ग़ज़ल
कोई  ज़िन्दा   रहे   न  मर  जाये। नब्ज़  जो  एक पल   ठहर  जाये। दूर  तक  जब  नहीं  नज़र  जाये। है  ये  बेहतर   बशर  ठहर  जाये। हर तरफ  दिख  रही  वबा  फैली, जिस तरफभी जिधर नज़र जाये। पार  दुश्मन   करे   नहीं   सरहद, सर  ये बाक़ी  रहे  कि सर  जाये। रब का  मेरे  अगर  करम  हो तो, बात बिगड़ी हर इक  सँवर…
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कुदरत की चिट्ठी
हे ! इंसान हे महामानव !! तुम्हें एक बात कहनी थी । मैं कुदरत ,लिख रही हूँ , आज एक  खत तुम्हारे नाम । मैं ठहरी तुम्हारी मां जैसी , जो अप्रतिम प्यार लुटाती । बिल्कुल निस्वार्थ, निश्छल , जो बदले तुमसे कुछ न चाहती।    परंतु आज मैं लिख रही हूँ , तुमको एक दर्द भरी दास्तान , यही  है मेरी  अंतिम चिट्ठी । सु…
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पर्यावरण की व्यथा
साँस थमने लगी,मर रही है हवा दम घुटा जा रहा,मिल रही ना दवा जीना दूभर हुआ,ख़़तरे में ज़िन्दगी, पेड़ सब कट गए,अब बची ना दुआ। देख लो आज तुम,क्या से क्या हो गया खो गया चैन अब,सब अमन खो गया कट गए वन,हरापन,सभी लुट गया, कितना सुंदर था मेरा,वतन रो गया ।  हम बढ़े आगे पर,पेड़ कटने लगे बन गईं बिल्डिंगें,खेत घट…
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