लहर दर्दो ग़म की गुज़रने दो यारों।
समन्दर ग़मों का सिमटने दो यारों।
मुहब्बतको पलपल बिखरने दो यारों।
अभी प्यार को और बढ़ने दो यारों।
रखो भावनाओं को काबू में अपनी,
क़दम भूल कर मत बहकने दो यारों।
कतर कर परों को न पिंजड़े में डालो,
खुले में परिन्दे चहकने दो यारों।
ज़मीं चाहती है चमक आदमी की,
सितारों को नभ में चमकने दो यारों।
भरेंगे सभी ज़ख़्म उथले व गहरे,
ज़रा वक़्त थोड़ा गुज़रने दो यारों।
मुनासिब नहीं है लड़ाई का होना,
मुहब्बत से हर काम बनने दो यारों।
शराफ़त काअपनाचलनछोड़नामत,
अकड़ते फिरें जो अकड़ने दो यारों।
समन्दर की तह नापनी है जिसे भी,
उसे और गहरे उतरने दो यारों।
हमीद कानपुरी
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