यह कैसा विकास है?

विगत 2 वर्षों से संपूर्ण विश्व के लोग लगभग अपने घरों में कैद हैं| इस वैज्ञानिक युग में सभी सुविधाएं होने के बावजूद, तीव्र यातायात के साधन उपलब्ध होने के बाद भी लोग अपनी मनपसंद जगहों पर घूमने नहीं जा पा रहे हैं कहने को तो हमारे पास आज बेहतरीन बहुमंजिला और आधुनिक सुख सुविधाओं से संपन्न स्कूल, कॉलेज और कई संस्थान है लेकिन हम अपने बच्चों को वहां पढ़ने नहीं भेज पा रहे हैं| आधुनिकतम रेस्टोरेंट्स, होटल्स उपलब्ध है किंतु हम उनमें अपनी मनपसंद का खाना खाने या अपने सगे-संबंधियों, दोस्तों के साथ विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों का आनंद लेने नहीं जा पा रहे और इसका कारण एक छोटा सा कीड़ा जिसे हमारे आधुनिकतम कहे जाने वाले वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस नाम दिया है| 2 वर्ष भी जाने के पश्चात भी वे यह पता करने में सक्षम नहीं है कि वास्तव में यह वायरस क्या है?

कहां से आया है? और मानवता को इससे बचाने का उपाय क्या है? विभिन्न प्रकार के टीकों का विकास विभिन्न देशों ने किया किंतु वह पूरी तरह से कारगर है भी इस पर स्वयं विज्ञान को ही संदेह है| अब यह सब देखकर जेहन में एक ही बात आती है कि विकास की दौड़ में दौड़ते-दौड़ते हम कहां पहुंचे हैं? क्या हमने वास्तव में विकास किया है? अगर किया है तो यह कैसा विकास है जिसके होते हुए भी मैं मजबूरन अपने घर की चारदीवारी के अंदर आज नजरबंद हो गया हूं? आज से लगभग 30 वर्ष पूर्व तक खेतों में काम करने वाला कृषक अपने जानवरों के मुंह पर एक जाल लगाता था ताकि वह उनका ध्यान इधर-उधर ना जाए और वह हल अथवा अन्य कृषि कार्यों में ठीक से उपयोग किया जा सके और प्रकृति का खेल देखिये पिछले डेढ़ वर्षों से कुछ उसी प्रकार का जाल जिसे आप मास्क कह रहे हैं संपूर्ण मानवता के मुंह पर लग गया है| वह किसान तो एक रस्सी से बना हुआ खुला मास्क अपने जानवरों के मुंह पर लगाता था किंतु करोना नमक नामक कीड़े ने तो आपको एक नहीं दो-दो मास्क लगाने के लिए मजबूर कर दिया है और उसके बावजूद भी आप सुरक्षित हैं इसकी कोई गारंटी नहीं है| पुनः मन में आता है कि हमने कितना अधिक विकास कर लिया है कि जिस उम्र में हम बेखौफ अपने मोहल्ले गलियों में खेला करते थे| आज हमारे बच्चे विगत अठारह माह से अपने घरों में ही काला पानी की सजा भुगत रहे हैं और माता पिता के पास कोई समाधान नहीं है| वे मजबूर हैं कुछ कर नहीं सकते हैं बस| यदपि समाचार पत्रों के माध्यम से जानकारी निरन्तर प्राप्त हो रही है सड़कों का निर्माण सरकारों के द्वारा बदस्तूर जारी है| ऑल वेदर रोड्स का निर्माण कार्य जोरों पर है| वो अलग बात है कि बरसात के आते ही अधिकांश मार्ग बंद है और ऑल वेदर रोड पर भी कई-कई दिनों तक ट्रैफिक नहीं चल पा रहा है| अब आप इसे ही विकास कहेंगे, क्या यही विकास है ? क्या इसी प्रकार की परिस्थितियों को के लिए हमने इतनी तरक्की की? क्या इसी विकास के लिए हमने अपनी प्रकृति का अंधाधुंध दोहन नहीं किया? अभी भी क्या हमें समझ में नहीं आ रहा है कि प्रकृति के उसी अंधाधुंध दोहन का परिणाम है वर्तमान परिस्थितियां अथवा हम अब भी समझना ही नहीं चाहते हैं| आपने जिसे आज कोविड-19 महामारी का नाम दिया है और विगत 2 वर्षों से निरंतर आप इसके खौफ में जी रहे हैं, जहां तक मैं समझता हूं, सब कुछ बंद है, लोग घरों में कैद हैं, अपने ऑफिस नहीं जा रहे हैं, वर्क फ्रॉम होम का कल्चर डेवलप हो रहा है, ऑनलाइन शिक्षण चल रहा है| तरह-तरह के अवसाद का सामना आम आदमी कर रहा है और दूसरी ओर सरकारों के द्वारा सड़कों का निर्माण निर्माण, नए-नए मार्गों का निर्माण, भवनों का निर्माण, पुलों का निर्माण बदस्तूर जारी है| उअही सरकारें जनता को समझा रही है कि आप घर से ही वर्क फ्रॉम होम और ऑनलाइन माध्यम से ही हमें अपना 70% से अधिक कार्य को निपटायें| आने वाले समय में आपको इन्टरनेट के माध्यम से अपने अधिकतर कार्य करने होंगे किंतु वही दूसरी तरफ इतने सारे निर्माण कार्यों का के ठेके निरंतर बनते जा रहे है| टीकाकरण को धन नहीं है किन्तु ठेके पर करोड़ों बाँटने के लिए हैं| जब घर से अब सब कार्य सम्पन्न करना है तो इंटरनेट सुविधा बढ़ाये जाने का औचित्य समझ आता है किन्तु सड़कों का अंधाधुंध विस्तार बिलकुल समझ से परे है | इस प्रकार के विरोधाभासी तर्कों से न तो देश का कोई लाभ होने वाला न ही जनता का | अभी शायद जनता की समझ में यह नहीं आ रहा है और आये भी कैंसे? लोकतंत्रात्मक सरकार की आलोचना करने वाले वर्ग के विद्वानों ने इसी कारण इस व्यवस्था को अकुशल एवं बेकार व्यवस्था माना था और वर्तमानपरिस्थितियों को देखते हुए हमें भी यही प्रतीत हो रहा है कि जब तक किसी भी देश में वास्तविक शिक्षा ना हो, लोगों को वास्तविक ज्ञान ना हो, समझ ना हो, तब तक किसी भी प्रकार की लोकतांत्रिक व्यवस्था उस देश में अकुशल की साबित होगी और यह स्थिति केवल लोकलुभावन और अपने हित में कार्य करने वाले लोगों के लिए सार्थक सिद्ध होगी|

संक्षेप में,अब वह समय आ गया है कि जनता को सोचना होगा कि सही अर्थों में विकास क्या है? क्या प्रकृति के विनाश पर इसकी नीव सम्पूर्ण मानव जाति के हित में है भी या नहीं? मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जब वह सब कुछ इन्टरनेट के मध्यम से ही करेगा तो वह सामाजिक किस पर से रह पायेगा और ऐसे स्थिति भविष्य में सभ्यताओं के अस्तित्व पर खतरा ही होगी| लोकतान्त्रिक सरकारों की स्थपना के मूल में जन कल्याण की भावना ही निहित थी जनता के लिए उपर्युक्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ स्थापित करना इन सरकारों का आवश्यक कार्य है | देश और राज्य में रोजगार के नए अवसर उत्पन्न करना ही इनका कार्य होना था| लेकिन भारत की स्थिति को देखते तो यह लग रहा कि धीरे-धीरे लोकतान्त्रिक सरकारों का कार्य केवल ठेका बाँटना ही रह जायेगा|अतः यदि वास्तव में हमें वास्तविक विकास चाहिए तो जनता को वास्तविक अर्थों में शिक्षित करना होगा जो अपने प्रतिनिधि चुनने में लोक लुभवाने भाषण से प्रभवित न हों अपितु प्रतिनिधि की योग्यता और गुणों को ध्यान में रखे| जनता को राजनैतिक प्रतिनिधियों के लिए किसी नयूनतम योग्यता और एक मानक परीक्षा की मांग को उठाना चाहिए ताकि इस क्षेत्र में भी योग्य एवं कृतसंकल्प लोगों का रुझान हो सके I

                     डॉ मेहरबान सिंह गुसाईं

                          देहरादून


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