यक मनु द्वारा लिखित उपन्यास 'the नियोजित शिक्षक' पढ़कर। उपन्यास शीर्षक से ही मालूम हो जाता है कि प्रस्तुत उपन्यास की कथा 'शिक्षकों' के इर्दगिर्द हैं।
लेकिन कथा के भीतर जैसे-जैसे पाठक घूमते हैं, वैसे-वैसे ही कई रहस्यों के बारे में जानकारी मिलती जाती हैं कि कैसे जातीय भेदभाव होते हैं ? कैसे 'बिहार' राज्य अल्पविकसित से 'विकसित' होने की कगार पर पहुँचा हैं? कैसे वेतन न मिल पाने पर शिक्षक के पारिवारिक सदस्यों के हालात हो जाते हैं ?
उपन्यास को रोचक बनाने के लिए लेखक ने प्रेम पाठ भी गढ़ा है, जो वास्तविक जीवन की सजीवता को दर्शाती है ! वहीं उपन्यास के कुछ पेजेज इतने शोधपरक है कि शोधकर्त्ता भी ऐसी बातों को पढ़ अचंभित हो जाए यानि उपन्यास शिक्षकों के सच को उजागर करती हैं तथा साहित्य में नई विचारधारा को आगे बढ़ाती हैं।
शुभम कुमार
राजस्थान
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