मेरिकी हवाई हमले से बौखलाया तालिबान,तिलमिलाया पाकिस्तानl

तालिबान को भारी जानमाल का नुकसान।

अमेरिका ने अपने दिए गए वचन के अनुसार अपनी इन्फेंट्री यानी थल सेना तो अफगानिस्तान से समय के पूर्व हटा ली है।अभी कुछ सैनिक वहां से अमेरिका वापस जाने के लिए शेष हैंl अमेरिका के सैनिकों के जाते ही तालिबान ने अफगानिस्तान के 50% हिस्सों से ज्यादा में कब्जा कर लिया है।काबुल और कंधार में कब्जा करना शेष हैl इसी तारतम्य में पाकिस्तानी सेना के कुछ कमांडर और आई,एस,आई के बड़े अधिकारी तथा अन्य पाकिस्तानी समर्थक आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा ने लगातार अफगानिस्तान के खिलाफ तालिबानी आतंकवादियों का साथ दिया है । 
                                      पेंटागान के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने एक वक्तव्य में बताया कि अमेरिकी वायु सेना ने अफगान नेशनल डिफेंस एंड सिक्योरिटी फोर्स का समर्थन करते हुए तालिबानी ठिकानों पर पिछले दिनों 6 से 8 हवाई हमले किए जिसमें तालिबानी आतंकवादियों द्वारा लूटी गई अमरीकी 10 बख्तरबंद गाड़ियां तथा तोप खाने को पूरी तरह नष्ट कर दिया है , और लगभग 800 से 1000 तालिबानियों को मौत के घाट उतार दिया है। अमेरिकी हवाई हमले से न सिर्फ तालिबान बल्कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान नियाजी काफी बौखला गए हैं। इमरान खान को यह भय सताने लगा है कि कहीं अमेरिकी रॉकेट लॉन्चर या बम पाकिस्तान की सीमा में ना बरसने लगे, और अमेरिका उसे बुरी तरह नाराज ना हो जाए। एक अमरीकी अज्ञात रक्षा सैनिक अधिकारी ने बताया कि कंधार, वरदूत, गजनी, लोगर और कुनार ,कपीसा जैसे प्रांतों में हवाई हमला कर तालिबानी आतंकवादियों को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। वहीं दूसरी तरफ अफगानिस्तान की नेशनल डिफेंस एंड सिक्योरिटी फोर्स ने सुरक्षाबलों की कार्रवाई कर आतंकवादी संगठन तालिबान के 122 आतंकवादी मारे गए तथा 100 से ज्यादा घायल हुए हैं। अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी फवाद अमन ने ट्वीट करके बताया यह अफगानिस्तान ने लोगर, कुनार, पकिया, हेलमंद आदि पर ताबड़तोड़ हमले कर आतंकवादियों को दहशत में ला दिया है। इसके बाद तालिबानी आतंकवादियों के प्रवक्ता ने कहा कि हम वार्ता के लिए तैयार हैं, बशर्ते अफगान में अशरफ गनी को राष्ट्रपति पद से हटना होगा एवं साझा सरकार चलानी होगी। इसके लिए अफगानिस्तान किसी भी शर्त पर तैयार नहीं है। 
                              अमेरिकी तथा अफगानिस्तान के संयुक्त हमले से यह तो स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान लगातार अफगानिस्तान के खिलाफ तालिबानी आतंकवादियों को तन,मन, धन से सहायता करने में जुटा हुआ है,और उसका आतंकवादी चेहरा पूरी दुनिया के सामने आ गया है। उधर अफगानिस्तान सीमा पर लगे तजाकिस्तान की सीमा पर तजाकिस्तान सरकार ने लगभग 25000 सैनिक भेज कर तालिबान से रक्षा के लिए कड़ा युद्ध अभ्यास किया है, यह सैन्य अभ्यास तालिबान के आतंकवादियों संगठन कि उसकी सीमा से लगे अफगान क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियों से निपटने के लिए किया है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि तालिबान और पाकिस्तान,अफगानिस्तान के खिलाफ अकेले लड़ कर कार्रवाई कर रहे हैं। उधर चीन उनके इंजीनियर के खिलाफ बस हमले से पाकिस्तान से खासा नाराज है, और पाकिस्तान में चीनी इंजीनियर एके-47 राइफल के साथ दहशत में काम कर रहे हैं। इस तरह पाकिस्तान को अब न सिर्फ अमेरिका, तजाकिस्तान, भारत और अफगानिस्तान की सेना से मुकाबला करना होगा। तालिबान तथा पाकिस्तान की सेना इसलिए भी घबरा गई है कि अमेरिका अफगानिस्तान को अब अकेला नहीं छोड़ने वाला है। ऐसे में भारत के साथ पुराने मित्र अफगानिस्तान की स्थिति थोड़ी बदल सी गई है। भारत मानसिक रूप से तो अफगानिस्तान के साथ है। पर वह अभी सेना भेजने की स्थिति में नहीं है। अभी भी अफगानिस्तान सेना के साथ अमेरिकी सैनिक तालिबान के साथ युद्ध करने में रत हैं। अफगानिस्तान अब अकेला नहीं रह गया है। रूस भी अपना 1995 और 2000 में हुए उसके तालिबान औ र पाकिस्तान से हुए अपमान का बदला तालिबान तथा अन्य आतंकवादियों संगठन से लेने का मन बना सकता है। ऐसे में तालिबानी तथा अन्य आतंकवादियों संगठन के सामने पाकिस्तान के साथ अजीब स्थिति बन जाएगी, एवं सबसे ज्यादा नुकसान पाकिस्तान को ही झेलना पड़ेगा।क्योंकि वह तालिबान तथा अफगानिस्तान की लड़ाई में तालिबानी आतंकवादियों का साथ खुलकर देने में लगा हुआ है।पाकिस्तान की आम जनता इस बात के खुले विरोध में सामने आ गई है।













    संजीव ठाकुर
    छत्तीसगढ़

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