मठ महंत मनी और मर्डर

 समाज के आस्था के केंद्रों में मनी और मर्डर के खेल का इतिहास पुराना है। सत्ता और दौलत पर वर्चस्व की हवस ने मठों में अक्सर खूनी  संघर्ष होते रहे हैं।। हाल ही में प्रयागराज स्थित बाघंबरी मठ के महंत और अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी की संदिग्ध मौत से एक बार फिर से कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। कहीं न कहीं, इस मौत के पीछे गुरू चेलों का आपसी सत्ता संघर्ष एक बड़ा कारण है।

       देश में मठों के इतिहास की बारीकी से जाँच की जाये तो वहाँ होने वाले हिंसक संघर्षों की दास्तांने जन मानस को चौंकाती है। अयोध्या का इस मामले में सबसे ज्यादा रक्तरंजित इतिहास रहा है। वहाँ अक्सर मठों की सत्ता हासिल करने के लिए कहीं गुरु तो कहीं चेले एक दूसरे को ठिकाने लगाते रहे हैं। अयोध्या में इस समय तकरीबन 7000 मंदिर हैं। इनमें सत्ता संघर्ष के चलते अक्सर मार-पीट, हत्या, लूट और गैंगवार के मामले मंजरे आम पर आते रहते हैं। अयोध्या के पूर्व एसपी सिटी  रतन कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि जहाँ राम मंदिर के लिए आंदोलन में यहाँ के साधु-महंत जुड़े थे।वहीं मंदिरों में प्रॉपर्टी और गद्दी पर अधिकार जमाने के लिए  हत्या तथा ख़ूनी संघर्ष की  घटनाएं अक्सर होती रहती है। 1990  में राम जन्मभूमि मंदिर के पुजारी रहे महंत लाल दास की भी हत्या हुई थी। मामले के पीछे प्रॉपर्टी का विवाद सामने आया था।देश के अन्य मठों पर सत्ता और वर्चस्व की लड़ाई अक्सरों बेसतर समाचार पत्रों  की सुर्खियाँ बनती रही हैं।
      समय की माँग है कि महंत नरेन्द्र गिरि की संदिग्ध मौत के मामले की बारीकी से जाँच कर इससे जुड़े सभी तथ्यों को उजागर किया जाये और अपराधियों को सख़्त से सख़्त सज़ा दी जाये ताकि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृति रोकी जा सके।
           ए. एच. इदरीसी
               कानपुर

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