ग़ज़ल
कोई ज़िन्दा रहे न मर जाये। नब्ज़ जो एक पल ठहर जाये। दूर तक जब नहीं नज़र जाये। है ये बेहतर बशर ठहर जाये। हर तरफ दिख रही वबा फैली, जिस तरफभी जिधर नज़र जाये। पार दुश्मन करे नहीं सरहद, सर ये बाक़ी रहे कि सर जाये। रब का मेरे अगर करम हो तो, बात बिगड़ी हर इक सँवर…