छलावा
नहीं जानती थी पाहन (पत्थर) का प्यार छलावा है

पाहन से प्यार कोई प्यार नहीं ये खुमार छलावा है।

 

मुझ जैसे बावलों का मिलन नहीं विरह प्रतीक है

जन्म कुटिया में और  ख़्वाब ताज का छलावा है ।

 

कुछ भी कर लो दूर नहीं होगा अंधेरा अमावस का

खुद को बना दीप प्यार का जलाना एक छलावा है।

 

लाख पूछने पर भी तुमने मेरा अपराध नहीं बताया

मान  के भावों के हार पहनाना एक छलावा है ।

 

  सोचा  था  फिर  से  मुस्कुराएगा  मेरा  जहां 

 मगर  तुमसे  आस  लगाना  एक  छलावा  है ।

 

फिर से मुस्कुराएगा मेरा मन ,ये सोच कर किया 

था तुम्हें प्यार ,मगर मेरी मुस्कराहट एक छलावा है ।

 

प्राणों का क्रंदन सुनने का तुम्हें अवकाश नहीं ग़र

*प्रेम* के नयन- भाषा ना समझो तो मोहपाश छलावा है ।

 


                        प्रेम बजाज



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