दरवाजे पर दस्तक
भले ही हवाओं ने दी हो
बावले मन को पग-पग
दौड़ा जाती
बिदाई और यादों की
राजदार नहीं होती है आँखे
क्योंकि ये दुःख-दर्द की
वेदना को पचा नहीं पाती
ये आँखे बिना कहें बता जाती
इनके रिश्तों को
आँसू बन
जब याद
बिटियाँ की आती ।
संजय वर्मा 'दॄष्टि'
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