मास्टर दीनानाथ मिश्र अपने मित्र राघव दुवे जी बात करते हुए घर लौट रहे थे। कि मेरे कानों में भी कुछ भनक पड़ी । शायद वो कह रहे थे।
कोरोना ने लाखों बच्चे अनाथ कर दिये उनके सिर से माता- पिता का साया उठ गया। उनकी शिक्षा के लिए पालन पोषण के लिए कुछ संस्थाए आगे आयीं सरकार ने कुछ नियम पास कर मासिक अनुदान देने की घोषणा की। बहुत ही राहत वाली बात है।
इतना सुनते ही मैंने कहा -भइया ! ये तो आपदा में सरकार का सराहनीय कार्य रहा। सुना है दसवीं बारही, के सभी छात्रों को बिना परीक्षा के पास भी कर दिया।
कोरोना से बच्चों को बचाना देश का भविष्य दिखाई पड़ा। किन्तु सब छात्रों को एक तरह से शैक्षिक प्रोन्नति तनिक खटक रही है। कुछ बच्चों ने किताबें चाट ली तो कुछ धन के आभाव में न तो आन लाइन पढ़ाई कर पाये, न ही कोरोना के चलते ट्यूशन आदि ले पाये। इस विषय में हमारी सोच से कुछ रद्दोबदल होना चाहिए।
तभी दीनानाथ ने कहा सरकार क्या आन लाइन परीक्षाए करा सकती थी ।और चारा ही क्या था।
मैंने टोकते हुए कहा दीनानाथ कम से कम सरकार को पूर्व परीक्षा में प्राप्त अंकों, श्रेणी आदि का आधार रखकर छात्रों के भविष्य का फैसला लेना चाहिए।
शिक्षा की प्रोन्नति के लिए , परीक्षा प्रणाली, शिक्षक, परीक्षक और मूल्यांकन सभी महात्व पूर्ण हैं ।
आपदा में लिए गये सरकार के फैसले से आने वाले कई विभागों में सहभागिता के लिए छात्रों को खासी मस्क़त करनी पड़ सकती है।
प्रमिला पान्डेय
कानपुर
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