एक नजरिया



एक रोचक कहानी प्रस्तुत है...

अवसाद से ग्रस्त लगभग पचास वर्षीय एक सज्जन की परेशानियों और निराशा की स्थिति से न उबर पाने के कारण उन की पत्नी ने एक मनोवैज्ञानिक सलाहकार से मिलने का समय लिया जो ज्योतिषी भी थे। और बहुत प्रयास कर के अपने पति को उनका परिचय एक ज्योतिष के रूप में दिया और मिलवाया।

पत्नी बोली:- "ये भयंकर डिप्रेशन में हैं, कुंडली भी देखिए इनकी।"
और बताया कि इन सब के कारण मैं भी ठीक नही हूँ।

मनोवैज्ञानिक /ज्योतिषी ने कुंडली देखी सब सही पाया। अब उन्होंने काउंसलिंग शुरू की, कुछ पर्सनल बातें भी पूछी और सज्जन की पत्नी को बाहर बैठने को कहा।

सज्जन बोलते गए...
बहुत परेशान हूं...
चिंताओं से दब गया हूं...
नौकरी का प्रेशर...
बच्चों के एजूकेशन और जॉब की टेंशन...
घर का लोन, कार का लोन...
रिटायरमेंट का समय...
कुछ मन नही करता...
दुनिया मुझे तोप समझती है...
पर मेरे पास कारतूस जितना भी सामान नही....
मुझे कोई कुछ समझता नहीं..
मैं अकेला हूं..
सब अपनी दुनिया में व्यस्त हैं..
दुःखी और बीमार हूं...
भूख और नींद से वंचित हो रहा हूं..
शारीरिक रूप से भी कमज़ोर होता जा रहा हूं...

मैं डिप्रेशन और निराशा में हूं...
कहते हुए पूरे जीवन की किताब खोल दी।

तब मनोवैज्ञानिक ने कुछ सोचा और पूछा, "दसवीं में किस स्कूल में पढ़ते थे?"

सज्जन ने उन्हें स्कूल का नाम बता दिया।

मनोवैज्ञानिक ने कहा:-
"आपको उस स्कूल में जाना होगा। आप वहां से आपकी दसवीं क्लास का रजिस्टर लेकर आना, अपने साथियों के नाम देखना और उन्हें ढूंढकर उनके वर्तमान हालचाल की जानकारी लेने की कोशिश करना। सारी जानकारी को डायरी में लिखना और एक माह बाद मुझे मिलना।"

सज्जन स्कूल गए, मिन्नतें कर रजिस्टर ढूँढवाया फिर उसकी कॉपी करा लाए जिसमें 120 नाम थे। महीना भर दिन-रात कोशिश की फिर भी बमुश्किल अपने 75-80 सहपाठियों के बारे में जानकारी एकत्रित कर पाए।
आश्चर्य!!!
उसमें से 20 लोग मर चुके थे...
7 विधवा/विधुर और 13 तलाकशुदा थे...
10 नशेड़ी निकले जो बात करने के भी लायक नहीं थे...
कुछ का पता ही नहीं चला कि अब वो कहां हैं...
5 इतने ग़रीब निकले की पूछो मत...
6 इतने अमीर निकले की यकीन नहीं हुआ...
कुछ कैंसर ग्रस्त, कुछ लकवा, डायबिटीज़, अस्थमा या दिल के रोगी निकले...
एक दो लोग एक्सीडेंट्स में हाथ/पाँव या रीढ़ की हड्डी में चोट से बिस्तर पर थे...
कुछ के बच्चे आवारा या निकम्मे  निकले...
1 जेल में था...
एक 50 की उम्र में सैटल हुआ था इसलिए अब शादी करना चाहता था, एक अभी भी सैटल नहीं था पर दो तलाक़ के बावजूद तीसरी शादी की फिराक में था...

महीने भर में दसवीं कक्षा का रजिस्टर भाग्य की व्यथा ख़ुद सुना रहा था...

मनोवैज्ञानिक ने पूछा:- "अब बताओ डिप्रेशन कैसा है?"

इन सज्जन को समझ आ गया कि ...
उसे कोई बीमारी नहीं है, वो भूखा नहीं मर रहा, दिमाग एकदम सही है, कचहरी पुलिस-वकीलों से उसका पाला नही पड़ा, उसके बीवी-बच्चे बहुत अच्छे हैं, स्वस्थ हैं, वो भी स्वस्थ है, डाक्टर, अस्पताल से पाला नहीं पड़ा...
सज्जन को महसूस हुआ कि दुनिया में वाकई बहुत दु:ख है और मैं बहुत सुखी और भाग्यशाली हूँ।

दूसरों की थाली में झाँकने की आदत छोड़ कर अपनी थाली का भोजन प्रेम से ग्रहण करें। तुलनात्मक चिन्तन न करें, सबका अपना प्रारब्ध होता है।
और फिर भी आपको लगता है कि आप डिप्रेशन में हैं तो आप भी अपने स्कूल जाकर दसवीं कक्षा का रजिस्टर ले आएं और..

इस कहानी के माध्यम से दो प्रमुख बातों की तरफ आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहती हूं।

पहला मुद्दा ये कि यह सत्य है सभी मनुष्यों को अपने परेशानी,अपनी उलझनें अपनी समस्याएं बहुत विकट और कष्टकारी लगती हैं। यह भी संभव है कि आपको शारीरिक बीमारियों से ग्रस्त भी हो और इसी कारण से लोग अवसाद,तनाव, उलझनों से ग्रस्त रहते हैं और दुःखी भी रहते हैं।
कई बार अपनी इस अवस्था में लगातार रहने के कारण शारीरिक रूप से भी बीमार हो जाते हैं।
यंहा तक कि उनके परिवार में तनाव और अवसाद का वातावरण बन जाता है और परिवार  के लोग भी दुःखी रहते हैं। प्राय ऐसा व्यक्ति अकेलापन और निराशा भी महसूस भी करता है। उसके अंदर एक नकारात्मक और निराशा पूर्ण सोच भी विकसित हो जाती है।
साथ ही, परिवार और वातावरण में कहीं कुछ अच्छा और सुखद भी घटित होता है,तो ऐसे व्यक्ति उन पलों का भी रसास्वादन नहीं कर पाते हैं,अर्थात खुशी,सुकून और सुख के पल का आनंद नही उठा पाते हैं।

एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे की तरफ आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहती हूं कि यदि आपके पास किसी भी तरह कि समस्या,उलझन,तकलीफ,नकारात्मक परिस्थितियां,अवसाद, दुःख,अकेलापन,निराशा आदि है,तो ये बहुत आवश्यक है कि अपनी बात कहें। इससे न केवल आपका मन हल्का होगा अपितु आपको समाधान भी मिल सकेंगे।

सत्य है कि जीवन में आपदा,परेशानी,उलझने, समस्याएं, दुःख आते ही हैं तो क्या हुआ इनके समाधान के रास्ते भी मिलते हैं और सुख तथा खुशियों के पल भी आते हैं। एक सकारात्मक सोच रखना और सुदृढ़ मनौवैज्ञानिक प्रतिरोधात्मक क्षमता बनाए रहना आवश्यक है।

अनेकानेक समस्याओं के बीच जो भी खूबसूरत, आशापूर्ण,सुखद,अनमोल पल हैं....
वो ही एक बेमिसाल जिंदगी है।

जिन्दगी एक आईने की तरह है,
ये तभी मुस्कुरायेगी जब हम मुस्कुरायेंगे..!!

कुमुद श्रीवास्तव