प्रकृति का आज ,
नया रूप है देखा ,
बंद हो गई उद्योग की भट्टी ,
जहाँ आत्मा पत्थरा गई थी ,
मनुष्य एक मशीन हो गया था ,
काम करते -करते भूल गया था ,
एक परिवार भी है उसका II
दिल वज्र हो गया था ,
एहसास उसके दब गए थे ,
याद था बस ,पेट के लिए ,
संगठन और संघर्ष ,
जिसके लिए जिए जा रहा था I
आज बंद है ,वह उद्योग की भट्टीII
जीवन बन गया था ,
एक चक्र- व्यूह ,
घूस तो गए पर,
निकल नहीं पा रहे थे ,
बस दिमाग में,
एक ही बात रहती थी ,
काम ,नाम ,पैसा ,
और फिर काम ,
लड़ना -झगड़ना ,
दूसरों को गलत समझना ,
जिंदगी इन्ही के इर्द -गिर्द
सिमट सी गई थी ,
देखो आज बंद हो गई है,
वो उद्योग की भट्टी II
आज समय मिला है सुखद ,
संजो के रख लो तुम इसको ,
अभी एक मात्र धर्म है ,
परिवार के साथ,
समय बिताना ही कर्म है ,
इसलिए बंद हो गई है ,
उद्योग की भट्टी II
आज कोरोना ने जग पर ,
छुरी अपनी चलाई है ,
मानव ने भी घर पर रहकर ,
महामारी को हराने की ,
मन में ठानी है ,
प्रकृति का आज ,
नया रूप है देखा है ,
बंद हो गई है उद्योग की भट्टी II
मनुष्य ने अब अलख ज्योत जगाई है II
सोनी गुप्ता
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