महर्षि वाल्मीकि जी
संस्कृत भाषा  के  आदि  कवि रामायण रचकर पाई जग छवि । कश्यप ऋषि-माता चर्षणी पुत्र  रत्नाकर से बने वाल्मीकि ऋषि।। महर्षि नारद से मिला ऐसा ज्ञान लूटपाट का मार्ग छोड़,जपा राम । समझाया जग को राम चरितार्थ  जीवन होय सफल जपे जो नाम ।। बिरले ही मिलते है ऐसे तपस्वी जिसे नमन करता गगन से रवि। दीमक  घर बन  गया तप…
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सिंघिनी
स्वर्ण की जंजीर बांधे, स्वान फिर भी स्वान है । धूल धूषित सिंहिनी , पाती सदा सम्मान है। आत्मनिर्भर स्वाभिमानी , शौर्य ही पहचान है । हार ना स्वीकारती , जाती भले ही जान है। मान खातिर प्राण देती , सहती न वह अपमान है। वीरता ही धर्म उसका , शौर्य ही ईमान है । शत्रु भय से वह कभी , होती नही हैरान है। परिभाष…
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“मन के रावण को जलाओ “
दशहरा का पर्व है आया  ख़ुशियाँ खूब मनाओ, पर ढूँढके अंतर्मन के रावण को आज तुम जलाओ !! रिश्तों को संघेचो, रिश्तों को बचाओ, राम जैसे कर्तव्य निभाओ पर इन्ही रिश्तों में बंधकर तुम धर्म को ना भुलाओ। शूर्पणखा हज़ारों हैं, ढोंग में ना आ जाओ !! सच को समझो सच को जानो भावना बदले की ना लाओ। दशहरा के इस शुभ पर्…
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