श्रावण मास का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व


                                          भारतीय संस्कृति में श्रावण मास का बहुत बड़ा महत्व है। यह बहुत ही पवित्र माना गया है। शास्त्रों में भी श्रावण मास को बहुत महत्व दिया गया है। यह अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार जुलाई और अगस्त के बीच का महीना होता है। इस महीने की विशेषताओं में कई अहम बातें दिखाई देती हैं।
श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है। इस मास में भोले शंकर की पूजा का विशेष महत्व दिया गया है। यह हिंदू पंचांग का पांचवां महीना है। जिसे सावन के नाम से भी जाना जाता है। इस महीने में आने वाले सोमवार के व्रत को अत्यधिक महत्व दिया गया है। 
मान्यता अनुसार सावन का महीना भगवान शंकर को काफी पसंद है। इसलिए भक्तजन इस महीने में व्रत रखते हैं। इस महीने में सावन स्नान की परंपरा है। जिसे पिछले कई दशकों से लोग निभाते हुए आ रहे हैं। सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा के दौरान बेल पत्र से पूजा-अर्चना की जाती है और जल चढ़ाया जाता है। 
वैदिक धार्मिक ग्रंथ शिव पुराण के अनुसार जो व्यक्ति सावन के महीने में सोमवार का व्रत रखता है।उसकी मनोकामना भगवान शिव पूरी करते हैं।  यही वजह है कि सावन के महीने में शिव भक्त ज्योर्तिलिंगों के दर्शन करने के लिए जाते हैं। इसमें  हरिद्वार, काशी, नासिक और उज्जैन समेत कई धार्मिक स्थान शामिल हैं। 
श्रावण मास शिव भक्तों के लिए काफी अहम है। इसी महीने में भक्त कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं।  शिव भक्त इस दौरान लाखों की संख्या में हरिद्वार और गंगोत्री समेत अनेक धामों की यात्रा करते हैं। चैत्र के पांचवे महीने को सावन का महीना कहा जाता है। इस माह के सभी दिन धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व रखते हैं। गहराई से समझा जाए तो इस माह का प्रत्येक दिन एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है।
सावन को साल का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस माह का प्रत्येक दिन किसी भी देवी-देवता की आराधना करने के लिए सबसे उपयुक्त होता है। विशेष तौर पर इस माह में भगवान शिव, माता पार्वती और श्रीकृष्ण की आराधना की जाती है।
ऐसा कहा जाता है कि जिस तरह इस माह में कीट-पतंगे अपनी सक्रियता बढ़ा देते हैं। उसी तरह मनुष्य को भी पूजा-पाठ में अपनी सक्रियता बढ़ा देनी चाहिए। यह महीना वर्षा का होता है। जिससे कि पानी का जल स्तर बढ़ जाता है। मूसलाधार बारिश नुकसान पहुंचा सकती है इसलिए शिव पर जल चढ़ाकर उन्हें शांत किया जाता है।
महाराष्ट्र में जल स्तर को सामान्य रखने की एक अनोखी प्रथा विद्यमान है। वे सावन के महीने में समुद्र में जाकर नारियल अर्पण करते हैं ताकि किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं पहुंच पाए। पौराणिक धार्मिक हिन्दू ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान निकले विष का पान करने से भगवान शिव के शरीर का तापमान तेज गति से बढ़ने लगा था। ऐसे में शरीर को शीतल रखने के लिए भोलेनाथ ने चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया और अन्य देव उन पर जल की वर्षा करने लगे। यहां तक कि इन्द्र देव भी यह चाहते थे कि भगवान शिव के शरीर का तापमान कम हो जाए इसलिए उन्होंने अपने तेज से मूसलाधार बारिश कर दी। इस वजह से सावन के महीने में अत्यधिक बारिश होती है। जिससे भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं।
भगवान शिव के भक्त कावड़ ले जाकर गंगा का पानी शिव की प्रतिमा पर अर्पित कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं। इसके अलावा सावन माह के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव पर जल चढ़ाना शुभ और फलदायी माना जाता है। सावन के महीने में व्रत रखने का भी विशेष महत्व दर्शाया गया है। ऐसी मान्यता है कि कुंवारी लड़कियां अगर इस पूरे महीने व्रत रखती हैं तो उन्हें उनकी पसंद का जीवनसाथी मिलता है। इसके पीछे भी एक कथा मौजूद है जो शिव और पार्वती से जुड़ी है पिता दक्ष द्वारा अपने पति का अपमान होता देख सती ने आत्मदाह कर लिया था। पार्वती के रूप में सती ने पुनर्जन्म लिया और शिव को अपना बनाने के लिए उन्होंने सावन के सभी सोमवार का व्रत रखा। फलस्वरूप उन्हें भगवान शिव पति रूप में मिले।
इस तरह सावन के महीने का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों
दोनों रूपों में अत्यधिक महत्व है।



निशा नंदिनी भारतीय
तिनसुकिया, असम 


 


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