नहीं जानती थी पाहन (पत्थर) का प्यार छलावा है
पाहन से प्यार कोई प्यार नहीं ये खुमार छलावा है।
मुझ जैसे बावलों का मिलन नहीं विरह प्रतीक है
जन्म कुटिया में और ख़्वाब ताज का छलावा है ।
कुछ भी कर लो दूर नहीं होगा अंधेरा अमावस का
खुद को बना दीप प्यार का जलाना एक छलावा है।
लाख पूछने पर भी तुमने मेरा अपराध नहीं बताया
मान के भावों के हार पहनाना एक छलावा है ।
सोचा था फिर से मुस्कुराएगा मेरा जहां
मगर तुमसे आस लगाना एक छलावा है ।
फिर से मुस्कुराएगा मेरा मन ,ये सोच कर किया
था तुम्हें प्यार ,मगर मेरी मुस्कराहट एक छलावा है ।
प्राणों का क्रंदन सुनने का तुम्हें अवकाश नहीं ग़र
*प्रेम* के नयन- भाषा ना समझो तो मोहपाश छलावा है ।
प्रेम बजाज
- किसी भी प्रकार की खबर/रचनाये हमे व्हाट्सप नं0 9335332333 या swaikshikduniya@gmail.com पर सॉफ्टमोड पर भेजें।
- स्वैच्छिक दुनिया समाचार पत्र की प्रति डाक से प्राप्त करने के लिए वार्षिक सदस्यता (शुल्क रु 500/- ) लेकर हमारा सहयोग करें।
- साथ ही अपने जिले से आजीविका के रूप मे स्वैच्छिक दुनिया समाचार प्रतिनिधि, ब्यूरो चीफ, रिपोर्टर के तौर पर कार्य करने हेतु भी हमें 8299881379 पर संपर्क करें।
- कृपया यह ध्यान दे की कोई भी लेख/ समाचार/ काव्य आदि 500 शब्दों से ज्यादा नहीं होना चाहिए अन्यथा मान्य नहीं होगा।
- कृपया अपनी रचना के साथ अपना पूरा विवरण (पूरा पता, संपर्क सूत्र) और एक पास पोर्ट साइज फोटो अवश्य भेजें।