सोच समझ के जन प्रतिनिधि चुनअ
गाड़ी वाले को पशुशाला बनल पशु पालक को मुर्गा दा..अ..रू। बताव बताव गुरु जी कइसे बचूं घर में पुछइत हे  बेटी  मेहरारू। पढल लिखल  के  बात  मानअ बुद्धिजीवी लोग के साथ चलअ। सोच समझ के प्रतिनिधि  चुनअ तोहर बदलत तब जरूर तकदीर। जे होय गेल गलती सुधार करअ अबकी पंचायत के उधार करअ। शिक्षा,संस्कार,विकास के साथ र…
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अपनो से भी अब अपनापन नहीं मिलता,
अपनो से भी अब अपनापन नहीं मिलता, घर तो है मगर खुला आंगन नहीं मिलता, हमने तो सम्हालें हैं बहुतों को उम्र भर , अब हमे जो सम्हालें वो दामन नहीं मिलता, बहुत कुछ बदला है ये समय ये दुनिया, लोग मिलते तो हैं पर ये मन नहीं मिलता, किस पर उठायें उंगली और किसको डांटे, अपने ही घर में जब अनुशासन नहीं मिलता, ये म…
जीने का सलीका
तुम शब्दों की बात करते हो हम तुम्हें निशब्द ही घायल कर देंगे। तुम खूबसूरती की बात करते हो हम तुम्हें सादगी से ही कायल कर देंगे। तुम हमें आधुनिकता के बोझ तले दबाते आये हो हम तुम्हें अपनी परंपराओं के बल पर ही उठ कर दिखा देंगे। तुम हमें दिखावे में पनपनमा सिखाते हो हम तुम्हें सादगी से ही तुम्हें जीना स…
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श्राद्ध
अपने पुरखों की आत्मा की तृप्ति के लिए वैदिक काल से हम करते आ रहे हैं श्राद्ध पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा जीवित है  कौओं को पकवान खिलाकर  हम अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं ।   सुनो साथियों - जीते जी अपने बुजुर्गों की ले लो सुध बाद मृत्यु के शोक मनाने, भंडारे करने का क्या मतलब ? पितृऋण अगर चुकाना च…