पूजा कोटि समं स्तोत्रं, स्तोत्र कोटि समं जपः।
जपः कोटि समं ध्यानं, ध्यानं कोटि समं क्षमा।।
मानव जीवन में क्षमा का बहुत महत्व है। क्षमा से बहुत बड़े बड़े केस सुलझ जाते हैं, यहां तक कि मृत्यु की सजा भी क्षमा मांगने से खत्म होने के प्रकरण आये हैं। कुछ राजनेताओं को क्षमा नहीं मांगने पर फांसी की सजा हुई है। पाकिस्तान के जुल्फिकार अली भुट्टो जैसों के उदाहरण हमारे सामने हैं। यद्यपि कुछ प्रकरण स्वाभिमान से जुड़े होते हैं, जिसके कारण लोग क्षमा मांगने के स्थान पर फाँसी का वरण कर लेते हैं। किन्तु यहां क्षमा की क्षमता की बात है कि क्षमा फांसी को भी टाल सकती है। भारत में भी फांसी की सजायाफ्ता व्यक्ति के लिये अंतिम अवसर होता है राष्ट्रपति द्वारा क्षमादान का।
रास्ते चलते भी हमलोग प्रायः देखते हैं कि यदि किसी के बाहन ने छोटी सी भी टक्कर मार दी और सॉरी बोल दिया तो मैटर वहीं खत्म हो जाता है और यदि क्षमा नहीं मांगी तो मामला बहुत बढ़ जाता है, हाथा-पाई, सिर-फुटौअल, कोर्ट-कचहरी सब हो जाता है। इसलिए दो अक्षरों के क्षमा या सॉरी में बहुत शक्ति निहित है।
जैन धर्म में श्रावकों और श्रमणों को क्षमा धारण करने के लिए कहा गया है। श्रावकों को एक मंत्र दिया गया है-
क्षमाशस्त्रं करे यस्य किंकरः किं करिष्यति।
अतृणे पतिते बह्नि स्वयमेवोपशाम्यते।।
अर्थात् जिसके हाथ में क्षमा रूपी हथियार है, दुष्ट उसका कुछ भी नहीं कर सकता है, क्योंकि सामने वाला बहुत गालियां देते हुए भी आ जाये और प्रत्युत्तर में यदि उसे गाली नहीं मिली, स्मित चेहरा ही दिखा तो वह स्वतः ही शांत हो जायेगा। जैसे कि अग्नि प्रज्ज्वलित है, यदि उसमें त्रण-ईंधन न डाला जाये तो वह स्वयं ही शांत हो जायेगी। उसी तरह क्रोध को शांत करने के लिए कहा गया है।
क्षमा की और उत्कृष्टता बताते हुए कहा गया है-
गाली सुन मन खेद न आनो, गुन कौ औगुन कहि है अयानो।
कहि है अयानौ वस्तु छीने, बांध मार बहुविध करै।
घरतैं निकारै तन विदारै बैर जो न तँह धरै।।
यदि कोई गाली दे तो, आपके गुणों को भी दोष बताये तो, क्षमाधारण करना चाहिए, यहां तक कि आपकी वस्तु छीन ले, बांधे, मारे, घर से भी निकाल दे तो भी क्षमा धारण करते हुए यह सोचना चाहिए कि हमने पूर्व में या पूर्व भव में ऐसे कुछ कर्म किये होंगे जिनके प्रतिफल स्वरूप मेरे साथ यह व्यवहार हो रहा है, ऐसा सोचकर क्षमा धारण करे, वह उत्कृष्ट क्षमा है।
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