ग़ज़ल

तू नहीं और तेरा ख़्याल नहीं
ज़िंदगानी में अब वबाल नहीं


जंग लड़ना मुझे गवारा पर
बेबसों को बना के ढ़ाल नहीं


ऐसे लीड़र को लानतें भेजो
चल सका जो सियासी चाल नहीं


पा लिया जो ख़ुदा की रहमत थी
खो दिया तो किया मलाल नहीं


भूख का मसअला सुलझ जाए
इतना सीधा भी ये सवाल नहीं




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