सीता के राम

यह रचना मेरे लिये 'साहित्यिक अनुष्ठान' बन कर आयी है।
वैचारिक प्रस्फुटन 25 फरवरी को रात आठ बजे अनायास ही हुआ। लिखने
का मन भी तभी बन गया तथा मंगला चरण और समाधि खण्ड के प्रमुख
अंश उसी रात लिख गये। लिखते समय कभी कभी आँखें भीगी भी और
ऐसा अहसास हुआ कि एक मन को संतुष्टि देने वाली रचना बन रही है।
अगले दिन प्रात: लिखे गये पुष्प वाटिका खण्ड के प्रसंग और उसी
दिन रचे गये रचना के शेष अंश। दोपहर दो बजे सम्पूर्ण कृति तैयार थी।
कृति का मंगला चरण खण्ड पत्नी ने बहुत भावुक होकर रचना
वाली रात ही सुना और मेरा उत्साह बढ़ाया इस कृति को पूरा करने में।
जिस दिन कृति पूरी हुयी, पत्नी, उपचार के लिये कानपुर आये
अपने पिताश्री को रचना सुनाने के लिये कह रहीं थीं, तभी मेरे प्रिय मित्र
श्री उपेन्द्र शास्त्री घर पधारे। श्री शास्त्री जी को जब पूरी रचना एक बारगी
सुनायी तो उन्होंने इसे बहुत उच्च कोटि का ठहरा दिया। तभी मन बनाया
कि राम नवमी के अवसर पर इसी वर्ष इसे प्रकाशित और लोकार्पित कराना
है।
सुधी पाठकों की प्रतिक्रिया की मुझे प्रतीक्षा है...!
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                        अवधेश दीक्षित, कानपुर



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