सम्राट अशोक के महानता पर उंगली उठाना भारत की महानता पर प्रश्न चिन्ह लगाना है... गौतम

 


दुनिया में भारत की पहचान विविधता में एकता का है।सदियों से भारत अपनी विविधता के लिए जाना जाता है।यहां हर किसी को अपने बातें कहने का अधिकार प्राप्त है,पर इसका कतई मतलब नहीं कि आप अपनी बात कहने के अधिकार का दुरुपयोग करने लगें!भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ,अशोक चक्र देने वाले चक्रवर्ती सम्राट अशोक पर आप कीचड़ उछालने लगें।भारत क्या या दुनिया के किसी भी कोने से मिला हुआ कोई भी सम्मान पत्र आपको यह अधिकार नहीं देता कि आपके जी में जो आएगा वह बोलेंगे,चाहे सत्यता बिल्कुल इसके उलट ही क्यों न हो।इस तरह की बातें अगर पदम श्री और  साहित्य अकादमी जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त व्यक्ति के द्वारा की जाए तो वह देश के लिए दुर्भाग्य से कम नहीं है। पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने बिल्कुल सही कहा है "प्रियदर्शी सम्राट अशोक महान का अपमान संपूर्ण बृहद अखंड भारत वर्ष का अपमान है"।मेरा तो मानना है यह अपमान संपूर्ण भारत वासियों का है,भारतीय संस्कृति का है, भारतीय समाज का है और भारतीय इतिहास का है।
      भारत ही नहीं दुनिया के सर्वकालीन महान राजाओं में सम्राट अशोक का नाम पूरी दुनिया में आज भी अदबो-इज्जत के साथ लिया जाता है। जहां संपूर्ण दुनिया सम्राट अशोक की महानता के गुणगान गाते अघाती नहीं है।वहीं अपने ही देश के कुछ लोगों द्वारा उनकी तुलना मुगल सम्राट औरंगजेब के साथ करते हुए अशोक महान के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया जाता है यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है आप समझ सकते हैं।
     इस प्रकार की टिप्पणी करने वाले लोग कौन हैं इसके बारे में जानने के बाद लगता है जो लोग भी ऐसा कर रहे हैं वे जानबूझकर किसी छुपे हुए एजेंडे के तहत काम कर रहे हैं।क्योंकि ऐसा करने वाले लोग कोई अज्ञानी या कोई नए नौसिखिया लेखक नहीं है, बल्कि वर्षों तक जिम्मेवार पद पर रहने वाले लोग हैं।फिर उनसे ऐसी गैर जिम्मेवार टिप्पणी की उम्मीद राष्ट्र को कैसे होगी। इस तरह की संकीर्ण मानसिकता भारत के छवि पर थोपने की जुर्रत जो लोग कर रहे हैं उन लोगों को देश की जनता समय पर सबक जरूर सिखाएगी। आज संपूर्ण भारतवर्ष के लोग यह देख रहे हैं किस तरह से जानबूझकर भारत की छवि धूमिल करने की कोशिश एक समूह द्वारा किया जा रहा है जिसको कहीं ना कहीं से मूक समर्थन अवश्य प्राप्त है। गलती करने वाले लोगों की आलोचना करने की जगह कुछ लोग उनके बचाव में उतर जाते हैं।यह सिद्ध करता है कि जो भी चीजें घटित हो रही है वह अनायास नहीं जानबूझकर की जा रही है।
अशोक का कार्यकाल 274 ईसा पूर्व से लेकर 232 ईसा पूर्व के बीच रहा है।यह वह समय था जब भारत का राष्ट्रध्वज इराक से लेकर अफगानिस्तान पाकिस्तान बांग्लादेश भूटान नेपाल म्यानमार और संपूर्ण भारतवर्ष पर लहराता था।जो मध्य एशिया से लेकर हिंद महासागर को छुता था।
श्रीलंका इसका दक्षिण में पड़ोसी देश था जहां उसने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को शांति के संदेश लेकर भेजा था।
अशोक ने जितनी विस्तृत भूमि पर शासन किया उतनी विस्तृत भूमि पर किसी अन्य भारतीय शासक ने आज तक शासन नहीं किया।उसके राज्य में सभी धर्म संप्रदाय को एक समान माना जाता था।क्या राजा क्या रंक शासक के नजर में सब समान थे।अशोक अपने प्रजा के साथ पुत्रवत व्यवहार करने के लिए जाना जाता है।उसके द्वारा दिया गया सामाजिक धार्मिक सौहार्द,विश्व बंधुत्व,जीव मात्र के प्रति दया भाव एवं भाईचारा का संदेश आज भी चीन-जापान समेत संपूर्ण एशिया से लेकर पूरी दुनिया में गूंजता है।
हालांकि अशोक अपने शुरुआती शासनकाल में विस्तार वादी रुख के लिए जाना जाता है।जिसके लिए उसने कई रक्त रंजित लड़ाईयों में भाग भी लिया था।लेकिन कलिंग युद्ध ने उस के जीवन में एक अहम मोड़ लाया,जिसने उसे इतिहास में महान कहलाने के योग्य बना दिया।उसने शस्त्र त्याग कर शास्त्र का वरण किया।
अशोक ने पूरे विश्व में शांति और भाईचारा के संदेश देने के लिए दूत भेजा था।अपने पूरे साम्राज्य में शांति और विश्व बंधुत्व के संदेश जन जन में फैलाने के लिए जगह जगह शिलालेख स्तंभ लेख की स्थापना करवाया था।जिन पर जीवो के प्रति दया,पर्यावरण के प्रति सजगता,धार्मिक सहिष्णुता, सामाजिक सौहार्द, सदाचारीता,नैतिकता एवं राज्य समाज के प्रति जिम्मेवारी आदि की बातें उल्लेखित की गई थी।जो आज भी भारत और अन्य देशों के संग्रहालयों में सुरक्षित है।
अशोक ने स्थापत्य के क्षेत्र में भी बहुत सारे ऐतिहासिक भवनों व मंदिरों का निर्माण करवायाथा।जिसमें बोधगया का महाबोधि मंदिर भी एक है।महाबोधि मंदिर में लगा हुआ बोधि वृक्ष अशोक के शासनकाल में ही लगाया गया था।
अशोक ने शिक्षा के प्रसार के लिए अनेकों महाविद्यालयों का निर्माण करवाया जिसमें तक्षशिला जैसे विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय भी शामिल है।
अशोक के महानता इस बात से भी पता चलता है कि उसने मानव के साथ साथ पशु-पक्षी के कल्याण तक का ख्याल रखा।उसके लिए उसने पशु पक्षियों के लिए अलग से अस्पतालों का निर्माण करवाया था।
कृषि कार्य को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के निर्णय लिया गया।जगह जगह तालाब कुएं और नहर खुदवाए गए।कृषि को बढ़ावा देने के लिए कृषि पदाधिकारियों की नियुक्ति की गई।उत्तम दर्जे के बीज का व्यवस्था किया गया। खेती गृहस्ती को प्रोत्साहित करने के लिए लोगों को राज्य द्वारा सहायता राशि भी प्रदान किया जाता था।
अपने राज्य में आवागमन को सुगम बनाने के लिए कई सड़कें बनवाई।विश्व प्रसिद्ध सड़क ग्रैंड ट्रंक रोड अशोक का ही देन है।आज हम जिस ग्रैंड ट्रंक रोड को भारत का जीवन रेखा मानते हैं सर्वप्रथम नीव अशोक द्वारा ही रखा गया था।सड़क के दोनों तरफ वृक्ष लगाए गए थे और राहगीरों के ठहरने और आराम करने के लिए जगह जगह पर विश्रामगृह का निर्माण करवाया गया था।जहां पानी का मुकल्लम व्यवस्था होता था। इससे साबित होता है अशोक अपने जनता के सुख सुविधा एवं हित के लिए कितना सजग और समर्पित रहता था।साथ ही उसने इस सड़क को सूचना तंत्र को मजबूत बनाने तथा भारतीय अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए भी उपयोग किया।
राज्य में अमन चैन और सुरक्षा व्यवस्था कायम करने के लिए उसने कई स्तर पर प्रयास किए।अपराध के अनुकूल लोगों को दंड देने का प्रावधान किया गया था।अगर किसी अपराधी को दंड देने में जिम्मेवार लोग कोताही बरतते थे तो उन्हें भी दंड का भागी बनना पड़ता था।सभी के लिए एक प्रकार के न्याय सुनिश्चित करने का भरसक प्रयास किया गया था।
अशोक अपने कुशल शासन के साथ साथ कुशल विदेश नीति के लिए भी जाना जाता है।उसके शासनकाल में विदेशों से व्यापार काफी फला फूला था।जिसके बल पर ही भारत काफी समृद्ध हुआ था।
अशोक के महानता भारत के लिए कितना महत्वपूर्ण है।वह भारतीय राष्ट्रध्वज को देखने से पता चलता है, जिसमे अशोक चक्र को राष्ट्रध्वज के मध्य में स्थान दिया गया है।यही नहीं भारतीय मुद्रा पर अशोक का स्तंभ होना भी उसकी महानता को प्रदर्शित करता है। भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक का स्तंभ यूं ही नहीं बनाया गया उसके पीछे अशोक की महानता और दूरदृष्टि दोनों शामिल रहा है।अशोक स्तंभ पर पाए जाने वाले जीव जंतु और अशोक चक्र हमें अपने जीवन में कई प्रकार के सीख लेने के लिए प्रेरित करते हैं।
अशोक चक्र में शामिल 24 तिलिया हमें निर्बाध गति से 24 घंटे गतिशील रहने को प्रेरित करते हैं।वहीं अशोक स्तंभ पर पाए जाने वाले शेर हमें हमेशा निर्भीक रहने को कहते हैं।अशोक स्तंभ पर पाए जाने वाला सांड पुरुषत्व का प्रतीक है और हिरण मासूमियत के साथ फुर्ती का।
वैसे तो अशोक के पिता बिंदुसार और पितामह चंद्रगुप्त मौर्य प्रतापी राजा थे लेकिन अशोक कभी अपने पूर्वजों के खींचे गए निशान में बंधा नहीं रहा उसने हमेशा अपने आप को गतिशील बनाए रखा।जिसके कारण है वह महान बन पाया है।
अगर आज की राजनीतिक पीढ़ी अशोक से प्रेरणा ग्रहण करती तो भारत में जो आज बेरोजगारी गरीबी अविश्वास पिछड़ेपन आदि की समस्या है उसका निराकरण व्यवस्थित तरीके से किया जा सकता है।समाज के अंतिम व्यक्ति तबके तक विकास को पहुंचाया जा सकता है।लेकिन वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था और नेतृत्व से यह उम्मीद करना आसमान से तारे तोड़कर लाने के बराबर है।आज सारे देशवासियों को अशोक के आदर्श से सीख लेने की जरूरत है।उसके कर्मठता और जुनून को अपने जीवन में अपनाने की जरूरत है।उसके जनता के प्रति उत्तरदायित्व को भारतीय राजनीति के मूल मंत्र बनाने की जरूरत है।
 सम्राट अशोक किसी एक राज्य के किसी एक जाति बिरादरी समाज के नहीं बलिक संपूर्ण भारत वर्ष के लिए गौरव के प्रतीक हैं। उनके सम्मान के साथ ऐसी कोई भी हरकत नहीं किया जाए जिससे भारत की वैश्विक छवि को आघात पहुंचे। सम्राट अशोक महान के छवि पर कीचड़ उछालना भारत के महानता के साथ खिलवाड़ के बराबर है।















गोपेंद्र कु.सिन्हा गौतम
     बिहार

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