चार माह चौमासा।
कभी धूप,तो कभी नीर है,
आशा और निराशा।।
वरुणदेव की दया हो गई,हर प्राणी पुलकित है।
बहुत दिनों के बाद धरा खुश,तबियत आनंदित है।।
स्रोत नीर के सूख गए थे,
रुकने को साँसें थीं।
नित्य उदासी में मन रहता,
गढ़ती नित फाँसें थीं।।
बारिश की बूँदों से पर अब,मिला खुशी का ख़त है।
बहुत दिनों के बाद धरा खुश,तबियत आनंदित है।।
बेचैनी में मन खोया था,
देह हुई थी बेदम।
पीर,वेदना बहुत बढ़ी थी,
सता रहा था नित ग़म।।
इन मेघों का अभिनंदन है,लगता सुखद सतत् है।
बहुत दिनों के बाद धरा खुश,तबियत आनंदित है।।
बहा पसीना रोज़ अनवरत्,
अब पावस का गायन।
जल की बूँदें करतीं देखो,
मौसम का अभिनंदन।।
सकल उदासी विदा हो गई, हर पल उल्लासित है।
बहुत दिनों के बाद धरा खुश,तबियत आनंदित है।।
सूखा है तो,बाढ़ कहीं है,
सड़कों पर है पानी।
चौमासे की भैया देखो,
बिलकुल अलग कहानी।।
तीज और त्यौहार महकते,पावन शय हर्षित है।
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