वैसाखी
झूमती गाती आई वैसाखी, फसलों की बहार लाई वैसाखी ।

लहराए खेतों में सोना, जिसे देख किसान के मन का महके कोना -कोना ।

धानी चुनर में जैसे मोती सजे, ढोल - ताशे और बाजे बजे ।

वीणा सा झंकृत हो मन बार-बार, किसान की आंखों में सपने सजे हज़ार ।

साजन लाया सोने का हार, क्यों ना पहनाऊं उसे बांहों के हार ।

गुरु गोविंद सिंह जी ने धार्मिक पंथ की कर स्थापना मनाई वैसाखी ।

गंगा भी इसी दिन हुई अवतरित, गंगा स्नान कराएं वैसाखी ।

सब  के लिए नया सम्मत, नया  साल लाए  वैसाखी , ना कोई 

हिन्दु, ना मुस्लिम, ना सिख, ना ईसाई , सबको एक बनाए वैसाखी ।

सुरज  करें प्रवेश मेष राशि में इसलिए मेष - संक्रांति भी कहाए  वैसाखी।

 


                            प्रेम बजाज



  • किसी भी प्रकार की खबर/रचनाये हमे व्हाट्सप नं0 9335332333 या swaikshikduniya@gmail.com पर सॉफ्टमोड पर भेजें

  • स्वैच्छिक दुनिया समाचार पत्र की प्रति डाक से प्राप्त करने के लिए वार्षिक सदस्यता (शुल्क रु 500/- ) लेकर हमारा सहयोग करें

  • साथ ही अपने जिले से आजीविका के रूप मे स्वैच्छिक दुनिया समाचार प्रतिनिधिब्यूरो चीफरिपोर्टर के तौर पर कार्य करने हेतु भी हमें 8299881379 पर संपर्क करें।

  • कृपया यह ध्यान दे की कोई भी लेख/ समाचार/ काव्य आदि 500 शब्दों से ज्यादा नहीं होना चाहिए अन्यथा मान्य नहीं होगा

  • कृपया अपनी रचना के साथ अपना पूरा विवरण (पूरा पता, संपर्क सूत्र) और एक पास पोर्ट साइज फोटो अवश्य भेजें।