जल, प्रकृति और पर्यावरण
तपती भूमि झूम उठती हैं

जल जो कुछ बूंदें गिराता हैं।

खुश होकर बनती धरा उपजाऊ

किसान अन्‍न उगाता हैं।

 

अन्‍न से बनते हैं तंदरूस्‍त

पशु-पक्षी व सारे जीव।

जीवों को संतुष्‍ट देख

पर्यावरण संतुलित हो जाता हैं।

 

शुरूआत जल से ही तो होती हैं

धरा बिन जल के बंजर होती हैं।

ज्‍यों लगा दिये कुछ पेड़ हमने

प्रकृति खुश होती हैं।

 

देखो! कैसे सूना पड़ा है

पानी का मटका।

तड़प रहे हम, तड़प रहे तुम

बीज भूमि में ही हैं अटका।

 

अब तो बचा लो थोड़ा पानी

भूमि को भी नहाने दो।

प्रकृति रहेगी हरी-भरी

पर्यावरण को मुस्‍कुराने दो।

पर्यावरण को मुस्‍कुराने दो।

 


                वर्षा श्रीवास्तव



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