महाभारत कालीन घटनाओं के साक्षी पांंगणा के अम्बरनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार में निकली मूर्तियां
हिमालय की जलोड़ी श्रीखंड पर्वत श्रृंखला के अंतर्गत सुरम्य शिकारी देवी शिखर के आंचल में स्थित पौराणिक नगरी पांंगणा सुकदेव मुनि की पावन स्थली सुकेत क्षेत्र का वह स्थान है यहां महाकाव्य युग की घटनाओं के पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्य आज भी विद्यमान हैं ।यहीं पांंगणा में पांडव माता कुंती सहित लाक्षागृह घटना के बाद व अपने अज्ञातवास काल में आकर रुके थे। पांगणा कस्बे के मध्य में महामाया भुवनेश्वरी के मंदिर के दक्षिण पश्चिम में शिव को समर्पित अम्बरनाथ मंदिर है। लोक मान्यता अनुसार इसी मंदिर में भीम का राक्षसगण से संबंधित हिडिम्बा से पाणीग्राहण संस्कार संपन्न हुआ था।पांगणा में पांडवों से जुड़ी अनेक मान्यताएं लोक प्रचलित हैं।पांंगणा पाण्डवों की रमण स्थली होने के कारण इस कस्बे का नाम पाण्डवांगण अर्थात पाण्डवों का क्रीड़ा स्थल पड़ा जो कालांतर में पांंगणा रूपांतरित हुआ। पूर्वोत्तर में शिकारी देवी का प्राकट्य उसी कालखंड में यहां पाण्डवों के आखेट (शिकार) के दौरान हुआ।पांगणा व शिकारी पांंगणा घाटी में अवस्थित है। संभव है कि अज्ञातवास व लाक्षागृह की घटना के बाद पाण्डव माता कुंती सहित इस अगम्य और बीहड़ क्षेत्र में रहे हों।सतलुज घाटी के अंतर्गत यह क्षेत्र गहरी खाई और तंग घाटियों से युक्त है। जहां गुप्तचरों  को दुश्मन को ढूंढना नितांत असंभव था। प्रदेश के प्रख्यात साहित्यकार डॉ हेमेंद्र बाली "हिम" का कहना है कि हिडिम्ब हिमालई क्षेत्र के बड़े भू-भाग का शासक था। जिसकी सीमा चंबा, लाहौर से लेकर गढ़वाल तक फैली थी। प्राचीन काल में संभवत: मंडी सुकेत और बुशैहर का काफी भाग कुल्लू जिले में सम्मिलित था। कुल्लूत गणराज्य हिडिम्ब के अधीन था।लाक्षागृह से सुरक्षित बच निकलने पर पाण्डव हिडिम्ब राक्षस के प्रदेश में विचरण करते रहे। इसी बीच भीम व हिडिम्ब की बहिन हिडिम्बा का प्रणय परिणय सूत्र तक पहुंचा। जिसका साक्षी पांंगणा का अम्बरनाथ मंदिर बना।भीम के हाथों हिडिम्ब के मारे जाने के बाद हिडिम्बा कुल्लुत राज्य की शासिका बनी।घटोत्कच के बालिग होने पर सारे पहाड़ी प्रदेश का वह शासक बना और माता हिडिम्बा ने शेष जीवन तपश्चर्या में व्यतीत किया।पांंगणा का यह अम्बरनाथ मंदिर हालांकि 1981 में अग्नि की भेंट चढ़ गया था अतः मंदिर शिल्प का मौलिक स्वरूप नष्ट होने के बाद ईंट-सिमेंट,रंग आदि सामग्रियों का प्रयोग कर शिखर शैली के आधुनिक मंदिर का निर्माण किया गया परंतु मंदिर में आसपास बड़ी संख्या में आमलक,भद्रमुख,श्रीयंत्र,अष्टदल कमल,लक्ष्मी यंत्र,दीप स्तंभ, कलात्मक बेल-बूटे वाली शिलाएं व अन्य मूर्तियां मिली थी जो इस बात की पुष्टि करती हैं कि यहां प्राचीन काल में शिखर शैली का प्रस्तर मंदिर रहा होगा। जिस पर सातवीं आठवीं शताब्दी की प्रतिहार शैली का प्रभाव रहा है। अभी हाल ही में मंदिर के पुनः जीर्णोद्धार के दौरान कुछ प्रस्तर प्रतिमा खुदाई कार्य करती बार मिली है जिससे जिसमें नरसिंह भगवान की खंडित मूर्ति उल्लेखनीय है ।हालांकि कलात्मक दृष्टि से प्रतिमा 16वीं-17वीं शताब्दी की प्रतीत होती है। एक अन्य मूर्ति योगासन में शिव की है जो चतुर्भुजी है। भूमिगत होने से मूर्ति का कला वैभव विलुप्त लगता है।एक योगी की ध्यान मुद्रा मूर्ति,वर्गाकार व शंक्वाकार  लघु प्रस्तर व 1897 का तांबे का एक सिक्का भी मिला है। अम्बरनाथ मंदिर के अग्रभाग में नंदी भगवान की गर्भगृह की ओर मुख किए विशाल स्थानक प्रतिमा दर्शनीय है।नंदी की पूंछ में भगवान वीरभद्र का अवलंबन सुकेत क्षेत्र में विलक्षण है ।ऐसी नंदी की प्रतिमा मंडी शहर के पंचवक्त्र में विद्यमान है जिसका निर्माण 15वीं-16 वीं शताब्दी में आंका जाता है।स्थानक नंदी के पास ही नंदी की बैठी अवस्था में अन्य प्रतिमा भी आकर्षण का केन्द्र है।साहित्यकार डॉक्टर हिमेन्द्र बाली "हिम"और स्वर्गीय चंद्रमणी कश्यप पुरातत्व चेतना राज्य पुरस्कार से सम्मानित डॉक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि ऐतिहासिक अम्बरनाथ मंदिर महाभारत की घटनाओं का जीवंत उदाहरण है।तंत्र के अधिष्ठाता होने के कारण यह शिव को समर्पित मंदिर तंत्र विद्या का प्रसिद्ध स्थल रहाहै।यहां का वस्तुशिल्प और मूर्ति शिल्प अद्भुत है।धार्मिक और सांस्कृतिक तथ्यों को संजोए इस मंदिर को प्राचीन स्वरूप प्रदान करने के लिए सेवानिवृत्त कर्मचारी संघ के प्रधान श्री धर्म प्रकाश शर्मा जी,सेवानिवृत्त कानूनगो भूपेन्द्र शर्मा जी,पर्यटन विभाग के सेवानिवृत्त कर्मचारी श्री विद्यासागर जी,विद्युत विभाग के सेवानिवृत्त कनिष्ठ अभियंता श्री विद्यासागर जी,इसी विभाग के सेवानिवृत्त कर्मचारी श्री हीरालाल शर्मा जी,स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत अधिकारी श्री जगन्नाथ शर्मा जी,समेकित बाल विकास परियोजना विभाग के श्री वेद प्रकाश जी ने स्थानीय पंचायत,व्यापार मंडल पांगणा,महिला मंडल,युवक ,महामाया मंदिर समिति तथा समस्त ग्राम वासियों के सहयोग से इस धरोहर के विकास को नई दिशा देने का संकल्प लिया है।धर्म प्रकाश शर्मा, सुमीत गुप्ता आदि का कहना है कि इस मंदिर के मलबे में पांगणा के समृद्ध इतिहास की दबी पड़ी दस्तान को उजागर करने के लिए बहुत बड़ी धनराशि और सहयोग की आवश्यकता होगी।जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) व सरकार के सहयोग के बगैर असंम्भव है।लेकिन करसोग के ममेल,पांगणा, चरखड़ी,घाड़ी या जहां-जहां भी उत्खनन से मलबे में दबी पड़ी मूर्तियां मिली हैं विभाग ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई है।ऐसे में उपेक्षित पड़ी धरोहरों की कौन सुध ले?यही चिंता का विषय भी है।विभाग को चाहिए कि वह ऐसे ऐतिहासिक महत्व के मंदिरोंं/दुर्ग के जीर्णोद्धार का कार्य अपने हाथ में ले ताकि ये अमूल्य सांस्कृतिक विरासतें राज्य और राष्ट्रीय महत्व के संरक्षित स्मारक घोषित होकर देश-विदेश के पर्यटकों और शोद्धार्थियों के आकर्षण का केन्द्र बन सके।



                    जगदीश शर्मा 



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