डर...
गमगीन चेहरे

सूखें ओंठ

दिल में अजीब सी

छटपटाहट लिए

कैद हैं दस बाई दस के कमरे में

कई-कई लोग

जाना चाहते हैं घर अपने

अपनों के बीच

मुस्काना चाहते हैं

सताए जा रही है

एक डर उन्हें 

भूखे कहीं मर न जाएं

परदेश में ही...


                   मेराज रज़ा



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