हमें घर जाने दो लौट कर आऊंगा
विपत पिछले पच्चीस वर्षों से अपने परिवार के साथ मुंबई में रह रहा था।उसे क्या मालूम कि जिस मुंबई ने उसे दो वक्त की रोटी दिया है वही एक दिन पूरे परिवार लिए मौत बन काटने को दौड़ेगा।जब से देश के अन्य हिस्सों की तरह मुंबई में कोरोनावायरस से उत्पन्न बीमारी के कारण पूर्णतः लॉक डाउन किया गया विपत के परिवार पर तो सचमुच विपत आ पड़ी।उसके एवं उसके पूरे परिवार के सदस्यों को अन्य लोगों की तरह अपने खोली से निकलना मुश्किल हो गया।विपत के परिवार में कुल बाइस सदस्य थे।उनमें सोलह सदस्य मुंबई के धारावी जो दुनिया का सबसे बड़ा मलिन बस्ती के रूप में जाना जाता है में रह रहे थे।जबकि एक भाई और उसके बच्चे गांव में रहते थे।जो थोड़ी सी खेती बारी थी उसे देखते संभालते थे।उसके अलावा उसके माता-पिता,पत्नी, दो भाई,उनकी पत्नियां एवं चौदह बच्चे जो दो वर्ष से लेकर पंद्रह वर्ष तक के थे।विपत मूल रूप से गुजरात के गांधीनगर के एक गांव का रहने वाला था।विपत मुंबई में ही एक बैंक अधिकारी की गाड़ी चलाता था।उसके पिताजी एक अपार्टमेंट में गार्ड थे।उसका भाई भाड़े का लारी चलाता था। वहीं उसकी मां और पत्नी दूसरे घरों में झाड़ू-पोछा के काम करती थीं। जबकि भाई की पत्नी घर एवं बच्चों को संभालती थी।बच्चे बगल के सरकारी विद्यालय में पढ़ते थे और शाम के वक्त मिलकर अंडा और पकौड़ी बेचा करते थे।मुंबई जैसे शहर में एक दिन भी बिना काम किए रहना बहुत मुश्किल है।जैसे ही संपूर्ण देश में लॉक डाउन की घोषणा हुई एकाएक सभी लोगों का काम बंद हो गया।मुश्किल तो यह था कि वे अपने मालिकों से भी कुछ सहायता नहीं ले सकते थे।क्योंकि घर से निकलने तक की पाबंदी लग चुकी थी। पंद्रह दिन तक घर का खर्च चलते रहा लेकिन उसके बाद घर में राशन पानी समाप्त हो गया।उधर महीना पूरा होने की वजह से खोली मालिक भी किराया का तगादा करने लगा।सरकार से किसी भी प्रकार की सहायता अभी तक नहीं मिल पाई थी।यहां तक कि कोई उनसे संपर्क भी नहीं किया था। 16 वें दिन विपत ने अपने मालिक को फोन लगाया और अपने घर का हालत बताया।मालिक ने उधर से जवाब दिया तुझे पिछले माह का वेतन तो मैंने पूरा पूरा दिया है और इस माह तो तुम मात्र 17 दिन काम किए हो फिर वेतन किस मुंह से मांग रहे हो। विपत बोला हुजूर मुझे मेरे सत्रह दिन का ही वेतन दे दीजिए।आज मेरे परिवार के पास खाने के लिए कोई चीज नहीं बचा है।बच्चे सुबह से भूखे हैं।अगर आप मेरे पास पैसा पहुंचा दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी।उधर से आवाज आई मैं तुम्हारा पैसा दे दूंगा लेकिन घर नहीं पहुंचा सकता। कहो तो मैं तुम्हारे फोन नंबर पर फोन में पे से पैसा ट्रांसफर कर देता हूं।विपत बोला हुजूर मुझे फोन पे के बारे में कोई जानकारी नहीं है।आप तो रोज इधर से ही बैंक जा रहे हैं।अगर आप मेरे घर आकर पैसा दे देते तो बड़ी कृपा होती।मुझे और मेरे परिवार को तो घर से निकलना भी मुश्किल है। नहीं तो मैं खुद आकर ले लेता। बाहर निकलते ही पुलिस बहुत ही बेदर्दी से पीट रही है आपके पास पहुंचने से पहले ही मेरा प्राण निकल जाएगा।इस पर अधिकारी ने डांटते हुए बोला तुम लोग नहीं सुधर सकते,तुझे मालूम है किससे बात कर रहे हो!मैं तुम्हारे खोली में आऊंगा तो लोग क्या कहेंगे?अगर पैसा चाहिए तो मैं गूगल पे,पेटीएम या फोन पे से ही दे सकता हूं।उसने बहुत ही विनती की पर उन्होंने डांटते हुए कहा अब तुझे महीना पूरा होने पर ही पैसा मिलेगा और फोन काट दिया।विपत ने कई बार फोन मिलाया लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया।उसके भाई ने अपने लारी मालिक को फोन लगाया तो मालिक ने कहा मेरे पास नगदी नहीं है चाहो तो इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजैक्शन कर देता हूं। इधर से जवाब दिया साहब मेरे मोबाइल पर यह सुविधा नहीं है।मुझे तो फोन पे के बारे में जानकारी भी नहीं।मलिक ने कहा फिर लॉक डाउन खत्म होने दो मैं तुम्हारा एक-एक पाई चुका दूंगा और फोन काट दिया।फिर दोबारा फोन उठाया नहीं।अब एकमात्र सहारा अपार्टमेंट मालिक का था, जहां उसके पिताजी दरबान थे। लेकिन उनका तो फोन नंबर ही नहीं था।इसलिए वह उम्मीद भी बेकार रह गया।इस तरह शाम हो गई बच्चों समेत पूरा परिवार पानी पीकर अभी तक थे।शाम को उसकी मां और पत्नी ने बताया क्यों नहीं हमारे मालिकों से बात करते हो हमारे पास उन लोगों का नंबर है।विपत उदास होकर बोला ठीक है लाओ नंबर दो मिलाता हूं।उसने एक-एक उनके मालिकों को फोन मिलाना शुरू किया पर सब का एक ही जवाब था मैं तुम्हें इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजैक्शन से ही पैसा दे सकता हूं या तुम खुद आकर किसी तरह ले जाओ।हर तरफ से निराशा हाथ लगने के बाद शाम को अगल बगल वाले खोली से एक सप्ताह बाद लौटा देने के नाम पर अपनी दीन-दशा बताकर कुछ उधार लाया और किसी तरह इक्कीस दिन पूरा होने का इंतजार करने लगा।लेकिन यह क्या एक बार फिर से लॉक डाउन की अवधि बढ़ा दी गई।पूरे परिवार में निराशा इस कदर घर कर गई कि न तो कोई बोल रहा था ना कोई मुस्कुरा रहा था यहां तक कि बच्चे भी अपने मुंह नहीं खोल रहे थे। अब तो बगल वाले भी उधार देने की स्थिति में नहीं थे क्योंकि उनका हालत भी इनके जैसा ही था।वे अपना जान बचायें की इसके परिवार का फिर भी जो था उसमें से ही जितना हो सकता था दे देते।रात में विपत और उसके आस पड़ोस के सभी लोग आपस में विचार कर अपने अपने घर पैदल निकलने के लिए तैयार हो गए और उसी अर्धरात्रि अपना सारा सामान समेटकर जो रुखा सुखा बचा था उसे लेकर निकल पड़े।अभी वे अपने झुग्गी बस्ती से जैसे ही मुख्य मार्ग पर पहुंचे थे पुलिस ने उन्हें रोक लिया ये लोग अपनी मजबूरी बताते,अपने बाल बच्चों का चेहरा दिखाते,कसमें खाते,लाख हाथ जोड़ते,पांव पकड़ते,गिड़गिड़ाते,कहते हुजूर मुझे जाने दो गांव में जाकर किसी तरह से जीवन बचा लूंगा और जैसे ही लॉक डाउन खत्म होगा हम फिर से आकर तुम लोगों की सेवा करेंगे तुम्हारे घर भोजन बनाएंगे,झाड़ू पोछा करेंगे,गाड़ी चलाएंगे,दरवानी करेंगे जो कहोगे वही करेंगे।क्योंकि हम गांव में अधिक दिन नहीं रह सकते हैं।वहां भी हमें खाने के लिए क्या मिलेगा हमें तो एक दिन फिर यहां लौट कर आना ही है पर पुलिस ने उनकी एक न सुनी और उन सब को पकड़कर ले जाना चाही।इससे खींझ कर लोगों ने हंगामा शुरू कर दिया पुलिस ने लाठीचार्ज किया और उन सब को पुलिस गाड़ी में ठुंसकर एक विद्यालय में ले जाकर बंद कर दिया।जहां किसी भी प्रकार की सुविधा पहले से नहीं थी 8 घंटे बाद पानी का टैंकर आया और उसके अगले दिन दोपहर में चूड़ा और मीठा खाने को दिया गया। दो दिन से भूखे सभी लोग भोजन पर टूट पड़े।भूखे पेट में चूड़ा खाने से विपत के पेट में दर्द उठा पर वहां कोई सुनने वाला नहीं था। इलाज के अभाव में कुछ देर तड़पने के बाद विपत ने अपने पूरे परिवार को विपत में छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए अपने घर की जगह अनंत यात्रा पर चला गया जहां से फिर लौट कर कभी नहीं आ सकता।

 


      गोपेंद्र कु.सिन्हा गौतम



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