तन 

मत कर तन का घमंड 
ये तन तो नश्वर है 
हंसखेल कर पूरी करले जीवन यात्रा 
इस तन को एक दिन मिट्टी में मिल जाना है |


मत भटक दर-दर 
मिलना और बिछुड़ना 
सृष्टि का यही नियम है |


आत्मा सुखमय तो सारा जग सुखमय 
सुख-दु:ख दिन रात का खेल 
सुख बाहर नहीं, 
छिपा बैठा है स्वयं के ही भीतर |


इच्छाओं को कर सीमित 
तेरा रोम-रोम खिल जायेगा 
जीवन पथ जगमग रोशन हो जायेगा |


मत मन को दूषित होने देना 
बड़े भाग्य से मिला ये मानव तन 
कर उपकार, सेवा इससे करना 
मृत्यु निश्चित, मृत्यु से मत ड़रना |


 मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 



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