इंसानियत को यूं ना शर्मशार कीजिए ।
जिंदगी मौत से जूझ रही है।
आपसी नफरतों में ,ना इसे शुमार कीजिए।
इंसानियत को यूं ना शर्मसार कीजिए।
कोई धर्म मारता नहीं है जिंदगीयों को ,
ना धर्म के नाम पर यह व्यापार कीजिए।
जिंदगी नहीं दे सकते ,जो तुम किसी इंसान को।
अपने तंग दिमागों की सोच से,
कुछ तो सवाल कीजिए।
क्यों बंट गए लोग अलग-अलग जमातों में जमात बनके ।
अपनी इंसानियत का कुछ तो एहसास कीजिए।
प्रीति शर्मा "असीम"
- किसी भी प्रकार की खबर/रचनाये हमे व्हाट्सप नं0 9335332333 या swaikshikduniya@gmail.com पर सॉफ्टमोड पर भेजें।
- स्वैच्छिक दुनिया समाचार पत्र की प्रति डाक से प्राप्त करने के लिए वार्षिक सदस्यता (शुल्क रु 500/- ) लेकर हमारा सहयोग करें।
- साथ ही अपने जिले से आजीविका के रूप मे स्वैच्छिक दुनिया समाचार प्रतिनिधि, ब्यूरो चीफ, रिपोर्टर के तौर पर कार्य करने हेतु भी हमें 8299881379 पर संपर्क करें।
- कृपया यह ध्यान दे की कोई भी लेख/ समाचार/ काव्य आदि 500 शब्दों से ज्यादा नहीं होना चाहिए अन्यथा मान्य नहीं होगा।
- कृपया अपनी रचना के साथ अपना पूरा विवरण (पूरा पता, संपर्क सूत्र) और एक पास पोर्ट साइज फोटो अवश्य भेजें।