ग़ज़ल
अब रौशनी को  और  सताया न  जायेगा।

जलता  हुआ   चराग  बुझाया न  जायेगा।

 

मग़रूर अब किसी को बनाया न  जायेगा।

जो जा चुका है उसको बुलाया न जायेगा।

 

अम्नो  सुकून  हो  न   सकेगा  यहाँ  कभी,

जब तक अना को मार भगाया न जायेगा।

 

क्यूँ आईने  को तोड़ने की  होे रही है बात,

हमसे तो आईना भी  दिखाया न  जायेगा।

 

उनकी  ज़मीन  छोड़ चुके  हैं  हमीद  पर,

यादोंको उनकी दिलसे भुलाया नजायेगा।

 


          हमीद कानपुरी



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