राष्ट्रवाद हर नागरिक की नैतिक आत्मा,इसे किसी धर्म विशेष अथवा सम्प्रदाय से न जोड़ा जाय |

आज जब भारत महामारी की त्रासदी के भयावह काल को झेल चुका है, कई राज्य के अलग दल अलग अलग हुक्मरान अपनी डफली अपना राग गा रहे हैं , एसे में एक मात्र राष्ट्रवाद ही एसा धागा है जो सब को एक सूत्र में पिरो सकता है | राष्ट्रवाद की कोई सार्वभौमिक सर्व सम्मति से कोई निर्धारित परिभाषा नहीं प्रस्तुत की जा सकती है। समेकित रूप से राष्ट्रवाद एक सामूहिक आस्था का नाम है,जहां नागरिक स्वयं को एक साझा इतिहासपरंपराजातीयतासंस्कृति एवं भाषा इत्यादि के आधार पर एकत्र मानते हैं और एक होने की भावना अन्य सभी तत्वों कारको से अधिक प्रभावशाली और राष्ट्रीय निष्ठा सभी अस्मिताओं से ऊपर तथा श्रेष्ठ होती है।राष्ट्रवाद को लेकर किसी तरह भी नागरिकों के धर्म या सम्प्रदाय के साथ जोड़कर अपना नजरिया बनाने की हिमाकत न की जाय |  देश के विकाससमृद्धि और आर्थिक क्षेत्र की तथा सामरिक विदेशी शक्ति के विरुद्ध मातृभूमि की रक्षा भी राष्ट्रवाद का एक प्रमुख तव्त माना जाता है। राष्ट्रवाद या राष्ट्रप्रेम के अंतर्गत किसी व्यक्ति विशेष के प्रति आस्था समाहित नहीं होती। राष्ट्रीयता की भावना में देश के प्रति लगन भक्ति तथा समर्पण ही राष्ट्रवाद को जन्म देता हैऔर राष्ट्रवाद के अंतर्गत धर्मजातिवर्ग विभेद राजनीतिक विचारधारा होती है।राष्ट्रवाद की अनेक विचारको ने राष्ट्रवाद को राष्ट्र के अंदर राजनीतिक तथा आर्थिक संदर्भों से जोड़ा है। इतिहास के प्रमुख विचारक "बेनेडिक्ट एंडरसन"ने कहा है कि राष्ट्रवाद को राजनीतिक विचारधारा से जोड़ने के बजाए उसे सांस्कृतिक विचारधारा से जोड़ा जाना चाहिए। राष्ट्रप्रेम को सामूहिक जन के एकीकरण तथा राष्ट्रीय चेतना के विकास को प्रबल करने की एक जन धारा माना गया है। राष्ट्रप्रेम से स्पष्ट हो जाता है की राष्ट्रीय चेतना एवं सामुदायिकता को एक सूत्र में पिरोने का काम राष्ट्रवाद ही कर सकता है। राष्ट्रवाद की अवधारणा स्वतंत्रता के पूर्व स्वतंत्रता के लिए सभी वर्गों का एकजुट हो जाना तथा वर्ग भेद को मिटाना एवं आपस में आर्थिक सहयोग कर राष्ट्र की अस्मिता को जीवित या पुनर्जीवित करने का कार्य ने ही राष्ट्रप्रेम तथा राष्ट्रवाद को जन्म दिया है। राष्ट्र के रूप में भारत मैं विविध भाषाओं अनेक धर्मों अनेक जाती और प्रांतों का समूह है। भारत में राष्ट्रवाद के अंतर्गत राष्ट्र की अपनी एक विशिष्ट अवधारणा विकसित की जिसमें बहुजातीयताधर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता जैसे मूल्यों को सहेज कर भारतीय राष्ट्रवाद को जन्म दिया है,जोकि अत्यंत गौरवशाली एवं महत्वपूर्ण है। राष्ट्रप्रेम में व्यक्तिगत या सामूहिक देश के प्रति भक्ति न्योछावर और अपने व्यक्तिगत हितों से बढ़कर राष्ट्रीय चरित्र निर्माण को ही सम्मिलित किया गया हैंजिससे राष्ट्र दृढ़समृद्ध और विकासशील होता है। जिससे राष्ट्रीय संपत्ति सीमाओं और विदेशी आक्रमण के समय राष्ट्र की रक्षा प्रमुख तत्व होते हैं। भारत एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक प्रजातांत्रिक देश है। राष्ट्रवाद पर राष्ट्रप्रेम भारत के संदर्भ में और गहरा तथा महत्वपूर्ण इसी लिए भी है कि भारत में विभिन्न समुदायजातिधर्म और बोली के लोग निवासरत हैंएवं भारत के परंपरागत दुश्मन भी युद्ध के लिए घात लगाए बैठे हैंऐसे में भारत को विशाल जनसंख्या तथा देश के अंदर फैले बहुत बड़े भूभाग की रक्षा के लिए राष्ट्रवाद जैसी अवधारणा को मजबूत किए जाने की अत्यंत आवश्यकता है। ऐसे में भारत के लिए राष्ट्रवाद एक अमोघ अस्त्र की तरह आमजन को एक सूत्र में बांधे रखने देश के प्रति निष्ठा रखने और विपरीत परिस्थितियों में एकजुट होने की प्रेरणा देने के लिए राष्ट्रवाद और राष्ट्रप्रेम की बहुत ज्यादा आवश्यकता होगी। वैसे तो भारत का इतिहास अनेक महापुरुषों,बड़े-बड़े सम्राटों और योद्धाओं की राष्ट्रभक्ति से परिपूर्ण हैपर पूंजीवाद,मार्क्सवाद और राष्ट्रप्रेम के प्रति पश्चिम के विद्वानों की राय और अवधारणाएं अलग-अलग हैं । यूरोपीय विचारकों के अनुसार राष्ट्रप्रेम के कई ऋणआत्मक पहलू भी हैभारत राष्ट्र के संदर्भ में राष्ट्रवादराष्ट्रप्रेम को सकारात्मक रूप से लेना चाहिएपर राष्ट्रप्रेम की अवधारणा में राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में शासकीय प्रशासक की हठधर्मिता को ना मानना लोकतांत्रिक संगठन में राष्ट्र धर्म का विरोध नहीं माना जाना चाहिए। तभी राष्ट्रप्रेम अथवा राष्ट्रवाद की अवधारणा को सामूहिक रूप से बल मिलेगा और प्रजातांत्रिक संगठन भविष्य में लंबे समय तक जीवित रह सकता है।









  संजीव ठाकुर

  छत्तीसगढ़


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