पुस्तक समीक्षा यशोदा की रामायण

 

त्रेता और द्वापर युग के अलौकिक वर्णन का प्रयोगधर्मी, धार्मिक, साहित्यक उपन्यास "यशोदा की रामायण"।

पुरातत्ववेत्ता,इतिहासकार, साहित्यकार डॉ हेमू यदु के नए उपन्यास यशोदा की रामायण का नाम सुनकर आप शायद चौक जाएंगे पर अद्भुत अलौकिक त्रेता तथा द्वापर युग का प्रमाणिक इतिहास परक साहित्यिक वर्णन इस उपन्यास पर अत्यंत रोचक एवं ज्ञानवर्धक बनाता है।
पौराणिक महाकाव्य रामायण एवं महाभारत की घटनाओं से वैसे तो अनेक विद्वानों चिंतकों ने विभिन्न प्रमाणित ग्रंथ लिखे हैं, जो एक दूसरे से भिन्नता लिए हुए हैं किंतु उन सब का मूल एवं सार तत्व धर्म परायणता एवं भारतवर्ष की खुशहाली ही है। इनका मूल उद्देश्य मानव जीवन को सत्य मार्ग की ओर प्रशस्त करना भी है। लेखक का यह नवीन एवं नितांत प्रयोग धर्मी उपन्यास है, जो नवीन भाषा शैली एवं नवीन काल्पनिक घटनाओं को वास्तविक रूप देते हुए मानवीय कल्पनाओं का यथार्थी करण है। लेखक द्वारा राम कथा तथा कृष्ण कथा की घटनाओं एवं लीलाओं को समानांतर रूप से लेखन कर उसे आपस में संदर्भित एवं संबंधित कर नवीनता के साथ-साथ प्रस्तुत किया है। इस लेखन का प्रयोग धर्म अद्भुत अलौकिक एवं अद्वितीय है। वस्तुत इस उपन्यास में दर्शाया गया है की राम कथा एवं कृष्ण कथा नामक इस अद्भुत पौराणिक उपन्यास की मूल में माता यशोदा द्वारा नन्हे कान्हा को रात्रि में सुलाने के लिए लोरी सुनाने का प्रयास किया गया किंतु कान्हा उस लोरी और अनेक रात्रि कालीन किसी भी बालक को सुनाएं जाने वाली बाल सुलभ कथाओं से कतई संतुष्ट नहीं हो पाते हैं, और अपनी मां से जिद करके अन्य कहानी सुनाने का आग्रह करते हैं,तब माता यशोद ने विश्व की सर्वाधिक रोचक एवं यथार्थ परक धार्मिक महाकाव्य रामायण के अत्यंत रोचक उद्धरण के साथ पवित्र श्री राम की कथा सुनाती है। माता यशोदा भली भांति जानती थी कि विष्णु देव अवतार भगवान श्री राम त्रेता युग में एवं कृष्ण यानी कान्हा द्वापर युग में अवतरित हुए थे।इस वृतांत में माता यशोदा नन्हे कान्हा को यह नहीं बताती हैं कि श्री राम कौन है, लेखक ने इस रहस्य को बड़े ही रोचक ढंग से कौतूहल को बनाए रखते हुए यशोदा नंदन के रूप में प्रकट किया है।
यशोदा की रामायण एक पौराणिक उपन्यास दृष्टिगत होता है इसमें कान्हा की माता श्री रात्रि को रामायण की महत्वपूर्ण कथाओं का बहुत ही रोचक तरीके से वाचन करती हैं और दूसरी तरफ नन्हे कान्हा प्रातः उठकर कृष्ण लीला में व्यस्त हो जाते हैं, इस तरह राम जी कथा एवं भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन इस उपन्यास को अत्यंत ही सुगम एवं काल के अनुसार मर्मस्पर्शी बनाते हैं। श्री राम कथा और देवकीनंदन कृष्ण की बाल लीला का विस्तार पूर्वक वर्णन इस उपन्यास में अत्यंत ही दिलचस्प एवं पठनीय है। इस उपन्यास में पात्रता घटनाएं तो काल्पनिक है पर पाठक को उपन्यास के पढ़ते-पढ़ते मौलिकता एवं वास्तविकता से कम प्रतीत नहीं होते है। उपन्यास में नव प्रयोग धर्म की मौलिकता ही इसका अत्यंत रोमांचक पक्ष है, जो संभवत साहित्य तथा पौराणिक कथाओं में प्रथमतः लेखन में प्रयोग किया गया है। उपन्यास के लेखक चूंकि इतिहासकार एवं पुरातत्वविद हैं परिणामतः राम वन गमन के प्रमाणिक तथ्यों के साथ महानदी के उद्गम एवं राम वन गमन के स्थानों जैसे मां कौशल्या का जन्म स्थान स्थान कौसल, दंडकारण्य क्षेत्र महानदी का उद्गम नगरी सिहावा एवं चंद्रपुरी जो आजकल चंदखुरी के नाम से जाना जाता है एवं आरंग के पुरातन राम वन गमन की घटनाओं से जोड़कर प्रमाणिक तौर पर उपन्यास में अत्यंत ही दिलचस्प तरीके से लिपिबद्ध किया है। पौराणिक उपन्यास में प्रभु महादेव शिव द्वारा कान्हा के दर्शन का वर्णन एवं अगस्त्य ऋषि की प्रसन्नता एवं दंडकारण्य क्षेत्र में प्रभु राम द्वारा राक्षसों का भीषण नरसंहार का अद्योपांत वर्णन अत्यंत ही पठनीय जान पड़ता हैं। उपन्यास के सारगर्भित सुंदर पक्ष का उल्लेख ना करूं तो उपन्यास का विश्लेषण अधूरा रह जाएगा,महा ज्ञानी रावण युद्ध भूमि में पहुंचकर श्री रामचंद्र जी को ललकारा और कहा की मृत्यु का वरण करने के लिए तैयार हो जाओ, और तब युद्ध भूमि घमासान युद्ध होने लगा, रावण ने उस समय अपने धनुष बाण की टंकार करते हुए पुनः ललकारा और कहा अरे सन्यासी तेरी भुजाओं में ताकत है तो मेरा मुकाबला कर बाहर निकल।
इस कथा के इस वाक्यांश को माता यशोदा से सुनते हुए सोया हुआ कान्हा उत्तेजित होकर उठ कर अचानक स्फूर्ति से ऊर्जा से भर गया और जोश पूर्वक अपनी मां से कहा माँ माँ मेरा धनुष बाण कहां है, अत्याचारी रावण मुझे ललकार रहा है। यह घटना इस उपन्यास का सार तत्व है। तब माँ ने रहस्य उजागर करती हुये समझाया बेटा त्रेता युग में तुम एक अवतारी भगवान श्रीराम थे और मैं तुम्हारी ही कथा सुना रही थी तब बालक ने कौतुहल पूर्वक पूछा मां क्या इतने दिनों से मैं श्री राम कथा सुन रहा था, तब माता ने हां कह कर नन्हे कान्हा को भाव विभोर होकर गले से लगा लिया था। यह उपन्यास रचयीता के श्रम साध्य लेखन की परिणति है । आप इसे धार्मिक, ऐतिहासिक और साहित्यिक ग्रंथ, उपन्यास मानकर इसका अध्ययन कर ज्ञानार्जन कर सकते हैं। यह लेखक की छब्बीसवीं कृति के रुप मे पाठकों के कर कमलों में होगी।
 (उपन्यास- " यशोदा की रामायण"
             हेमू यदु
             आगरा

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