कोविड-19 का कहर अब भी जारी है। दुनिया आज भी इस भीषण महामारी के ताण्डव से त्राहि-त्राहि कर रही है। विष्व की उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देश भी अपने हाथ खड़े कर लिए हैं। अमेरिका,इटली फ्रांस,जापान,ईरान,इजराइल आदि देश भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा की आपूर्ति हो रही है। दुनिया के बीस लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित हैं तथा लगभग डेढ़ लाख लोग अपने जीवन से हाथ धो बैठे हैं। वैज्ञानिक इसके वैक्सीन की खोज में लगे हैं,परंतु अभी तक निश्चित कामयाबी नहीं मिली है।
भारत भी इस महामारी से अछूता नहीं है। यहाँ भी संक्रमित मरीजों की संख्या निरंतर बढ़ रही है तथा तीन सौ से अधिक व्यक्ति को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। भारत सरकार ने समय रहते जनता कर्फ्यू तथा लॉकडाउन जैसी गतिविधियों के माध्यम से इस पर नियंत्रण करने की कोशिश की है।राज्य सरकारों ने भी अपने-अपने स्तर से सराहनीय कार्य किया है। हमारे डॉक्टर्स, नर्सें,स्वास्थ्य कर्मचारी,सफाई कर्मचारी,पुलिस प्रशासन तथा अन्य सम्बंधित लोग दिन-रात एक कर सेवा कार्य में जुटे हुए हैं। लॉकडाउन का पहला चरण 25 मार्च से 14 अप्रैल तक इक्कीस दिनों का था। इसमें संक्रमित व्यक्तियों की पहचान कर उन्हें अस्पताल भेजा गया। उनके सम्पर्क में आने वालों कि क्वाइंटाइन किया गया और विभिन्न प्रकार की हिदायतें दी गईं और लोगों से अपील की गई कि वे अपने घरों में रहकर इस भयंकर महामारी से लड़ने में सहयोग करें। सफाई का ध्यान रखें। सोशल दिस्टेंशिंग का ध्यान रखें आदि-आदि। परंतु दुख का विषय है कि कुछ लोग सरकारों की अपील पर ध्यान न देकर इस लड़ाई को कमजोर कर रहे हैं। स्वयं प्रधान मंत्री ने हाथ जोड़कर इस लड़ाई में एक जुट होकर सहयोग करने का निवेदन किया था। कुछ लोग अपनी बीमारी को छुपाकर दूसरों में महामारी बाँट रहे हैं तो कुछ स्वास्थ्य कर्मियों तथा पुलिस पर आक्रमण कर इस लड़ाई को कमजोर कर रहे हैं। इसी का परिणाम है कि लॉकडाउन को बढ़ाकर तीन मई तक कर दिया गया है। कुछ स्थानों को हॉट स्पॉट घोषित कर कड़ाई की जा रही है। बाजार,मॉल,आवागमन,स्कूल-कॉलेज, सब बंद कर दिए गए हैं। मिल-फैक्टरियाँ,कार्यालयसभी पर ताले पड़े हैं। सिर्फ इसलिए कि नागरिकों की जीवन रक्षा सर्वोपरि है। देश में आपातकाल की स्थिति है। अर्थव्यवस्था रसातल को जा रही है। धंधे बंद होने से भुखमरी की स्थिति पैदा हो रही है।नौकरियों में कटौती हो गई है। उद्योग बेहाल है। कुल मिलाकर स्थिति बड़ी भयावह है। सबसे बड़ी मार निम्न तथा मध्यम आय वर्ग के लोगों पर पड़ी है।सरकारें सहयोग तो कर रही हैं। आर्थिक पैकेज उपलब्ध कराया जा रहा है। राहत सामग्री बाँटी जा रही है।गरीबों तथा लाचारों को खाद्य सामग्री दी जा रही है। परंतु अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है।
तीन मई को लॉकडाउन पूरी तरह से समाप्त होगा या कुछ शर्तों के साथ छूट मिलेगी,अभी इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी। वैसे मैं कोई अर्थशास्त्री नहीं हूँ कि सरकारों को कुछ बता सकूँ। फिर भी एक नागरिक होने के नाते अपने विचार रखने का प्रयास कर रहा हूँ। सरकारों को एक साथ कई मोर्चों पर एक साथ काम करना पड़ेगा। बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए सार्थक रणनीति बनानी होगी। देश के अर्थशास्त्रियों के साथ मिल बैठकर ठोस योजनाओं पर काम करना होगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने आज ही कुछ घोषणाएं की है,,जिससे एक नई उम्मीद जगी है। इस विशाल जनसंख्या वाले देश में गरीबी,भुखमरी आदि समस्याओं से निपटने के लिए युद्ध स्तर पर तैयारी तथा ईमानदारी एवं निष्ठा से कार्यांवयन की आवश्यकता है। उद्योगों को फिर से खड़ा करने के लिए विशेष राहत की आवश्यकता है। मजदूरों तथा कामगारों में फिर से भरोसा जगाना पड़ेगा ताकि वे फिर काम पर लौटें। उन्हें कुछ वित्तीय सहायता की जरूरत पड़ेगी,जिससे वे कुछ दिन निर्वाह कर सकें। दिहाड़ी मजदूरों,रेहड़ी-पटरी दुकानदारों को भी अपना काम फिर से खड़ा करने के लिए वित्तीय सहायता करनी होगी। किसानों को उनकी फसल का उचित दाम मिले तथा समय पर खाद्यान्नों की खरीद हो, सरकारों को इसकी व्यवस्था करनी होगी।समाज के सभी वर्गों को ध्यान में रखकर योजनाएं संचालित करनी होंगी। सबसे आवश्यक है कि सभी स्तरों पर बेहतर समंवय स्थापित हो।सरकारों को इससे भी अधिक श्रम करने की आवश्यकता होगी,जिससे जीवन धीरे-धीरे ही सही फिर से अपनी गति पकड़ सके। किसी के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है कि पलक झपकते सब कुछ ठीक हो जाएगा। परंतु यह संकट की घड़ी है। सरकारें अपने हिस्से का काम कर रही हैं। हम देशवासियों को भी अपने हिस्से का काम करना होगा। तथी देश को इस गम्भीर संकट से उबारा जा सकता है।
फूलचंद्र विश्वकर्मा
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