गुमनाम हीरो को तराशती पुस्तक "नेपथ्य के नायक खंड 1



आजकल चर्चा में बनी हुई पुस्तक नेपथ्य के नायक खंड 1 विविध क्षेत्रों के 25 ऐसे शख्सियतों की जीवन गाथा है जिन्होंने अपने अपने समय में अपने-अपने क्षेत्रों में व्यवस्था प्रवर्तक कार्य किया था। लेकिन दुर्भाग्यवश उनके कार्यों को वह पहचान नहीं मिल पाई जिसके वे हकदार थे।यह या तो जानबूझकर या अनजाने में उनके कार्यों को गुमनाम होने दिया गया जिनके बारे में अगर वर्तमान पीढ़ी पूरी तरह से जानती समझती तो भारतीय समाज और लोकतंत्र आज और समृद्ध हुआ दिखता।हालांकि उनमें से कुछ नायकों के बारे में कहीं-कहीं चर्चा है पर जिस आदर और ऊंचाई के पात्र थे वह अभी तक उन्हें नहीं मिला। सामाजिक वैमनस्य और देश की व्यवस्था के मूलाधार जातिगत सोच ने सामाजिक बदलाव के इन नायकों को नेपथ्य में धकेलने की पुरजोर कोशिश आज तक कर रहा है। जिसे तोड़ने का प्रयास है पुस्तक नेपथ्य के नायक।इस पुस्तक के सूत्रधार राकेश यादव के अथक प्रयास,संपादक अरुण नारायण के कुशल संपादन एवं सभी लेखकों के सामूहिक प्रयास से आज यह पुस्तक पाठकों तक पहुंच पाई है।जिससे पाठक अपने बीच के मूल नायकों को पुस्तकों में पढ़कर अपने पूर्वजों से सुनी स्मृतियों को ताजा कर रहे हैं।

यह पुस्तक प्रकाशकों के प्रयास का पहला हिस्सा है जिसमें वे अपने उद्देश्य को प्राप्त करते हुए नजर आ रहे हैं।पाठकों को अगले अंक का बेसब्री से इंतजार रहेगा क्योंकि वे जानना चाहेंगे कि अगले खंड में देश और समाज द्वारा गुमनामी के गर्त में धकेल दिए गए किन हीरो को तराशा जाएगा। 
नेपथ्य के नायक यानि रंगमंच के पीछे रहने वाले गुमनाम नायक।जिन्होंने सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक रूप से पिछड़े वंचित वर्ग के मुद्दों को हमेशा आगे रख खुद नेपथ्य गुमनाम होते चले गए। जिन्होंने अपनी कुर्बानी देकर देश और समाज को आगे बढ़ने में योगदान दिया था।नेपथ्य शब्द का विशेष अर्थ इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इस पुस्तक में जिन महान शख्सियतों के बारे में शब्द उकेरे गए हैं वे सभी अब दुनिया रूपी इस रंगमंच में नहीं है।भले ही समय के साथ वे नेपथ्य में चले गए हों फिर भी अपने जीवन दर्शन से हमें और आगे आने वाली पीढ़ियों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए सदियों तक प्रेरित करते रहेंगे।दूसरे अर्थ में भी पुस्तक का नाम 'नेपथ्य के नायक' ज्यादा अर्थपूर्ण है क्योंकि पिछड़े वर्गों को अभी भी राष्ट्र और समाज के विभिन्न रंगमंचों से ओझल रखकर नेपथ्य में रहने को मजबूर किए जाने का कुत्सित प्रयास जारी है। इस प्रकार हम देखते हैं कि उपरोक्त वर्णित दोनों अर्थों में पुस्तक का नाम सार्थक दिखाई पड़ता है। 
प्रकाशकों द्वारा प्राप्त सूचना के अनुसार इसके पुस्तक के सौ खंड निकाले जाने हैं।इससे साबित होता है प्रकाशकों का उद्देश्य दूरगामी है।प्रस्तुत पुस्तक में कुल पांच उपखंड हैं और प्रत्येक उपखंड में पांच गुमनाम नायकों को समाज और राष्ट्र के बदलाव में योगदान और उनके जीवन वृत्त के साथ उकेरा गया है,ताकि उन्हें दुनिया के रंगमंच पर स्थापित किया जाए।जिससे उनके द्वारा स्थापित बदलाव की विचारधारा का लाभ लोग उठा पाएं।
पहला उपखंड 'सामाजिक, सांगठनिक जागरण के सूत्रधार' के नाम से है।इस उपखंड के नायक हैं- जोतीराव फुले,सरदार जगदेव सिंह, चुल्हाई साहु, रामलखन चंदापुरी एवं सोनेलाल पटेल।
दूसरे उपखंड का शीर्षक है- समानांतर अंत:संघर्ष की नायिकाएँ जिसमें हैं - चकली अइलम्मा, ताराबाई शिंदे, रुकैया सखावत हुसैन, झलकारी बाई तथा फूलन।तीसरे उपखंड का शीर्षक है- साम्राज्यवादी, सामंतवादी संघर्ष के योद्धा।इस उपखंड के नायक हैं- चुआड़ विद्रोह के नायक रघुनाथ महतो, कुँवर सिंह के पथप्रदर्शक अजायब सिंह महतो, कलम के सत्याग्रही पीर मुहम्मद मूनिस, प्रतिरोध के जीवंत प्रतीक विजय सिंह पथिक तथा अगस्त क्रांति के गुमनाम शहीद बच्चन भेड़ीहर।चौथे उपखंड का शीर्षक है- 'साहित्य, रंगमंच, प्रकाशन, संगीत और खेल के सितारे। इस उपखंड में रंगमंच के अमर साधक भिखारी ठाकुर, जाति व्यवस्था के जानी दुश्मन संतराम बी.ए., उत्तर भारत में प्रतिरोधी चेतना के सूत्रधार चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु, हाकी के जादूगर ध्यानचंद तथा विरहा गायन के विद्रोही स्वर नसुड़ी।पाँचवें और अंतिम उपखंड को शीर्षक मिला है- राजनीतिक संघर्ष के अगुआ। इस उपखंड में किसानों की आवाज चौधरी चरण सिंह, कर्तव्यपरायण और अनुशासित राजनेता ज्ञानी जैल सिंह, राजनीतिक साहस और रणकौशल का मास्टर कर्पूरी ठाकुर तथा सामाजिक न्याय प्रयोगशाला के वैज्ञानिक एम. करुणानिधि।
प्रस्तुत पुस्तक में नायकों के चयन में बहुजन समाज की जातीय, क्षेत्रीय, और भाषिक विविधता का विशेष ध्यान रखा गया है। संपादक अरुण नारायण ने नायकों और लेखकों के चयन में काफी सूझबूझ से काम लिया है। संपूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोना के लिए जहाँ वे बांग्लादेश में जन्मी रुकैया सखावत को पुस्तक का हिस्सा बनाते हैं, वहीं पश्चिम भारत में जन्मे संतराम बी.ए.को. उत्तर भारत से वीरांगना फुलन को उन्होंने पुस्तक का हिस्सा बनाया है तो दक्षिण से एम. करुणानिधि को।

इस पुस्तक में ज्योति राव फूले, सरदार जगदेव सिंह,रामलखन चंदापुरी,चुल्हाई साहू,चकली अइलम्मा,रुकैया सखावत हुसैन, संतराम बीए,बिरहा के आदि विद्रोही नसुडी यादव, भिखारी ठाकुर एवं सामाजिक न्याय के प्रयोगशाला के वैज्ञानिक एम करुणानिधि को अन्य नायकों के साथ पढ़ना काफी रोचक रहा।सभी लेखकों ने अपने पात्रों के साथ काफी हद तक न्याय किया है।
 पुस्तक का संपादन,लेखन शैली और प्रस्तुति काफी असरदार है। संपादक अरुण नारायण की मेहनत ने नायकों के जीवन को जीवंत बनाते हुए पुस्तक को  संग्रहणीय बना दिया है।

गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम
सामाजिक और राजनीतिक चिंतक












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