प्रकृति के सौंदर्य के दोहे
 
प्रकृति बहुत नेहिल लगे,लगती नित अभिराम।
सब कुछ नियमित हो रहा,सृष्टि-चक्र अविराम।।

सुंदर यह वसुधा लगे,आकर्षक आकाश।
जी भर देखो जो इसे,तो हर ग़म का नाश।।

सुंदर हैं नदियाँ सभी,भाता पर्वतराज।
वन-उपवन मोहित करें,दिल खुश होता आज।।

हरियाली है सुख लिए,गाती मंगलगान।
प्रकृति सदा ही कर रही,शिल्पी का यशगान।।

खेतों में धन-धान्य है,लगते मस्त किसान।
हैं लहरातीं बालियाँ,करें सुरक्षित शान।।

कभी शीत,आतप कभी,पावस का है दौर।
नयन खोल देखो ज़रा,करो प्रकृति पर गौर।।

खग चहकें,दौड़ें हिरण,कूके कोयल,मोर।
प्रकृति-शिल्प मन-मोहता,किंचित भी ना शोर।।

जीवन हर्षाने लगा,पा मीठा अहसास।
प्रकृति-प्रांगण में सदा,स्वर्गिक सुख-आभास।।

प्रकृति बर्फ से है लदी,कहीं ग्रीष्म की मार।
पर मुझको दिखता यहाँ,हर इक कण में सार।।

जीवन को नित दे रही,प्रकृति सतत उल्लास।
हर पल ऐसा लग रहा,ज्यों पलता मधुमास।।



 









प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे
            प्राचार्य   

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