सूक्ष्मता की तीव्रता बड़े संकट को आजाब दे सकती है सूक्ष्मता को दरकिनार करना बुद्धिमानों का काम नहीं होता। अब कोरोना का ही जिक्र करें तो इसकी सूक्ष्मता को कमतर आंकना कितनी बड़ी त्रासदी को जन्म दे गया । मानव प्रकृति से खिलवाड़ कर स्वयं के लिये संकट उत्पन्न करता है वैसे प्रकृति को भी राहत मिल गई होगी पशु-पक्षी भी चहचहाने लगे हैं नदियाँ भी कुछ हद तक साफ हैं क्योंकि बहती जलधाराओं में जहर बहाने वाले कारखाने बंद जो हैं खैर जो भी हुआ मानव को अपने किये पर पछतावा है उम्मीद है अब कई प्रकृति-जनमानस अनुकूल रणनीतियाँ बनायी जायेंगी जिससे संसार की फिर से ऐसी दुर्दशा ना हो जैसा कि सभी को पता है भारत में १४ अप्रैल तक लॉकडाउन था जिसे बढ़ा कर ३ मई कर दिया गया । लॉकडाउन की समयसीमा बढ़ाने से जो बहुमूल्य समय मिला है उसमें निश्चित ही सुधार करके नई रणनीतियाँ अपनायी जानी चाहिये
*रणनीतियाँ* :: हमें लॉकडाउन 2.0 में हर कदम पर इनोवेटिव तरीके अपनाने होंगे ।
घर बैठे जाँच के विकल्प के रूप में आरोग्य सेतु एप का इस्तेमाल करवाया जाना तकनीकी रूप में उपयुक्त विकल्प है
व्यापक रूप से अधिक से अधिक टेस्ट अर्थात जांच की व्यवस्था करना ।
स्वास्थ्यकर्मियों को नुकसान न पहुंचे, अधिक से अधिक सुरक्षा-उपकरण मुहैया कराना और मरीजों की बढती संख्यानुसार अस्पतालों की व्यवस्था ।
कौन संक्रमित है या हो सकता है या कौन अब पूरी तरह स्वस्थ हो चुका है इसका रिकार्ड चेक करते रहना ।
लोगों को एकजुटता से नियमों का पालन करने हेतु प्रेरित करते रहना ।
जरूरत के हिसाब से रणनीतियों में सुधार करते रहना होगा ।
*आवश्यक रणनीति* : किसी गरीब को इस बीमारी से जूझते नहीं देखा।वास्तव में बीमारी लेकर आये हवाईजहाज वाले और भुगतना पैदल चलने वालों को पड़ रहा। करोड़ो लोग भूख से तड़प रहे मेरी सरकार से विनम्र विनती है कि गरीब एवं मजदूर वर्ग का विशेष ख्याल रखते हुए जो भी योजनाएं चल रही हैं क्या उसका लाभ गरीबों को मिल रहा है या नहीं, जाँच कमेटी बनाई जाये क्योंकि गरीब कोरोना से मरे न मरे भूख से अवश्य मर जायेगा ।
रबी की फसल कटाई के इंतजार में खेतों में खड़ी है जैसे-जैसे सूर्य का ताप बढ़ेगा, गेहूं बालियों के झुलसने की आशंका है इसलिये इसे ध्यान में रखकर नियमों में छूट दी जा सकती है बात यहीं खत्म नहीं होती फसल को मंडियों तक पहुँचाकर किसान वर्ग को उचित दाम भी दिलाना होगा ।
लंबे समय तक कल-कारखाने और लघु उद्योगों को भी बंदिशों में रखना देश की बड़ी आबादी के साथ अर्थव्यवस्था के लिए घातक होगा अतः सोशल डिस्टेंस्टिंग के नियमों का पालन करते हुए कम से कम एक शिफ्ट तो चलाया ही जाए क्योंकि मुफ्त भोजन रोजगार का विकल्प नहीं ।
मेडिकल जाँच के बाद प्रवासी मजदूरों के गैर-संक्रमित इलाकों में आने-जाने की विशेष व्यवस्था की जानी चाहिये
*शैक्षिक रणनीति* : समय का सदुपयोग करते हुए हमें इंटरनेट का सहारा लेना चाहिये इंटरनेट पर तमाम ऐसे कोर्स हैं जिन्हें कम समय में घर बैठे सीखा जा सकता है तथा समय का सदुपयोग रचनात्मक कार्यों में भी कर सकते हैं कविता कहानी पढ़ने के साथ साथ लिखने का भी प्रयास करना चाहिये ।
*कानून का डंडा* : प्रशासन की आँखो में धूल झोंकने वालों पर, जातिवाद, सम्प्रदायिकता पर भड़़काऊ भाषण दिये जाने वालों पर कानून का डंडा चलना चाहिए
अपने स्वार्थ के लिये सभी के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वालों को मानवता की रक्षा हेतु कतई बख्शा नहीं जाना चाहिये
राष्ट्रीयता का परिचय देते हुए सभी समाजसेवी पार्टियाँ सत्ता का लालच छोड़कर कोरोना पर राजनीति करना बंद करें और मानवता का परिचय देते हुए देश को संकट से उबारें क्योंकि यह समय हिंसा का नहीं, मानवता की रक्षा का है महात्मा गाँधी जी ने अपनी पुस्तक यंग इंडिया में लिखा है "हिंसा का सहारा वही लोग लेते हैं जो असत्य को स्थापित करना चाहते हो"
दुनिया में ऐसा कोई कार्य नहीं है, जिसे इंसान न कर सके। दिल में काम के प्रति जुनून और लगन होनी चाहिये उन सभी वातायनों और खिड़कियों को बंद कर दें, जिनसे आने वाली गंदी हवा इंसान को इंसान नहीं रहने देती जरूरत है हम दर्पण जैसा जीवन जीना सीखे। संकट के समय में खुद रोशनी बनें और दूसरों को भी प्रकाशित करें ।
"विजेता संकट के समय में संयम नहीं खोते" यह उक्ति इस समय देश के राजा पर चरितार्थ होती है
सोंच- मातृभूमि के लिये किया गया कार्य किसी व्यक्ति विशेष के लिये नहीं होता है वो सिर्फ मातृभूमि के लिए होता है
अमरदीप यादव
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