अनुग्रह की भावना अर्थात् स्वयं अपना और दूसरे के उपकार की भावना से धनादि द्रव्यों का त्याग दान है। दान देने से दाता को पुण्य संचय होता है यह स्वोपकार है तथा जिन्हें दान दिया जाता है उसके सम्यग्ज्ञान आदि की वृद्धि होती है यह पर का उपकार है। और दान की विधि विशेष, दान में दिया गया द्रव्यविशेष, दान दाता विशेष और दान ग्रहणकर्ता विशेष के कारण से दान में विशेषता आती है।
मुनि, आर्यिका आदि पात्रों को यथा विधि भक्ति, विनयख् आदर के साथ शुद्ध भोजन करना आहारदान है। मुनि आदि को ज्ञानाभ्यास के लिए शास्त्र अध्यापक का समान जुटा देना ज्ञानदान है। मुनि आदि व्रती त्यागियों के रोगग्रस्त हो जाने पर उनको निर्दाेष औषधि देना, उनकी चिकित्सा (इलाज) का प्रबंध करना, उनकी सेवा सुश्रुषा करना औषधदान है। वन पर्वत आदि निर्जन स्थानों में मुनि आदि व्रती त्यागियों को ठहरने के लिये गुफा मठ आदि बनवा देना जिससे वहाँ निर्भय रूप से घ्यान आदि कर सकें, अभयदान है।
दयादान या करुणादान- दीन दुःखी जीवों के दुःख दूर करने के लिए आवश्यकता के अनुसार दान करना दयादान है। यदि कोई दुखी दरिद्री भूखा हो तो उसको भोजन करना चाहिये, यदि निर्धन विद्यार्थी हो तो उसको पुस्तक, छात्रवृत्ति (वजीफा) ज्ञानाभ्यास का साधन जुटा देना चाहिये। गरीब रोगियों को मुफ्त दवा बाँटना उनेक लिये चिकित्सा का प्रबंध कर देना, यदि दीन दरिद्र दुर्बल जीव को कोई सता रहा हो तो उसकी रक्षा करना, भयभीत जीव का भय मिटा कर निर्भय करना, नंगे को वस्त्र देना, प्यासे को पानी पिलाना तथा अन्य किसी विपत्ति में फँसे हुए जीव का करुणा भाव से सहायता करना, किसी अनाथ का पालन पोषण करना, विधवा अनाथिनी की सहायता करना, निर्धन लड़के लड़कियों का विवाह सम्बंध करा देना, यह सब दयादान या करुणादान है।
समदान-समाज, जाति बिरादरी में सब व्यक्ति एक समान होते हैं। धनी धनहीन का भेद होते हुए भी सबके अधिकार बराबर होते हैं। उनमें छोटा बड़ापन नहीं होता, अतः समाज उन्नति के लिए जो धन खर्च किया जावे, प्रेम संगठन बढ़ाने के लिये जो द्रव्य लगाया जावे यह सब समदान है। जैसे-धर्मशाला बनवाना, विद्यालय पाठशाला खोलना, प्रीतिभोज करना, सभा समिति स्थापित करना, प्रचारकों द्वारा प्रचार करना इत्यादि। अन्वयदान- अपने पुत्र, पुत्री, भाई बहिन, भानजे, भतीजे आदि सम्बन्धियों को द्रव्य देना अन्वयदान है।
इन चारों दानों में से पात्रदान भक्ति से दिया जाता है। करुणादान दयाभाव से किया जाता है। समदान सामाजिक प्रेम से किया जाता है और अन्वयदान सम्बंध के स्नेह से दिया जाता है।
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