आज इंसान सूखा जंगल है.

विश्व पर्यावरण दिवस पर निराला साहित्य समूह प्रयागराज के तत्वाधान में ऑनलाइन विशिष्ट काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें भोपाल के मशहूर ग़ज़लकार देवेश देव के मुख्य आतिथ्य में देश के मशहूर रचनाकारों ने काव्य-पाठ किया। सुप्रसिद्ध गीतकार संजय सिंह भोपाल ने सरस्वती वंदना कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। विशिष्ट अतिथि आचार्य दिनेश भोपाली (सीहोर) ने ग़ज़ल के शेर पढ़कर दाद बटोरी-

"मंजिलों से भटक किस डगर आ गये।
छोड़कर हम किनारे भँवर आ गये।।
हाथ ख़ाली ही थे हमको धोखा हुआ,
बीच में ख़्वाहिशों के शज़र आ गये।।"
       मुख्य अतिथि देवेश देव ने पर्यावरण के संरक्षण का संदेश देते हुये, ग़रीबों मज़लूमों की सेवा सहयोग करने का संदेश ग़ज़ल के माध्यम से दिया-
"बेशक मस्ज़िद मत जाना तुम,
मत मंदिर में पाँव धरो।
इक बुढ़िया को कपड़े दे दो,
इक भूखे का पेट भरो।।"
       कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे दैनिक चित्रकूट ज्योति के संपादक वरिष्ठ पत्रकार एवं कवि राजकुमार सोनी जी ने कहा कि पर्यावरण क्षरण मनुष्य के सामान्य जीवन का भी क्षरण करता जा रहा है, अगर अभी भी हम सब जागरूक नहीं हुये तो वो दिन दूर नहीं जब स्कूल बैग की जगह बच्चे ऑक्सीजन का सिलेंडर टांगे हुये नज़र आयेंगे। इस वर्ष की हुई क्षति से हमें ये सबक लेकर अधिक से अधिक वृक्षारोपण अभियान पर ध्यान देना है। ताकि जनजीवन सामान्य रूप से चलता रहे।
   कार्यक्रम का कुशल सन्चालन कर रही देश की लाडली कवयित्री डॉ. लता "स्वरांजलि" भोपाल ने पर्यावरण जागरूकता का संदेश कुछ ऐसे दिया-
"नित्य प्रति हो रहा अमंगल है।
प्राणवायु के लिये दंगल है।।
काटकर धरती माँ की हरियाली,
आज इंसान सूखा जंगल है।।"
         इसके साथ डॉ. लता स्वरांजलि ने कहा कि हर व्यक्ति को अपने पंचभूत शरीर से पांच पेड़ अवश्य लगाने चाहिये, ताकि उसके इस लोक में जाने पर प्रकृति का ऋण चुका सके।
     भोपाल के मशहूर गीतकार संजय सिंह ने गाँव की संस्कृति का गीत पढ़ते हुये पर्यावरण संरक्षण का कुछ ऐसे संदेश दिया-
"माना कठिन समय है थोड़ी कठिनाई तो होगी ही।
बारिश का मौसम है थोड़ी मिट्टी गीली होगी ही।।
उम्मीदों के बीज़ रोप दो अपने मन की क्यारी में,
अंकुर तो फूटेंगे ही अब हरियाली तो होगी ही।।
       निराला साहित्य समूह प्रयागराज के अध्यक्ष मुक्तप्राण सुधांशु पाण्डे "निराला" ने पर्यावरण पर एक बालगीत पढ़कर वाहवाही लूटी
"आओ मिलकर वृक्ष लगायें।
जीवन को ख़ुशहाल बनायें।।
हर मुरझाई बगिया का,
प्यारा सा पौधा बन जायें।।"
       लखनऊ उ. प्र. की साहित्यकार सुधा मिश्रा ने गीत पेश किया-
"आ गीत लिखूँ, संगीत लिखूँ।
तुझको अपना मनमीत लिखूँ।।"
अंत में आभार निराला साहित्य समूह प्रयागराज के अध्यक्ष सुधांशु पाण्डे "निराला" ने व्यक्त किया।