धरती माता अब करती है करुण पुकार !
मतलबी मानव ने इस पर किया अत्याचार !!
जिस माँ ने दिये हमें इतने अनमोल उपहार !
निज स्वार्थ में उसी पर हमने चलाई कटार !!
ईश्वर ने अनुपम कृति मनुज को बनाया !
इसी मनुज ने प्रकृति का चीरहरण किया !!
इशारों -इशारों में इसने हमें बहुत समझाया !
बाढ़ भूकंप महामारी का कहर अति बरपाया !!
फिर भी मानव तूं क्यों समझ ना पाया !
अब मानव जाति पर घोर संकट है आया !!
हरे भरे जंगल पेड़ पौधों को काट डाला !
गगनचुंबी सुनहरे पहाड़ भी खोद डाला !!
खनिज दोहन कर सीना मेरा छलनी किया !
इठलाती नदियों का अस्तित्व मिटा दिया !!
स्वार्थ में चूर मानव ना कर अब तूं नादानी !
बची रहने दे मेरे अस्तित्व की धोड़ी निशानी !!
सत्यनारायण शर्मा "सत्य"
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