लिखूँ में बस तेरा श्रृंगार
क्यों लिखूँ तेरे ईक्षण का काजल, 

क्यों लिखूँ तेरे बाहों का हार

क्यों लिखूँ तेरे जुल्फों का बादल

क्यों लिखूँ तेरा चार दिन का प्यार

क्यों लिखूँ मैं साकी तेरा श्रृंगार

क्यों लिखूँ मैं साकी तेरा श्रृंगार

 

हूँ अकिंचन दीप शाश्वत मैं ,

जलूँ बनकर मशाल की धार

जीवन माँ भारती तुम्हें समर्पित

जाऊँ मैं बस तुम पर वार

अन्त साँस तक अपने हे माँ

लिखूँ मैं बस तेरा श्रृंगार

अंत साँस तक .......

 

माटी तेरा चन्दन है माँ

भाल पर मेरे रहे सवार

हर कतरा अर्पित रक्षा में तेरी

है अंतर्मन की यही पुकार

अन्त साँस तक अपने हे माँ

लिखूँ मैं बस तेरा श्रृंगार

अंत साँस तक .......

 

तीन रंग का पट तेरा माँ

रहे हमेशा ही गुलजार

नीलगगन में अंत युगों तक

फहराए माँ ध्वजा तिहार

अन्त साँस तक अपने हे माँ

लिखूँ मैं बस तेरा श्रृंगार

अंत साँस तक .......

       


                    नीरज कुमार द्विवेदी



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