कानपुर का गंगा मेला

करीब 15 साल पहले गंगा मेला के दोपहर के लगभग दो बजे बेटे के साथ उसके दादी -बाबा के घर जूही जा रही तो रास्ते मे देखा कि कई जगह लोग नाच गा रहे थे सुबह से ही लोग होली में डूबे हुए थे कुछ तो सड़को पर ही बाइक में घूम रहे थे पूरे ग्रुप के साथ जिसमे पीछे बैठे कुछ लोग पीछे की तरफ मुंह करके #ढोलक बजा  रहे थे कुछ बाइक पर ही खड़े हो जा रहे थे और हल्ला मचा रहे थे ।इसी बीच दो #कन्याएं चश्मा लगाकर स्कूटी से रोड पर निकली अब सारे होरियारे पीछा कर लिए,उन्होंने भी स्कूटी की रफ्तार बढ़ा दी आखिर दो किलोमीटर पीछा करने के बाद सब ने उनको घेर लिया उन्होंने भी स्कूटी रोकी, चश्मा उतारा और अपने अंदाज में #ताली बजाने लगे सारे होरियारे तुरन्त बैक गेयर लगा कर चुपचाप खिसक लिए वैसे तो उस दिन सबकी दुकान बंद रहती थी।पर घर मे दुकान होने की वजह से ये सोचकर कि 10 बजे तक बन्द कर देंगे,तब तक दूध ब्रेड निकल जायेगा।सुबह 7 बजे जाकर दुकान में बैठ गयी दूध ब्रेड लेने तो कम ही लोग आए,पर पानी की #बोतल, गिलास और नमकीन जितना था,सब बिक गया सामने के रेलवे ग्राउंड में कुछ लोग पार्टी कर रहे होंगे तो वहां से हर आधे घण्टे में एक बच्चा आकर   सब समान ले जाता था कुछ राहगीर भी खुली दुकान देखकर अपने मतलब का सामान ले जाते थे।कुल मिलाकर रोज के हिसाब से उस दिन अच्छा व्यवसाय हुआ जब एक बजे तक दुकान में उन लोगों के मतलब का कुछ नही बचा तब शटर नीचे किया और रिक्शा लेकर जूही हमीर पुर रोड के लिए निकली बारा देवी मंदिर के सामने जोर जोर से बीज रहा था , इश्क नचाये जिसको यार,वो फिर नाचे बीच बाजार बेटे ने कहा,"ये लोग तो सचमुच में बीच बाजार नाच रहे हैं रिक्शे वाला परिचित था तो घुमा कर दूसरी तरफ से ले गया जूही में घर के सामने पीपल के पेड़ के नीचे छोटा सा मन्दिर है सड़क पर।उस पर भी जोर जोर से म्यूजिक बजाकर होरियारे नाच रहे थे एक ने तो बाकायदा लेडीज सूट पहन रखा था और गेट अप भी लड़कियों वाला रखा था कुल मिलाकर खूब मस्ती हो रही थी मुहल्ले की औरतें हमारे दरवाजे पड़े तखत पर बैठकर पूरा प्रोग्राम देख रही थी।और अपना अपना ज्ञान भी दे रही थी उस दिन गंगा मेला के बारे में जो जिज्ञासा जगी उसपर जो जानकारी प्राप्त हुई वो लिखने का प्रयास कर रही हूँ बाकी जिसको और जानकारी हो कृपया बताने की कृपा करें।


गंगा मेला की कहानी आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारियों से जुड़ी है। हटिया को शहर का हृदय था और गल्ला, लोहा और कपड़े का कारोबार होता था। आजादी के आंदोलन में यहां पर क्रंातिकारियों का डेरा रहता था। काफी बड़े व्यापारी गुलाब चंद सेठ होली पर बड़ा आयोजन करते थे। होली पर आए एक अंग्रेज अधिकारी ने रंग खेलने से रोका था तो सेठ ने इनकार कर दिया था। इसपर सेठ को गिरफ्तार किए जाने पर जागेश्वर त्रिवेदी, पं. मुंशीराम शर्मा सोम, रघुबर दयाल, बालकृष्ण शर्मा नवीन, श्यामलाल गुप्त पार्षद, बुद्धूलाल मेहरोत्रा और हामिद खां ने विरोध जताया था। इसपर इन सभी को साजिश रचने के मामले में पकड़कर सरसैया घाट कारागार में डाल दिया गया था।

इस गिरफ्तारी के बाद भड़के शहरवासियों ने आंदोलन शुरू कर दिया था। इससे घबरा अंग्रेज अधिकारियों ने गिरफ्तार लोगों को छोड़ दिया था। अनुराधा नक्षत्र के दिन हुई रिहाई के बाद सभी एक साथ होली खेली थी। हटिया से रंग भरा ठेला निकाला गया और जमकर रंग खेला गया, इसके बाद सरसैया घाट पर मेला लगा था। इसके चलते यह दिन गंगा मेला दिवस में प्रचलित हो गया।

आंदोलन की कहनी अधिक चर्चित हुई है लेकिन गंगा मेला की परंपरा पहले से रही है। कानपुर का अस्तित्व होने से पहले जाजमऊ में परगना का क्षेत्र था और यहां पर रंग पंचमी तक होली मनाने का जिक्र इतिहास की किताबों में भी है। कानपुर के इतिहास पर किताब लिख चुके मनोज कपूर की मानें तो रंग पंचमी पर होली मनाने की परंपरा करीब सौ साल पहले की है, यह बात दस्तावेजों में भी है। कानपुर पर इतिहास की पहली किताब दरगारी लाल की 1870 में लिखी किताब तवारीख-ए-कानपुर में सात दिन की होली का जिक्र है।


कानपुर में दूर दराज क्षेत्रों से व्यापारी आते थे और बाजार बंद नहीं होता था। होली आने के दौरान फसल तैयार होने के कारण बाजार के कामगारों को घर जाना होता था। इसके चलते व्यापारियों ने छह दिन या सात दिन का अवकाश होली से अनुराधा नक्षत्र तक तय किया था। यह पांच, छह या सात दिन का माना गया। तभी से होली से अनुराधा नक्षत्र तक रंग खेलने की परंपरा चली आ रही है।

सात दिन की होली की परंपरा को खत्म करने के प्रयास हुए लेकिन असफल रहे। पं. गणेश शंकर विद्यार्थी नेएक दिन की होली मनाने को कहा था लेकिन व्यापारियों ने मना कर दिया था। साठ के दशक में भी जिलाधिकारी ने एक दिन की होली के लिए मनाया और मिठाई खाई। लेकिन, अगले दिन फिर होली शुरू हो गई तो प्रशासन भी पीछे हट गया इस बार भी कोरोना के कारण शासन ने गंगा मेला स्थगित करने की कोशिश की पर असफल रहा।

 

डॉ0सुषमा सिंह

कानपुर


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