रामायण सिर्फ धार्मिक आस्था के लिए ही नहीं है अपितु मनुष्य को नैतिक पावन जीवन की ओर ले जाने का एक पवित्र माध्यम है जो यह समझाने में पूर्णतः समर्थ है. जिससे मनुष्य को गुण -अवगुण, दोष व दोष रहित चीजों का भान कराने में मदद करती है. रामायण के वह पात्र जो धर्म का पालन करते हैं वह आदर्श जीवन जीना मानव को सिखाते है .
एक आदर्श पुत्र श्रीराम हैं. पिता की आज्ञा उनके लिये सर्वोपरि है. पति के रूप में राम ने सदैव एकपत्नीव्रत का पालन किया.राजा के रूप में प्रजा के हित के लिये स्वयं के हित को हेय समझते हैं. श्री राम का अद्भुत व विलक्षण व्यक्तित्व है. वे अत्यन्त वीरवान, तेजस्वी, विद्वान, धैर्यशील, जितेन्द्रिय, बुद्धिमान, सुंदर, पराक्रमी, दुष्टों का दमन करने वाले, युद्ध एवं नीतिकुशल, धर्मात्मा, मर्यादापुरुषोत्तम, प्रजावत्सल, शरणागत को शरण देने वाले, सर्वशास्त्रों के ज्ञाता एवं प्रतिभा सम्पन्न हैं.
सीता जो पतिव्रता महान है.सारे वैभव और ऐश्वर्य को त्यागकर वे पति के साथ वन चली जाती हैं. आज ऐसे टूटते रिश्तों को सीता के चरित्र से प्रेरणा लेनी चाहिए जो बस सुख की लालसा रहती है.
रामायण में भातृ-प्रेम का भी उत्कृष्ट उदाहरण हम सभी को देखने को मिलता है जो हमें भ्रात प्रेम में डुबो जाता है.जहाँ बड़े भाई के प्रेम के कारण लक्ष्मण उनके साथ वन चले जाते हैं और वहीं दूसरी तरफ भरत अयोध्या की राज गद्दी पर विराजमान नहीं होते हैं क्योंकि बड़े भाई का अधिकार होने के कारण वह स्वयं न बैठ कर राम के खड़ाऊं को प्रतिष्ठित कर देते हैं.यह चकित, भाई के प्रति परम त्याग व अद्भुत प्रेम को दर्शाता है. आज विश्व में ऐसे ही बंधुत्व की जरुरत है किन्तु दुखद है कि ऐसा आदर्श कोई भी मनुष्य अपनाना नहीं चाह रहा है जिससे एकल परिवार बढ़ता जा रहा है. सिर्फ अपने भविष्य के उज्जवलता के बारे में ही सोचना चाहता है.
कौशल्या एक आदर्श माता हैं. अपने पुत्र राम पर कैकेयी के द्वारा किये गये अन्याय को भूला कर वे कैकेयी के पुत्र भरत पर उतनी ही ममता रखती हैं जितनी कि अपने पुत्र राम पर.यह माता के वात्सल्य की पराकाष्ठा ही है. रामायण के यह पूजनीय अनुकरणीय पात्र हैं जिनसे बहुत ही प्रेरणा समाज ले सकता है. कैकयी के भी हठ का अपना अभिप्राय है हमें यह समझाती है पुत्र मोह में इतना भी नहीं पड़ जाय कि अपनी स्वयं की गलती भी ना दिखे.
हनुमान एक आदर्श भक्त व सेवक हैं, जो राम की सेवा के लिये एक आदर्श सेवक के समान सदैव तत्पर रहते हैं. शक्तिबाण से मूर्छित लक्ष्मण को अपनी सेवाभक्ति के कारण ही संजीवनी बूटी न पहचानने पर पूरा पर्वत ही उठा लाया और लक्ष्मण को प्राणदान मिल जाता है. अतुलनीय बल रहते हुए भी उनको कभी इसका थोड़ा भी भान नहीं था.
त्रिजटा का अद्भुत अनुकरणीय व्यवहार और ज्ञान उसको अन्य राक्षसियो से अलग व सीता के बेहद क़रीब रही. सीता का मार्गदर्शन अशोक वाटिका में करती रही.
सुग्रीव की मित्रता भी हमें मित्रता के धर्म को बखूबी सिखाती है.
कुम्भकरण भी शास्त्रों का प्रकांड विद्वान था उसने रावण को उचित सलाह भी दिया और भाई के फर्ज़ को युद्ध भूमि में युद्ध करके निभाया.
मेघनाथ भी महावीर योद्धा था. वह बहुत से अभिमंत्रित अस्त्र शस्त्रों का स्वामी था. बस दुर्भाग्य ही था उसका कि वह अधर्म के साथ खड़ा था जिसके कारण जीत के पास रहकर भी वीरगति को प्राप्त हुआ.
बड़े वीर ज्ञानी रावण में भी जब दुर्गुण आ जाता है तो किस प्रकार से उसका सर्वस्व धूल की तरह उड़ जाता है. रावण के चरित्र से सीख मिलती है कि अहंकार नाश का कारण होता है.पर स्त्री को सदा माता तुल्य समझना चाहिए. जबकि रावण भी परम विद्वान रहते हुए भी अहंकार के वशीभूत होकर अनैतिक कार्य के कारण उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई. लंका के विनाश में उसके हठ ही था बार बार समझाने पर भी वह सत्य को नहीं समझना चाहता था. अपने गलत निर्णय को सिर्फ अपने मतलब के लिए परामर्शदाताओं से कुतर्क करता था. यही उसके विनाश का कारण बनी. सच है विनाश काले विपरीत बुद्धि.
रामायण के पात्रों से सीख लेकर मनुष्य अपने जीवन को सार्थक बना सकता है.वह जीवन को आदर्श रूप में जी कर समाज देश के हित ही करेगा. दुनिया से ही दुर्गुण समाप्त हो सकता है अगर मनुष्य रामायण से मिले नैतिक व व्यावहारिक मूल्यों को जीवन में आत्मसात कर ले.
सूर्यदीप कुशवाहा
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