एक खाकी ओर भी हैं देश मे, जो सड़कों पर रहती है।
थकी सी हारी सी बेचारी, मेली सी सड़कों पर रहती हैं
झाडू ओर रेहडी हैं दोस्त उसके , एक गरीब तन को भी डकती हैं
उसका काम करते जाना, बेचारी नही वो रुकती है।,
वो पड़ी लिखी खा़कि नहीं, अनपढ़ परिवार से आती हैं
लिखना पढ़ना हैं कोशो दुर, उसको सफाई करनी आतीं हैं
सपना उसका हैं ये की उसकी औलाद भी पढ़ जाए
जिस माहौल मे रहती मे, वो उस माहौल से निकल जाए
इसी सपने की खातिर वो सुबह जल्दी से झाडू के साथ निकलती हैं
गन्दे सिवरों ओर नालों मे जाकर उनकी सफाई करती हैं,
कुछ निकल आती जिन्दा तो, कुछ उनके अन्दर ही मरती हैं
सरकार भी बेचारी की इतनी ही मदद करती हैं, करके उसकी कुछ रुपयों कि मदद,
उसकी मेहनत की बेज्जती करती हैं
उन रूपों से कुछ दिन तो गुजरते हैं उनके फिर कुछ दिन बाद उसकी औलाद भुखी मरती हैं।
यही भुख उसकी औलाद को ये नरक का काम करने को बेबस करती हैं
पढ़ने की चिंता नही उसको अब अपने परिवार की चिंता होती हैं,
छोटी सी उमर मे उसके हाथों मे फिर से झाडू होती है
फिर वो वर्दी अपने बच्चों की चिंता करती हैं
फिर सुबह सुबह वो झाडु के साथ निकलती हैं
फिर सुबह सुबह वो झाडु के साथ निकलती हैं
"""सभी सफाई कर्मियों को मेरा दिल की गहराईयों से सलाम"""
मनीष कुमार
- किसी भी प्रकार की खबर/रचनाये हमे व्हाट्सप नं0 9335332333 या swaikshikduniya@gmail.com पर सॉफ्टमोड पर भेजें।
- स्वैच्छिक दुनिया समाचार पत्र की प्रति डाक से प्राप्त करने के लिए वार्षिक सदस्यता (शुल्क रु 500/- ) लेकर हमारा सहयोग करें।
- साथ ही अपने जिले से आजीविका के रूप मे स्वैच्छिक दुनिया समाचार प्रतिनिधि, ब्यूरो चीफ, रिपोर्टर के तौर पर कार्य करने हेतु भी हमें 8299881379 पर संपर्क करें।
- कृपया यह ध्यान दे की कोई भी लेख/ समाचार/ काव्य आदि 500 शब्दों से ज्यादा नहीं होना चाहिए अन्यथा मान्य नहीं होगा।
- कृपया अपनी रचना के साथ अपना पूरा विवरण (पूरा पता, संपर्क सूत्र) और एक पास पोर्ट साइज फोटो अवश्य भेजें।