मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है.
रचनाकार भी इसी समाज में रहता है. मनुष्य होने के नाते रचनाकार का पहला दाइत्व
समाज के प्रति होता है. चुंकि रचनाकार अपने रचनाकर्म से समाज को प्रभावित करता है
इसलिए हम ने यह जानने की कोशिश की है कि रचनाकार से पहले मनुष्य होने के नाते वह
समाज के लिए कौनसा महत्वपूर्ण कार्य करना चाहता है?
आइए— हम अपने प्रिय और प्रसिद्ध रचनाकारों से इस परिचर्चा में यह जानने की कोशिश
करते हैं कि वे एक मनुष्य होने के नाते अपने रचनकर्म से समाजहित में क्या
महत्वपूर्ण कार्य करना चाहते हैं.
ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
अनिल जायसवाल
वरिष्ठ
साहित्यकार, नंदन बालपत्रिका के संपादकीय मंडल के सदस्य और वर्तमान
में पायस पत्रिका के संपादक हैं. आप इस बारे में क्या कहते हैं. उन की जबानी सुनते
हैं. “ इस वर्ष
जो मैं एक अच्छा,
सबसे अच्छा काम करना चाहता था, वह
कर चुका हूँ । बच्चों की पत्रिका
बच्चों के लिए निकलना। अब भविष्य में इसे और बालउपयोगी बनाने और नंदन की छाया से
निकालना चाहता हूँ।
“ हां, यह काम मैं अकेले नहीं कर सकता। आप सब के सहयोग की आवश्यकता पड़ेगी।
“ मेरा
वादा है आप मुझे हमेशा बच्चों के बीच बच्चों के लिए काम करते पाएंगे।“
आप
के इस वादे ने हमें आश्वस्त किया हैं कि रचनाकारों के लिए बालसाहित्य के
प्रचार-प्रसार के रास्ते अभी बंद नहीं हुए हैं.
विमला नागला
पेशे से शिक्षक और लेखन से
रचनाकार है. आप का कहना है कि इस वर्ष मेरे द्वारा सबसे महत्वपूर्ण रूप से एक
कार्य किया जायेगा, वह यह है कि जो बच्चे कोरोना महामारी के कारण स्कूलों द्वारा
प्रदत्त आनलाइन शिक्षण से उनकी परिस्थितियों व मजबूरी के कारण पूरी तरह नही जुड़
पाये हैं और पढा़ई में कमजोर हो गये हैं, उनके
अधिगम स्तर के पिछड़ेपन को दूर करने के भरपूर प्रयास करुँगी । साथ ही पूर्व की ही
तरह मुझे जो साहित्य प्राप्त होगा उस को अधिकाधिक बाल पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश
करूंगी. ताकि उस साहित्य का सदुपयोग हो सके ।
प्रभा पारीक
एक साहित्यकार है. आप का कहना है कि हम यानि अक्सर महत्वकांक्षी अभिभावकों द्वारा बच्चों की शिक्षा को लेकर प्रताड़ित करते हुए देखते हैं । इस
अप्रत्यक्ष प्रतियोगिता में बच्चे मानसिक रूप से बहुत आहत होते हैं। जबकि यह प्रतियोगिता आपस में अभिभावकों की ही
होती है।
मैं चाहूंगी इस वर्ष में ऐसा कुछ प्रकाशित करूं जो सर्व पठनीय हो और अनुकरणीय हो । जिसके द्वारा छात्रों के मातापिता व अभिभावक यह समझ पाए कि उनके द्वारा दिया गया मानसिक दबाव, मानसिक तनाव बच्चों के चौमुखी विकास को प्रभावित करता है। इसलिए मातापिता व अभिभावक बच्चों को उनकी क्षमताओं को विकसित करने में मदद करें । न कि इस अंधी प्रतियोगिता के लिए और अच्छे अंकों के लिए बाध्य करते हुए प्रताड़ित करें।
पारीक जी के यह विचार वाकई उम्दा है. हमें भी इन का अनुकरण करना चाहिए.
इंद्रजीत कौशिक,
बीकानेर निवासी बालसाहित्यकार हो कर एक बैंक में कार्यरत है । आप का कहना है कि मैं तो नए वर्ष में बच्चों के हित में कुछ ऐसा ही करना चाहूंगा कि उनको पसंद आए। ऐसी कुछ रचनाओं का सृजन करूं ताकि इस मोबाइल के युग में उन्हें कुछ स्वस्थ मनोरंजन की प्राप्ति हो सके। साथ ही रचनाओं के माध्यम से उन्हें कुछ संदेश देने का प्रयत्न भी करूं । ताकि उनके भावी जीवन में कुछ काम आ सके।
आज के युग में बच्चों को अच्छे संस्कार दे पाना बहुत
बड़ी चुनौती है। बुरे विचार अथवा आदतें तो वे कहीं से
भी सीख ही लेंगे। अच्छी बातों को उपदेश देकर नहीं सिखाया जा सकता। अपनी रचनाओं के
माध्यम से संस्कार एवं अच्छी आदतें उन तक पहुंचा सकूंगा तो अपने आप को सफल समझुंगा।
उपरोक्त
विचार हमारे आज के जानेमाने बालसाहित्यकारों के विचार हैं. ये अपने समाज के लिए
अपना योगदान उक्त रूप में देना चाहते हैं. आप मातापिता और सामाजिक प्राणी होने के
नाते अपना योगदान किस रूप में समाज को देना चाहते हैं ? यह आप को सोचना है.
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03-01-2021
ओमप्रकाश
क्षत्रिय 'प्रकाश'
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