तथाकथित अमृत महोत्सव का विवेचना करता 'द राजद समाचार' का अगस्त अंक- गोपेंद्र

 आजादी के 75 में वर्षगांठ के अवसर पर संपूर्ण भारत वर्ष में मनाए जा रहे तथाकथित अमृत महोत्सव को समालोचना करता यह अंक आजादी के मूल तत्व और लोकतांत्रिक मूल्यों को आम जनों के सामने रखने का काम करता है। आजादी समानता और भाईचारा के स्लोगन के साथ प्रकाशित जश्न ए आजादी का 75  वॉ साल विषय को समर्पित यह अंक मुख्य रूप से बिहार में आजादी के 75 वर्षों में क्या खोया क्या पाया और इसके साथ ही इस अंक में जंग ए आजादी के छुपे हुए हीरों को भी आम जनों के सामने लाने का काम किया गया है।जोकि ना सिर्फ प्रशंसनीय है बल्कि संग्रहणीय और ऐतिहासिक तथ्यों के साथ न्याय  है।

प्रस्तुत अंक में कुल 21 आलेख समावेशित किए गए हैं जिसमें 10 जश्न ए आजादी के 75 साल का बिहार की पृष्ठभूमि विश्लेषण करते हुए दिख रहे हैं।वहीं अगले ग्यारह आलेख जंग ए आजादी के छुपे हीरो को समर्पित है।

   प्रस्तुत पत्रिका के अंक की शुरुआत सुप्रसिद्ध "जनकवि नागार्जुन" की सुप्रसिद्ध कविता कि निम्न पंक्तियों से किया गया है...
 "किसकी है जनवरी,
किसका अगस्त है?
कौन यहां सुखी,
कौन यहां मस्त है?"
  उपरोक्त पंक्तियों के द्वारा समाज को निर्देशित करने का काम किया गया है।
  संपादकीय आलेख में पिछले दिनों बिहार में हुए राजनीतिक बदलाव की खबर को प्रमुखता से जगह दी गई है। संपादकीय का शीर्षक है "बिहार से भाजपा की उल्टी गिनती शुरू"....
  संपादक अरुण आनंद ने लिखा है भारत के संसदीय राजनीति में इतना खौफनाक दौर कभी नहीं आया।लालू प्रसाद यादव,ममता बनर्जी,चंद्रशेखर राव,हेमंत सोरेन सरीखे दर्जनों राष्ट्रीय नेताओं को सरकारी एजेंसियों के माध्यम से डराया और बदनाम किया जा रहा है जिसमें गोदी मीडिया का सहयोग भी है। पता नहीं इस दौर में कब कौन गिरफ्तार हो जाए और जेल के सीखचों में कैद कर लिया जाए।लेकिन उसी समय बिहार से भाजपा की उल्टी गिनती भी शुरू हो गई।यह मुकाम पर पहुंच सकता है बशर्ते विपक्षी दल व्यक्तिगत राग-द्वेष और महत्वाकांक्षा से ऊपर उठकर सोंचे। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का बड़बोलेपन का इलाज भाजपा को बिहार की सत्ता से बाहर कर 2024 में केंद्र की सत्ता से मुक्त करने की हुंकार से कर दिया। क्षेत्रीय पार्टियों की एकजुटता ने उनकी नींद हराम करके रख दिया है।
'महागठबंधन की नई सरकार' शीर्षक आलेख में नरेश नदीम लिखते हैं 'दो सामाजिक धड़ों का मिलन भारतीय राजनीति में बदलाव का कारण बन कर लोकतंत्र के मूल्यों का संरक्षण कर सकता है।सामाजिक न्याय की शक्तियों का पुनर्मिलन निकट भविष्य में केंद्र की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव डालने की क्षमता रखता है'
अपने आलेख में प्रकाश चंद्रयान लिखते हैं
'आजादी के अमृत महोत्सव' के प्रायोजित चमक-दमक और शोरगुल में इससे जुड़े मूल्य बोध पृष्ठभूमि चले गए।जबकि इस पचहत्तरवें साल में जरूरी है हम भारतीय गणतंत्र की मुख्य उद्घोषणा की जांच पड़ताल करें।राजद समाचार में इस विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें बिहार के अलग-अलग क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों के जनतंत्र सेकुलरिज्म न्याय विकास के मुद्दों पर मतामत प्रकाशित किया है जैसे...
१ विश्व पटल पर गणतंत्र की जननी के रूप में बिहार की ख्याति रही है। देश आज 75 वां वर्षगांठ मना रहा है। इन वर्षों में भारत में जनतंत्र की सफलता असफलता को आप कैसे देखते हैं। इस पर बिहार का क्या योगदान रहा है?
२ हिंदू,बौद्ध, जैन, सुफीमत और सरीखे विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों की सम्मिलित कड़ी के रूप में बिहार की पहचान रही है। आज यह भूमि उग्र हिंदू राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की एकरेखीय संक्रमण काल में गर्क है। तेजी से बढ़ते इस अपक्षरण से बिहार को बचाने का रास्ता क्या है?
३ बिहार समाजवादी,साम्यवादी और मंडल आंदोलन की जमीन रहा है।इन आंदोलनों ने बिहार को कितना बदला है? क्या यह बदलाव पूर्ण हो गए या बदलाव की प्रक्रिया भी बाकी है?
४ विकास के हर मानक पर आज  देश के सभी राज्यों में बिहार की गणना निचले पायदान पर होती है। यहां गरीबी और अमीरी की खाई लगातार चौड़ी ही होती गई है।कौन सा रास्ता बिहार को विकास की ओर ले जाने की है..?
   प्रकाश आगे लिखते हैं बहु प्रचारित लोकतंत्र की जननी वैशाली वस्तुतः कुलीन जनपदीय जनतंत्र था जिसका निर्णय अभिजन करते थे ना कि सामान्य जन, जनपद के प्रमुख राजा होते थे।बिहार में समाजवादी साम्यवादी आंदोलन का मूल स्वर आर्थिक सामाजिक विषमता का विरोध और सामंती व्यवस्था का प्रतिवाद था। इन्होंने त्रिवेणी संघ, कर्पूरी ठाकुर कभी जिक्र अपने आलेख में किया है साथ ही निजी करण भूमंडलीकरण के दुष्प्रभाव पर भी रोशनी डालने की कोशिश की है।
'समाजवादी राजनीति ने जनतंत्र को जड़ों तक पहुंचाया' शीर्षक अपने आलेख में कमलेश वर्मा लिखते हैं.. बिहार गांधीवाद समाजवाद एवं मंडल राजनीति के माध्यम से जनतंत्र को जड़ों तक पहुंचाया है।कुछ अर्थों में लोकतंत्र जरूर कमजोर हुआ है।पर राजनीति के लिए बने हुए समाजवादी और मंडल वादी संगठन जब तक अपने स्वाभाविक नेताओं के नेतृत्व में काम करते रहे तब तक उनके लोकतांत्रिक तेवर बचे रहे बाद में उसका कुछ ह्रास हुआ है।
'दूसरी आस्था के प्रति सद्भाव जरूरी' शीर्षक अपने आलेख में प्रीति सिन्हा लिखती हैं..
  भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों के विकास में बिहार का अहम योगदान रहा है 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजादी की लड़ाई तक में बिहार की अग्रणी भूमिका रही है।आजादी के बाद भी राष्ट्र के निर्माण की प्रक्रिया में बिहार आगे रहा है। त्रिवेणी संघ और सहजानंद सरस्वती की किसान सभा से लेकर कम्युनिस्ट आंदोलन,सन 74 का आंदोलन और मंडल वादी आंदोलन ने बिहार का जनतांत्रिककरण ही नहीं किया बल्कि पूरे देश को राह दिखाई। सबसे ज्यादा शिक्षित और नौकरशाह बिहार ने दिए। एक जमाने में बिहार की शिक्षा और शोध संस्थानों का पूरे देश में बड़ा सम्मान था ।लेकिन केंद्रीय नियंत्रण और आजादी के बाद पूंजीवादी विकास की अंदरूनी उपनिवेशी प्रक्रिया में बिहार दिन-ब-दिन गर्त में डूबता गया।

'सामाजिक क्रांति अभी अधूरी है' नामक अपने आलेख में आनंद बिहारी लिखते हैं बिहार समाजवादी साम्यवादी और मंडल आंदोलन की उर्वर जमीन रही है और उसका लाभ भी बिहार को मिलता रहा है।बिहार में जाति को लेकर जागृति आई है और जातीय भेदभाव का बंधन ढीला पड़ा है। अभिजन और बहुजन के बीच जो फांक था उसमें कमी आई है।लेकिन उग्र हिंदू राष्ट्रवाद द्वारा फिर इसे बढ़ाने की कोशिश किया जा रहा है।

संजीव चंदन अपने आलेख 'बिहार में लोकतंत्र अधिक समावेशी' शीर्षक में लिखते हैं...
भाषणों में बिहार ज्ञान और लोकतंत्र की भूमि है।लेकिन क्या वह लोकतंत्र जनता के लिए जनता का लोकतंत्र था ? इस पर सवाल उठाते हैं। आगे कहते हैं बिहार की जनतांत्रिकता को मापने का एक तरीका यह भी हो सकता है कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में बिहार कितना समावेशी हुआ। सत्ता और व्यवस्था में विभिन्न सामाजिक इकाइयों की भागीदारी कितनी हुई है।बिहार में एक विशेष घटना के रूप में बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री को भी देखा जाना चाहिए।पिछड़े समाज से आने वाली महिला जो कायदे से स्कूल नहीं जा सकी थी बिहार की मुख्यमंत्री बनती हैं और अगले साल 8  सालों तक प्रशासन का सफल संचालन करती है। उनकी सफलता मुख्यमंत्री के तौर पर उनके निर्णय,उनका संवाद कौशल, जनसभाओं को संबोधित करने में निरंतर बनने वाली संप्रेषणीयता अवसर मिलने के असर को बयान करती है।

'कैसा अमृत काल जहां सच बोलना विषपान है' नामक आलेख में डॉ सीमा आजादी के अमृत महोत्सव का आलोचनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करते वे लिखती हैं...
विडंबना यह है कि जब देश आजादी के 75 वर्षगांठ आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है फिर भी समाज में नफरत हिंसा दमन अत्याचार का जहर अंदर तक पहुंच गया है।प्रजातंत्र के मूल सिद्धांतों पर एक-एक कर चोट पहुंचाई जा रही है।आज जनता सिर्फ हिंदू मुस्लिम और वोटर बन कर रह गई है। हाल के वर्षों में सबसे अधिक चोट अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पहुंचाई गई है। यह कैसा लोकतंत्र है जहां सच बोलना विषपान है।

'राजनीतिक सशक्तिकरण लेकिन समग्र विकास नहीं' लेख में मनोरमा ने राजनीति विकास का विश्लेषण किया है।उनका मानना है भारतीय लोकतंत्र के 75 साल के इतिहास में तमाम उपलब्धियों के साथ आपातकाल का एक दौर भी आता है।लेकिन आज का दौर भी एक अघोषित आपातकाल ही है।दक्षिण पंथ के उभार और उसके ताकतवर होने का असर देश के धर्मनिरपेक्षता,उदार लोकतांत्रिक चरित्र पर पड़ा है।देश का माहौल दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के लिए लगातार मुश्किल बनाया जा रहा है। ब्राह्मणवादी वर्चस्व, क्रोनी कैपिटल रीजन और उग्र हिंदुत्व के उभार के कारण यह परिस्थितियां पनपी है।उग्र हिंदुत्व के साथ भाजपा के सोशल इंजीनियरिंग ने भी दलितों, महादलित और अति पिछड़ों को को हिंदुत्व के पाली में किया है। लेकिन फिर भी बिहार की राजनीति अपने एक अलग चरित्र में रही है।आज जब फिर देश का लोकतंत्र चौराहे पर दिशाहीन है, बिहार ने रास्ता दिखाया है।बिहार ने संदेश दिया है विपक्ष के साथ मिलकर चलने का, जो बेशक इस दौर में सबसे जरूरी है।

जंग ए आजादी के छुपे हीरे

१बद्री अहीर:-एक सुदूर चमकता

 सितारा- लेखक दुर्गेश कुमार

२पीर अली:- एक नजर लेजेंड्री
आईकॉन-लेखक मोहम्मद उमर
अशरफ 

३केसरी राय:-मगध के गुमनाम  शहीद। लेखक - आनंद किशोर

४जुब्बा साहनी:- अगस्त क्रांति के तरुण शहीद। लेखक-राम नरेश यादव 

५रामफल मंडल:-एक विस्मृत शहीद।लेखक-आचार्य रामानंद मंडल 

६बहुरूपिया राम रूप देवी।लेखक- प्रियंका प्रियदर्शनी 

७मुक्ति के मालाकार:-नक्षत्र मालाकार।लेखक-अरुण नारायण

८ ना होते बतख तो गांधीजी भी ना होते।लेखक- डॉ मोहम्मद आरिफ

 ९सूरज नारायण सिंह:-एक निर्भीक क्रांतिकारी।लेखक-सत्यनारायण यादव 
   उपरोक्त वर्णित सभी आलेख काफी पठनीय है एवं इतिहास के अनछुए पहलुओं से रूबरू कराती है। हमें अपने बीच के नायकों के बारे में जानकारी देती है। जिसे आज तक हमसे छुपाया गया था। जंग ए  आजादी के छुपे हुए हीरों के बारे में पढ़ना काफी रोचक है।इसके लिए सभी लेखक बधाई के पात्र हैं।
महंगाई और संप्रदायिकता के खिलाफ पर जिलों में प्रतिरोध मार्च पर डॉ दिनेश पाल की रिपोर्ट भी पढ़नीय है।

यह 'पत्रिका' पत्रकारिता के संकीर्ण होते दायरे को एक विस्तार देने की पुरजोर कोशिश कर रही है।यह आम जनों की आवाज बनकर तेजी से उभर रही है।वर्तमान दौर में जिस तरह से पत्रकारिता के मूल्यों का ह्रास हुआ है उसे यह पाटने की भरपूर कोशिश कर रही है। इस पत्रिका ने एक बार फिर से देश के राष्ट्रीय पटल पर समाजवादी-साम्यवादी और मंडलवादी विचारधारा को पुनर्स्थापित करने का प्रयास करता दिख रही है। आम जनों को वैश्वीकरण,भूमंडलीकरण, लोकतांत्रिक मूल्यों के ह्रास, उभरती समांती प्रवृत्तियों ,उग्र हिंदू राष्ट्रवाद के दुष्प्रभाव की ओर भी आगाह करता है। साथ ही लोगों को भारत के समृद्ध लोकतांत्रिक प्रक्रिया, धर्मनिरपेक्षता ,विश्व बंधुत्व ,पंचशील ,सर्वधर्म समभाव, वसुधैव कुटुंबकम के विचारधारा को अपनाने की सलाह देती है।
राष्ट्रीय जनता दल द्वारा जिस उद्देश्य को लेकर इस पत्रिका की शुरुआत की गई है उस पर यह पूरी तरह खरी उतरती है। इस पत्रिका में हमें सिर्फ एक कमजोरी दिखाई दी वह यह है कि देश और राज्य में घटने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं के एक माह का समरी का ना होना है।अगर इसे शामिल किया जाए तो वह इसके पाठकों के लिए गागर में सागर के समान होगा और इससे अधिक से अधिक पाठक वर्ग जुड़ते जाएंगे।
 
गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम
 बिहार



 
























1         यदि     आप स्वैच्छिक दुनिया में अपना लेख प्रकाशित करवाना चाहते है तो कृपया आवश्यक रूप से निम्नवत सहयोग करे :

a.    सर्वप्रथम हमारे यूट्यूब चैनल Swaikshik Duniya को subscribe करके आप Screen Short  भेज दीजिये तथा

b.      फेसबुक पेज https://www.facebook.com/Swaichhik-Duniya-322030988201974/?eid=ARALAGdf4Ly0x7K9jNSnbE9V9pG3YinAAPKXicP1m_Xg0e0a9AhFlZqcD-K0UYrLI0vPJT7tBuLXF3wE को फॉलो करे ताकि आपका प्रकाशित आलेख दिखाई दे सके

c.       आपसे यह भी निवेदन है कि भविष्य में आप वार्षिक सदस्यता ग्रहण करके हमें आर्थिक सम्बल प्रदान करे।

d.      कृपया अपना पूर्ण विवरण नाम पता फ़ोन नंबर सहित भेजे

e.      यदि आप हमारे सदस्य है तो कृपया सदस्यता संख्या अवश्य लिखे ताकि हम आपका लेख प्राथमिकता से प्रकाशित कर सके क्योकि समाचार पत्र में हम सदस्यों की रचनाये ही प्रकाशित करते है

2         आप अपना कोई भी लेख/ समाचार/ काव्य आदि पूरे विवरण (पूरा पता, संपर्क सूत्र) और एक पास पोर्ट साइज फोटो के साथ हमारी मेल आईडी swaikshikduniya@gmail.com पर भेजे और ध्यान दे कि लेख 500 शब्दों  से ज्यादा नहीं होना चाहिए अन्यथा मान्य नहीं होगा

3         साथ ही अपने जिले से आजीविका के रूप मे स्वैच्छिक दुनिया समाचार प्रतिनिधिब्यूरो चीफरिपोर्टर के तौर पर कार्य करने हेतु भी हमें 8299881379 पर संपर्क करें।

4         अपने वार्षिक सदस्यों को हम साधारण डाक से समाचार पत्र एक प्रति वर्ष भर भेजते रहेंगे,  परंतु डाक विभाग की लचर व्यवस्था की वजह से आप तक हार्डकॉपी हुचने की जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी। अतः जिस अंक में आपकी रचना प्रकाशित हुई है उसको कोरियर या रजिस्ट्री से प्राप्त करने के लिये आप रू 100/- का भुगतान करें