वर्ष 2020

 वर्ष 2020 कई यादों के साथ बीत गया। 2021 का बेला दस्तक दे चुका है। यादों के झरोखे से झाँकने पर कई राजनीतिक , सामाजिक, सांस्कृतिक, रणनीतिक खबरें मन को गतिशील कर जाती है। उनमें शाहीन बाग, नया कश्मीर, तीन तलाक, श्रम सुधार, कृषि सुधार,निजीकरण, नई शिक्षा नीति देश के दशा और दिशा बदलने का दम भरते रहे। वहीं सामरिक मोर्चे पर भारत -अमेरिका सम्बन्ध, पाकिस्तान द्वारा सीमापार आतंकवाद चीन का सीमा घुसपैठ, कई जवानों की शहादत, नेपाल की अवसरवादी व्यवहार ने विश्व पटल पर अलग अलग रुख अख्तियार करते रहे। 

       परन्तु पिछले वर्षों के सबसे चर्चित विषय रहा कोरोना। बच्चे, बूढ़े , रागी-वैरागी सबके जेहन में कोरोना ने मौत का भय बनाये रखा। कोरोना के लक्षण और इलाज के जद्दोजहद में मास्क, सेनेटाइज़र और इम्यून सिस्टम लोगों के बीच सगे सम्बन्धियों के तरह बसा रहा। जहाँ ऊहापोह ने लाकडाउन से कइयों को भुखमरी के कगार में धकेल दिया तो कुछ की आय कई गुना बढ़ गए। नए -नए  बीमारी के ख़ौफ़ ने सरकारी संस्थाओं को भी निर्णय लेने में परेशान किया। सार्वजनिक पैसे का लाभ कोरोना के नाम पर कइयों के पेट में एडजस्ट हो गए। कुछ ने अपनो को खोया तो कुछ के वर्षों के टूटे रिस्ते फिर से जुड़ गए।
             बात अगर कोरोना के अवसर के करें तो वह ये की लोग सफाई के प्रति जागरूक हुए। योग ,आयुर्वेद, होमियोपैथी लोगों के जीवन के हिस्सा बने। बंद मानव ने देखा कि कैसे उनकी गतिविधि बन्द होने से वन्यजीव, नदियाँ, पेड़-पौधे गुलज़ार हो गए। प्रकृत के आँचल में शूल कौन बो रहा है वह कोरोना ने तो लगभग दिखा हीं दिया है।अब ये अलग बात है कि 2 जीबी फ्री के सुविधा ने हमे इस ओर रुक के सोंचने का वाक्त नहीं दे रहा हो।
            अब ये भी बात सत्य है कि वक्त चाहे खराब हो या अच्छा वो बीत हीं जाता है, सो वक्त बीत रहा है। वैक्सीन लगभग तैयार हो चुकी है। अब इस नए वर्ष में मन में ये सवाल अवश्य उठता है कि क्या संकल्प ले। क्योंकि जो सोचा वो तो हुआ नहीं। निश्चय ही यदि हर व्यक्ति अपने बच्चे को एक वृक्ष लगाने औऱ उसे पोषित करने की बात सिखाए तो ये छोटा सा कदम एक दिन मिल का पत्थर साबित होगा। इस कदम से बड़ा लाभ ये होगा कि प्रकृत हमें हर परिस्थितियों से लड़ने में मदद करेगा। यहीं नहीं सरकार द्वारा जारी करोड़ो का बजट दूसरे आवंटन में जायेगा। ए सी, फ्रीज, कूलर आदि पर निर्भरता घट सकेगी । कई तरह के औषधि, फल, फूल भी प्राप्त हो सकेगा। 
         अतः अंतिम रूप से यही भावना है कि सभी खुश रहें और अपने प्रकृत को खुश रखें। यही कर्म धारणीय खुशी को बनाये रखेगी।

नितु सिंह











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