झूमती गाती आई वैसाखी, फसलों की बहार लाई वैसाखी ।
लहराए खेतों में सोना, जिसे देख किसान के मन का महके कोना -कोना ।
धानी चुनर में जैसे मोती सजे, ढोल - ताशे और बाजे बजे ।
वीणा सा झंकृत हो मन बार-बार, किसान की आंखों में सपने सजे हज़ार ।
साजन लाया सोने का हार, क्यों ना पहनाऊं उसे बांहों के हार ।
गुरु गोविंद सिंह जी ने धार्मिक पंथ की कर स्थापना मनाई वैसाखी ।
गंगा भी इसी दिन हुई अवतरित, गंगा स्नान कराएं वैसाखी ।
सब के लिए नया सम्मत, नया साल लाए वैसाखी , ना कोई
हिन्दु, ना मुस्लिम, ना सिख, ना ईसाई , सबको एक बनाए वैसाखी ।
सुरज करें प्रवेश मेष राशि में इसलिए मेष - संक्रांति भी कहाए वैसाखी।
प्रेम बजाज
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