मेरी उलझी नींदों में, एक सुन्दर सपना बन जाओ तुम।
कभी साँझ ढले, मेरे मन मंदिर में, प्रीत का दीप जलाओ तुम।।
मेरे नीरस गीतों का, एक साज नया बन जाओ तुम।
अभी ख्वाब हो, आतुर हूँ मैं, मेरे सम्मुख आ जाओ तुम ।।
मेरी उलझी.........
कभी ख्वाब में आते थे तुम, जन्मों से अपना नाता है ।
तेरी चाह में हे प्रियवर, कोई पंक्षी गीत सुनाता है ।।
उस गीत में स्वर भी तेरा है, आलाप हवाएँ लेती हैं ।
जिस ओर तुम मुड़ जाते, मदमस्त दिशाएँ लगती हैं ।।
तेरी पायल की एकमात्र खनक से,मैं तुमसे सम्मोहित हूँ ।
स्वप्नलोक की महारानी तुम, मैं खल कामी अनजान सही हूँ ।।
नैनों में जब से बसी 'प्रिये', निराधार अश्रु धारा बही ।
निःकपट निःछल प्रेम था मेरा, तुम जिससे अंजनान रहीं ।।
ख्वाबों में रहे हो आते तुम, ज्वाला प्रेम की जलती रही ।
तुम मेरे दिल की मूरत रही, मैं रस्ते का पाषाण सही ।।
मैं गीत लिखूँगा एक शर्त है, उनका स्वर बन जाओ तुम।
कृष्ण बनूँगा मैं तेरा, बेशक राधा बन जाओ तुम ।।
मेरी उलझी..................
तेरी नजरो को पढ़कर ही, प्रियवर हम संज्ञान हुए ।
जबसे तुमको देखा है, दुनिया से हम अंजान हुए ।।
मैं राग भैरवी बन जाऊँ, अधरों से मुझको गाना तुम ।
मैं शमा जलाये बैठा हूँ, इक शाम कभी तो आना तुम ।।
जिस उपवन में हम खिले हुए, वो बगिया बन जाओ तुम।
कई रात से जागा हूँ मैं, मेरी तकिया बन जाओ तुम ।।
मेरे दिल की खुशबू बनकर, मेरी साँसों में बस जाओ तुम
मेरी उलझी नींदों में...............
तेरे काँपते होंठों पर, कोई बात अभी भी बाकी है
प्रेम मिलन की हे 'प्रिये', वो रात अभी भी बाँकी है
जबसे तुमको समझा हमने, जज्बात नहीं है काबू मे।
इक राज बता दूँ मैं तुमको, "बारात" अभी भी बाँकी है ।।
तेरे चेहरे का वो भोलापन, वो शर्म हया की लाली है ।
नैंनों की चंचलता तेरी, तूने आफत खुद ही पाली है
तेरे कदम जहाँ पर बिछ जाएँ, हर रोज ईद दिवाली है
तेरे स्वर के जादू से, दिल का हर कोना सज जाता है
तू 'पारस' है जिसको छू ले, वो पत्थर 'सोना' बन जाता है ।
है प्रणय निवेदन मेरा ये, मुझको दिल से अपनाओ तुम
अभी ख्वाब हो, आतुर हूँ मैं, मेरे सम्मुख आ जाओ तुम ।।
"जो लम्हें तकदीर में लिखे ना हों, उन्हीं की आरजू करना 'ख्वाब' है" ---अमर "मस्ताना"
अमर दीप यादव
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