जितेन्द्र वाल्मीकि के विश्वास को मिली कामयाबी
कानपुर । गोलाघाट नई बस्ती के रहने वाले जितेन्द्र वाल्मीकि  समाज की सेवा करने वाले एक संस्था में छोटे से पद पर कार्य करने वाले, पर यह गीत बिल्कुल सही साबित होती है- "हम होगे कामयाब हम होगे कामयाब एक दिन हो हो मन में है विश्वास पूरा है विश्वास हम  होगे कामयाब एक दिन" क्योंकि संस्था के अधिकारियों ने एक ऐसे पेड़ को हटवाया था जो पेड़ पूरी बिल्डिंग को गिरा सकता था लेकिन संस्था के सभी अधिकारी कर्मचारी कहने लगे कि इस पेड़ को दूसरे स्थान पर नही लगाया जा सकता है लेकिन जितेन्द्र वाल्मीकि को पूर्ण रूप से विश्वास था कि यहां पेड़ जरूर से जरूर लग जायेगा तभी संस्था के प्रधानलिपिक अनिल त्रिवेदी ने कहा कि जितेन्द्र का विश्वास देखकर ऐसे प्रतीक होता है कि उनका विश्वास अटूट है संस्था में किसी और को  याकिन नही हो रहा था सिर्फ प्रधानलिपिक को छोड़कर वाल्मीकि ने मैदान के किनारे एक गहरा गड्ढा खोदा जिसमें उस पेड़ को अक्टूबर के महीने में खाद्य डालकर लगाया हर रोज पानी देना शुरू किया स्टाफ के लोग उनका मजाक उठाते है लेकिन उनको खुद पर भरोसा था वहां इस क्रिया को बराबर करते चले जा रहे थे उस पेड़ में जो पत्ते लगे थे धीरे धीरे सब गिर गये स्टाफ के लोग और जादा हँसी उडाने लगे तभी वाल्मीकि को अपने गुरु जी की बात याद आई कि अगर होस्ले बुलंद हो मन में विश्वास हो तो भगवान भी मिल जाते है यही विश्वास ही एक दिन कामयाबी रंग लाई और वहां पेड़ आज हरा भरा हो गया है जैसे ही वाल्मीकि ने देखा तो उसने अपने संस्था के प्रधानलिपिक को फोन करके जानकारी दी कि हमारी मेहनत हमारा आपका विश्वास रंग लाया है तब त्रिवेदी ने कहा कि तुम्हारा विश्वास तुम्हारी मेहनत रंग लाई है जैसे लोग मन्दिरों में जाते है एक आस्था लेकर कि मन्दिर में भगवान मिलेंगे क्या वहां भगवान मिलते है नही लेकिन आस्था विश्वास वहां है जो लोगों के अन्दर होती है वहां उनको बिगड़े काम  होता जाते है यही आस्था विश्वास कहलाता है ।जैसे आप ने सच्चे मन विश्वास आस्था के साथ वहां पेड़ एक स्थान से दूसरे स्थान पर लगाया था आपको पूर्ण विश्वास था जिसकी सफलता आपको मिली आप एक सच्चे ईमानदार व्यक्ति है जो भी आप ठान लेगे वहां आपको प्राप्त होगा आपके साथ वास्तव में ईश्वर है ।

 

                 



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