वह बहुत ही उल्लास था, क्योंकि वह सोच रहा था कि इस बार रमजान में नया - नया कपड़ा लूंगा। और नये नये खिलौने खरीदने को मिलेगा। पिछली बार तो मेरे घर की मजबूरी की खातिर रमजान तो अच्छा से नहीं गया। इस बार तो बहुत ही धूमधाम से रमजान मनाऊंगा। और दो चार रमजान का रोजा भी रख लूंगा। ये सब बोलने के बाद हमीद खेलने कूदने लगता है। और जब खेल खेलकर थक जाता है तो नानी के पास जाकर नानी की गोद में बैठ जाता है। और जब नानी कुछ नहीं बोलती है। तो हमीद नानी को कहता है आप इतना हताश क्यों हैं। आप कुछ क्यों नहीं बोल रहे हैं। क्या बात है। बताईये ना नानी हमसे क्यों छूपा रही है। और मासूम हमीद बहुत जिद्द करने लगता है। तब जाकर नानी बोलती है। हमीद बेटा इस बार भी हमसब को रमजान अच्छा से नहीं गुजरेगा। क्यों ऐसी अब क्या परेशानी आ गयी। वो सब छोड़ो बेटा तुम बताओ इतना खुश क्यों हो? अरे नानी मैं तो खुश इसलिए हूँ। रमजान का ज्यादा दिन भी नहीं है। इससे पिछला रमजान अच्छा से नहीं गुजरा था। मैं सोचा कि इस बार बंदूक, सिपाही, गेंद बल्ला, चश्मा, और नया कपड़ा लूंगा। क्या इस बार भी खिलौना नहीं मिलेगा। ये सब कहने बाद हमीद सो जाता है। और हमीद की नानी भी सो जाती है। हमीद के सपने में परी आती है। हमीद से बोलती है हमीद से बात करने लगती है इस बार खिलौना मैं तुमको दूंगी। क्यों अपनी नानी से पैसे लेकर खुद से ले लूंगा। आपकी कोई जरुरत नहीं है। हमीद परी को ये बात कहता है। तो परी रानी बोलती है मेरी बात को समझने की कोशिश करो हमीद। ऐसे में अब सुबह होती है। और हमीद अपने बिस्तर से उठकर व्यायाम करने लगता है। अभी हमीद आठ साल का बच्चा है। और अव्यस्क बच्चा तो देखने से तो बहुत ही शरारती होता है। इधर - उधर घूमना बड़ों से जिद्द करना उसके अंदर था। हमीद व्यायाम करके मुँह हाथ धोने चला जाता है। और जब हमीद तीन साल का था तो उनकी माँ इस दुनिया से गुजर जाती है। और हमीद के पिता की कार एक्सीडेंट में मौत हो जाती है। अब हमीद लावारिस बनकर रह जाता है। तो हमीद की नानी अपने पास रखकर हमीद को देखभाल करने लगती है। और इधर भी हमीद की नानी अकेले ही रहती है। लेकिन हमीद को ये सब बिल्कुल ही पता नहीं है। वो सोचता है मेरी माँ इस दुनिया में ही है। सिर्फ वो छोड़कर कहीं चली गयी है। और पिता कमाने के लिए शहर गए हुए हैं। वो कमाकर हमसब को पैसे भेज देते हैं। किंतु हमीद की मासूमियत को देखकर नानी अपने गम को भूल जाती है। लेकिन हमीद की नानी के घर में भी कोई कमाने वाला नहीं रहता है। हमीद को तीन टाइम का खाना मिल जाता है तो हमीद को एहसास तक भी नहीं होता है। और हमीद ये जानने की कोशिश भी नहीं करता है। कि जो खाना तीन टाइम नसीब होता है। वो खाना कहाँ से आता है और कौन देता है। और हमीद की नानी भी नहीं बताती है। अब हमीद नाश्ता करने को बैठता है। और नानी को बोलता है नानी हमसब ईद खुशी से मनाएंगे न। तो हमीद की नानी बोलती हाँ बेटा हमसब ईद बहुत ही उल्लास के साथ मनाएंगे। किंतु नानी सोचती है काश मेरी बात सच साबित हो। मैं हमीद को तो दिलासा दिया है। और जब ईद के दिन हमीद मुझसे पैसा मांगा तो मैं कहाँ से लाकर दूंगी। जब ये सब हमीद सुनता है तो और भी खुश हो जाता है। और ईद तो असल बच्चों की होती है। जितनी खुशी बच्चों को मिलती है। और बच्चे की खुशी को देखकर बड़े भी खुश हो जाते हैं। और ईस्लामिक धर्म में रमजान साल में एक बार आता है। और रमजान में सभी लोग तीस रोजे रखते हैं। तीस रोजे को रखकर एक दिन ईद मनायी जाती है। उस दिन चहुँओर सभी लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं। और सौहार्द के रिश्ते तो और भी मजबूत होते हैं। एक दूसरे की गलती को क्षमा कर देते हैं। जब ये खुशी किसी लावारिस बच्चे को नहीं मिलेगी। तो उसके दिलों पर क्या गुजरेगा। ये तो सिर्फ ईश्वर ही जानते हैं। कभी कबाड़ अपने समाज में गरीब बच्चे ईद नहीं मनाते है। क्योंकि उनके पास बहुत मजबूरी रहती है। और ईद के मौके पर कोई भी उन बच्चे से अमीर लोग नहीं पूछते हैं। क्या तुम ईद नहीं मनाओगे। यही परेशानी हमीद के साथ रहती है। क्योंकि हमीद बहुत ही गरीब परिवार का बच्चा है। और हमीद कभी अपने माता - पिता के साथ ईद नहीं मनाया है। पिछली बार तो ईद के मौके पर हमीद की नानी की बहुत जोड़ तबीयत खराब थी। तबीयत खराब होने की वजह से घर के सारे पैसे इलाज में लग गए थे। हमीद उस दिन बहुत ही हताश था। उसके घर के अगल - बगल के बच्चे तो ईद के दिन हमीद को बोला था। हमीद मेरे पास देखो प्लास्टिक का हाथी, सिपाही, घोड़ा, गेंद, फुटबॉल, आदि खिलौने है। तुम्हारे पास क्या है। हमीद ये देखने बाद तो और भी गम होता है। हमीद अपने ईश्वर से कहता है। ऐ मेरे परवरदिगार क्या मेरी खुशी को आप क्यों छीन लिए। क्या मुझे हक नहीं है ईद मनाने की। हमीद अपनी मजबूरी को देखते हुए पूराने कपड़े को पहन लेता है। उसके दोस्त ईद के दिन जब हमीद को ईदगाह पर देखता है। तो परिहास करने लगता है। हमीद उसकी बातों में नहीं आता है वो सोचता है मेरे घर में कितनी मजबूरी थी। अगर मैं चाहता तो मेरी नानी मुझे नये कपड़े दिला देती। और बच्चों के साथ - साथ बड़े लोग भी हँसने लगते हैं। लेकिन किसी को ये तक भी नहीं होता है कि हमीद को कुछ मदद कर दूं। सभी लोग हमीद की मजबूरी को देखकर उसका मजाक उड़ाने लगता है। ऐ हमीद तुम्हारी भी ईद है क्या? न तुम नये कपड़े पहने हो और न ही तुम्हारे पास कोई पैसा है। हमीद आठ साल का बच्चा उनकी बातों को समझ नहीं पाता है। वो क्या कहना चाहते हैं। और वो ईद की नमाज़ पढ़कर घर आ जाता है। और अपनी नानी को हमीद बोलता है नानी मुझे कुछ लोग ईदगाह पर देखकर मजाक उड़ा रहे थे। मेरा दोस्त भी और उनके पिता भी परिहास कर रहे थे क्यों? तो हमीद की नानी शायद बेटा तुम्हारे पूराने कपड़े को देखकर मजाक उड़ाया होगा। नानी कपड़ा तो पूराना है लेकिन कपड़ा नया हो या पूराना इससे कोई मतलब नहीं है। कपड़ा तो साफ होना चाहिए। मैं कपड़ा तो साफ पहनकर ईदगाह पर गया था। नहीं बेटा आदमी लोग वो नहीं देखते हैं। लोग तो कौन क्या पहनकर आया है वो देखते हैं। और हमीद की पिछली ईद किसी भी तरह तो गुजर ही गयी। और हमीद नानी को कहने लगता है मैं भी इस बार नये कपड़े पहनकर जाऊंगा। तब तो मेरा दोस्त भी इस बार की ईद में मजाक नहीं उड़ाएगा। मैं भी नये खिलौने खरीदूंगा। किंतु हमीद की नानी तो बहुत दिलासा देती है। हाँ हमीद तुम जरुर नये खिलौने को खरीदोगे। और नये कपड़े पहनकर ईद पर जाओगे। परंतु हमीद की नानी के पास तो पिछली बार की तरह इस बार भी नई मुसीबत है। उनके पास तो इस बार भी पैसे का अभाव है। मेरा बेटा तो पैसे कमाने के लिए शहर तो गया है। लेकिन वहाँ अभी काम बंद है। जो भी पैसे भेजता था उससे तो किसी भी तरह गुजर कर ही लेती हूँ। इस बार तो वह भी भेजने को तैयार नहीं है। क्योंकि जब उसकी कमाई ही नहीं हुई है। वह क्या भेजेगा उसका जाना भी ज्यादा दिन नहीं हुआ। वह पहले अपनी पूर्ति करेगा तब ना घर भेजेगा। इससे पहले की हमीद को यह बात पता चले। मुझे कह देनी चाहिए। कि उसका माता पिता बल्कि जो तुम्हारे खर्च उठा रहा वो तुम्हारे पिता नहीं मामा जी है। हमीद की नानी की आँख नम हो जाती है। जब हमीद घर पर आता है, तो उनकी नानी बोलती है तुम मेरी गोद में बैठ जाओ। तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ। हमीद हमसब को तीन टाइम का खाना जो मिलता है। वह खाना तुम्हारे पिता नहीं तुम्हारे मामा देता है। जब तुम तीन साल का था। तो तुम्हारी माँ का इंतकाल हो गया। और चार महीने के बाद तुम्हारे पिता की भी कार एक्सीडेंट मौत हो गयी। तुम अपने दादी गाँव में लावारिस बनकर रह गया। तुम्हारे दादा जी वो हमको पालन पोषण की जिम्मेदारी सौंप दिए। तब से ही तुम मेरे पास रहते हो। ये सब सुनने के बाद हमीद जोड़ जोड़ से रोने लगता है। क्या नानी आपने मुझसे ये बात क्यों छुपायी। बेटा तुम को ये सब बताना मैं उचित नहीं समझती थी। लेकिन तुम मेरे बेटे की तरह हो। तब हमीद बोलता है नानी क्या हमसब इस घर में दो ही लोग रहते हैं। नहीं बेटा मेरा एक बेटा भी है। वह इस गाँव में नहीं रहता है वह बहुत दिनों से परिवार सहित शहर में रहता है। कभी कबाड़ वह पैसा भेज देता है। उसी पैसे से तुम्हें पढ़ाती हूँ। और थोड़े पैसे में ही गुजर बसर कर लेती हूँ। लेकिन हमीद बेटा तुम्हारे मामा जी का आज फोन आया था। और वह बोल रहा था। इस बार मेरी कमाई नहीं हुई है। आपलोगों को पैसे नहीं भेज रहा हूँ। तब हमीद पूछता है क्यों नानी मामा जी तो शहर में खूब कमाते होंगे। फिर क्यों पैसे भेजने से इंकार कर रहे हैं। अरे हमीद बेटा इस वक्त पूरी दुनिया में भयावह बीमारी आयी हुई है। जिसकी वजह से पूरी फैक्ट्री सब भी बंद हो गयी है। और लोग बेरोजगार बन गए हैं। इसी वजह से तुम्हारे मामा जी की भी नौकरी चली गयी है। फिर हमीद बोलता है नानी हमसब कैसे मनाएंगे ईद। नानी हमीद को दिलासा देती है। हमीद बेटा ईद हमसब अवश्य मनाएंगे। जब तक ईद आयेगी। उससे पहले ही ईश्वर अल्लाह इस भीषण महामारी कोरोना से निजात दिला देंगे। अभी हमसब को धैर्य बनाने की जरुरत है। और ईश्वर अल्लाह से दुआ करो इस बीमारी से छूटकारा दिला दें। तुम बहुत मासूम हो और तुम्हारी दुआ परवरदिगार तक जरुर पहुँचेगी। और तुम्हारी दुआ को परवरदिगार सर्वप्रिय करेंगे। तुम दुआ करो, सब ठीक हो जायेगा।
मो. जमील
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