कुलपति बनने से पहले - एक सलाह

 


अशोक कुमार

चेयरमैन-सोशल रिसर्च फाउंडेशनकानपुर

कुलपति, निर्वाण विश्वविद्यालय, जयपुर ।

 पूर्व कुलपति श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय, निम्बाहेड़ा (राजस्थान )

 तथा

पूर्व कुलपति, कानपुर विश्वविद्यालय व गोरखपुर विश्वविद्यालय (उत्तरप्रदेश )


मैंने 13 फरवरी 2014 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में कार्यभार ग्रहण किया ! जिस समय मैंने विश्वविद्यालय में कार्यभार ग्रहण किया उसके लगभग एक सप्ताह बाद मैंने विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक से परीक्षा के संबंध में सूचना प्राप्त करनी चाहिए कि वर्ष 2014 की विश्वविद्यालय की परीक्षा किस तिथि से सुनिश्चित की गई है ! यह सुनकर परीक्षा नियंत्रक मुस्कुराने लगे और उन्होंने मुझसे कहा की कुलपति जी अभी तो 2013 की परीक्षा के परिणाम घोषित नहीं हुए और 2014 की कोई भी तैयारियां नहीं है ! मैं बहुत आश्चर्यचकित रहा क्योंकि इसके पूर्व मै छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर से आया था और वहां पर परीक्षा की तिथि 3 मार्च सुनिश्चित हो गई थी ! मैंने ऐसी कठिन परिस्थितियों में विश्वविद्यालय में पद ग्रहण किया ! वह एक बहुत मुश्किल प्रशन्न था कि विश्वविद्यालय की सन 2014 की वार्षिक परीक्षा कब प्रारंभ होगी और उसके परिणाम कब निकलेंगे !

मुझे इस बात का संतोष है कि विश्वविद्यालय से जुड़े समाज के सभी वर्गों ने मेरा सहयोग दिया और हमने सफलतापूर्वक सन 2014 की विश्व विद्यालय की वार्षिक परीक्षा पूर्ण करीं और उसके साथ ही साथ विश्वविद्यालय का परीक्षा परिणाम भी समय से घोषित किया ! इसके परिणाम स्वरूप विश्वविद्यालय का शैक्षणिक कार्यकाल समय से प्रारंभ होने लगा ! इसके कारण अभिभावकों और विद्यार्थियों की रुचि विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने में शुरू हो गई ! विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए हमें काफी संख्या में आवेदन भी प्राप्त होने लगे ! मैंने यह भी सुनिश्चित किया की विश्वविद्यालय से संबंधित जो भी महाविद्यालय हैं या जो महाविद्यालय भविष्य में खुलने जा रहे हैं उन सब में छात्रों को उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त हो ! इसके कारण नियमों की पालना की गई और नियमों की पालना करने में कुछ महाविद्यालयों को शिक्षण की अनुमति नहीं प्रदान करी गई ! विश्वविद्यालय सुचारू रूप से चल रहा था ! एक दिन मैं अपने कुलपति कार्यालय में आवश्यक कार्य कर रहा था तभी मेरे कुलपति सचिवालय से एक सूचना आई की एक गद्दावर नेताजी मुझसे मिलना चाहते हैं और उनके साथ दो तीन व्यक्ति भी हैं मैंने अपने सचिव से माननीय गद्दावर नेताजी को और उनके साथियों को शीघ्र अपने कार्यालय में आमंत्रित किया उनका स्वागत किया

उनका अभिवादन किया गद्दावर नेताजी ने मेरा आमंत्रण स्वीकार किया और फिर अपने साथ आए व्यक्तियों से मेरा परिचय कराया इसके बाद गद्दावर नेताजी महोदय ने मेरे कार्यकाल की भूरी भूरी प्रशंसा करी और उन्होंने यह बताया कि उन्हें बहुत गर्व है की बहुत वर्षों बाद लगभग 10 से 15 वर्षों बाद विश्वविद्यालय का शैक्षणिक सत्र नियमित हो गया है ! मैं उनकी इस प्रशंसा से काफी प्रसन्न हुआ

लेकिन मेरे मन में एक प्रश्न निरंतर घूमता रहा कि गद्दावर नेताजी के आने का क्या कारण हो सकता है मैं यह प्रश्न अपने मन में सोच ही रहा था कि फिर नेताजी ने अपने साथ में आए हुए व्यक्ति के तरफ इशारा किया कि कुलपति जी यह व्यक्ति बहुत दिनों से परेशान है ! अपने क्षेत्र में एक उच्च शिक्षा का केंद्र खोलना चाहता है ! एक महाविद्यालय स्थापना करना चाहता है लेकिन किन्ही कारणों से विश्वविद्यालय ने इसकी अनुमति अभी तक नहीं दी है ! उन्होने मुझ से निवेदन किया की इनके महाविद्यालय को शीघ्र से शीघ्र विश्वविद्यालय की संबद्धता प्रदान कर दीजिये जिससे उस क्षेत्र के ग्रामीण विद्यार्थियों को पढ़ने में आसानी हो ! मैंने तुरंत ही अपने सचिव को उस महाविद्यालय की पत्रावली लाने को कहा ! कुछ समय बाद सचिव महोदय ने उस महाविद्यालय की फाइल मेरे पास रख दी ! मैंने विद्यालय की पत्रावली को बहुत ध्यान पूर्वक देखा और उसमें यह पाया कि मैंने कुलपति के नाते उस महाविद्यालय को नियमानुसार अनुमति प्रदान नहीं करी थी ! उसमें कुछ कमियां थी जोकि महाविद्यालय ने पूरी नहीं करी थी ! मैंने माननीय गद्दावर नेताजी को अवगत कराया कि नियमानुसार प्रस्तावित महाविद्यालय में काफी कमियां है अतः इनको विश्वविद्यालय की संबद्धता प्रदान नहीं की जा सकती है ! नेताजी ने बहुत ही हंसकर कहा यह तो मुझे मालूम है और इसी कारण तो मैं इनके साथ आया हूं यदि इन्होंने सभी नियमों का पालन कर लिया होता तो विश्वविद्यालय महाविद्यालय को संबद्धता प्रदान कर देता और मै आपके पास क्यों आता ! कृपा करके इनके महाविद्यालय की पत्रावली को एक बार पुनः परीक्षण करा लीजिए और शीघ्र से शीघ्र इनको संबद्धता के अनुमति प्रदान कर दीजिए ! मैंने बहुत विनम्र होकर माननीय नेताजी से कहा -क्योंकि संबद्धता प्रदान करने की तिथि समाप्त हो चुकी है

और इनके महाविद्यालय में नियमानुसार काफी कमियां हैं इसलिए इनको संबद्धता इस वर्ष प्रदान नहीं की जा सकती! माननीय नेता जी ने एक बार पुनः मेरी ओर देखा और फिर उन्होंने महाविद्यालय के प्रबंधक की ओर देख कर मुझसे कहा अरे कुलपति जी कुछ धन ले लीजिए और इनका कार्य जल्दी से जल्दी कर दीजिए ! मैं एक बार पुनः मुस्कुराया ! मैंने कहा कि माफ कीजिएगा मैं विश्वविद्यालय के किसी भी कार्य के लिए कोई भी धन नहीं लेता हूं और मैं आपसे माफी चाहता हूं ! मैं इस महाविद्यालय को इस वर्ष संबद्धता प्रदान नहीं कर सकता ! मैं आशा करता हूं कि अगले सत्र में जब यह नियमानुसार सब कमियों को दूर कर लेंगे और समय सीमा के अंदर अपनी पत्रावली विश्वविद्यालय में जमा करेंगे तब इनको अगले वर्ष के लिए संबद्धता प्रदान की जा सकती है ! मेरा यह कहने के बाद माननीय नेताजी ने दो-तीन मिनट का मौन रखा और मुझसे कहा कि :मुझे बड़ा दुख है कि मैं इतनी दूर से बहुत आशा के साथ आपके पास आया था और आपने कार्य न करके मुझे काफी निराश किया ! इसके बाद जो उन्होने कहा वह मेरे जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण यादगार क्षण बन गया !

माननीय नेता जी ने कहा : “ माननीय कुलपति जी आप विश्वविद्यालय में नियमानुसार कार्य करते हैं , आप विश्वविद्यालय में नियम के विरुद्ध कार्य करने के लिए किसी की भी सिफारिश नहीं मानते हैं , इतना ही नहीं आप विश्वविद्यालय के नियम के विरुद्ध के कार्य करने के लिए कोई धन भी नहीं मांगते हैं तो मेरी यह समझ में नहीं आता कि आप फिर गोरखपुर विश्वविद्यालय में किस लिए आए हैं ?

मैंने एक बार पुनः माननीय नेता जी से कार्य न करने की क्षमा मांगी कुछ देर बाद माननीय नेता जी प्रबंधक महोदय के साथ धन्यवाद देते हुए मेरे कार्यालय से बाहर चले गए शिष्टाचार के अनुसार मैं भी माननीय महोदय को उनके वाहन तक छोड़ने गया और वापस अपने कुलपति कार्यालय मे आ गया ! माननीय नेता जी के जाने के बाद मैंने बहुत गंभीरता से उनके कहे हुए शब्दों के बारे में विचार किया ! मै यह नही सोच पा रहा की माननीय महोदय के वाक्यों को मै किस दिशा मे सोचूँ !! मुझे यह विचार करके बहुत दुख महसूस हुआ कि क्या कुलपति की समाज ऐसी छवि है की वो सिफारिश से या धन के लालच मे नियम विरुद्ध कार्य कर सकता है ? इस संस्मरण से एक ध्यान कुलपति के चयन प्रक्रिया पर भी जाता है ! क्या वास्तव में हमारे देश में इस प्रकार के कुलपति हैं जो कि ऐसा कार्य करते हैं , क्योंकि कई राज्यों में कुलपति रिश्वत लेते हुए पाए गए और उनको तत्काल पद से हटा दिया गया ! यह एक बहुत ही गंभीर और चिंता का विषय है ! वर्तमान में देखा गया है विश्वविद्यालय के कुलपति के लिए एक विज्ञापन आता है और उस विज्ञापन में कई शर्तें होती हैं और इन शर्तों के साथ विद्वान लोग आवेदन करते हैं ! आवेदन के बाद नियमानुसार एक खोज समिति बनती है जो कि आवेदनों का निरीक्षण करती है और उसके बाद 3 से 5 नाम माननीय कुलाधिपति को या सरकार को प्रेषित किए जाते है ! खोज समिति के द्वारा प्रस्तावित 5 नाम से माननीय राज्यपाल जी वार्ता भी करते हैं इन सब क्रियाओं के बाद जब कुलपति का नियुक्ति करने में 3 से 6 महीने लग जाते हैं तब यह मन में आशंका उत्पन्न होने लगती है कि जब सारी चयन प्रक्रिया पूरी हो गई तब इतना विलंब क्यों हो रहा है ? इस विषय में कई दिशा मे ध्यान आकर्षित होता है - चयन प्रक्रिया में कोई राजनीतिक कारण है ? या आर्थिक कारण है ? या गुणवत्ता की परख करने की कोई और विधि है जो आम व्यक्ति की समझ के बाहर है ?

मैं सोचता हूं और अपने साथियों से निवेदन करता हूं यदि आपकी कुलपति बनने की इच्छा है ( मैं समझता हूं कि एक शिक्षक की यह इच्छा होती है कि वह अपने क्षेत्र में सबसे ऊंचे पद पर जाए जो कि कुलपति का पद होता है ) तब आप उस पद पर आवेदन करने से पहले मेरी संस्मरण का ध्यान करिएगा और फिर कुलपति बनने की इच्छा कीजिएगा !

आइए हम सब मिलकर यह प्रयास करें की किसी भी विश्वविद्यालय के दिशा निर्देशन के लिए एक विद्वान , ईमानदार और अच्छा व्यक्ति विश्वविद्यालय का कुलपति बने ! कुलपति के चयन प्रक्रिया मे पारदर्शिता होनी चाहिए ! एक ऐसा कुलपति बने जो समाज के हित को ध्यान मे रखते हुए विद्यार्थियों को अच्छी शिक्षा प्रदान करे ! हमारा विद्यार्थी एक अच्छा इंसान बने और राष्ट्र की सेवा करे !