पेट की भूख ने जिंदगी के, हर एक रंग दिखा दिए, जो अपना बोझ उठा ना पाये, पेट की भूख ने पत्थर उठवा दिए…..
सहस: ही इन लाइनों में सच्चाई की झलक दिखाई देती है जो कोरोना महामारी के समय वर्तमान भारत की स्तिथि को दर्शाती हैं, हमारे देश में हर रोज़ ना जाने कितना खाना फेंका जाता है, ना जाने कितना अनाज सड़ जाता है, किन्तु दुर्भाग्य देखिये कि वह किसी गरीब तक नहीं पहुँच पाता। हमारे देश में ना जाने कितने लोग रोज़ भूखे ही सो जाते हैं और कुछ तो भूखे ही दुनिया छोड़ जाते हैं बड़े बड़े सपने दिखाने वाले नेता वोट बैंक की राजनीति करने वाले चाटुकार सब अपने घरों में चैन की सांस ले रहे और गरीब जनता भूखों मर रही है इन्हें सिर्फ गरीब जनता का खून चूसना आता है क्या भूख और बेरोजगारी के आगे सारे नेता बौने हो गये?
कोरोना वायरस ने रोजी-रोटी का संकट बढ़ा दिया रोजगार के रास्ते खत्म हो गये कोरोना महामारी से बचाव को लागू लॉकडाउन में रोज-कमाने खाने वाले मजदूर परेशान हैं। रोजी-रोटी के जुगाड़ में जो लोग दूसरे प्रदेशों में गए थे, अब घर लौट आए हैं और रोजगार की बाट जोह रहे हैं। अकुशल मजदूर हों या कुशल के साथ अन्य श्रेणी के मजदूर सबकी स्थिति खराब है। गांव लौटे प्रवासी मजदूरों को अब लॉकडाउन खुलने का इंतजार है। गरीब, मजदूर व मध्यम वर्गीय परिवारों की आर्थिक स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। सरकार मनरेगा के कामों में प्रवासी मजदूरों को जोडऩे की कवायद कर रही है, लेकिन बात बनती नहीं दिख रही है। मजदूरों के सामने परिवार के भरण पोषण का संकट उत्पन्न होते जा रहा है।
कोरोना वायरस ने जितनी बुरी तरह से दुनिया को अपने शिकंजे में जकड़ा है उससे जल्द छुटकारा पाना कठिन लगता है। वहीं दूसरी तरफ इसकी वजह से हुए लॉकडाउन ने देशों की आर्थिक कमर तोड़ दी है। इसमें सबसे अधिक नुकसान उन गरीब लोगों को हो रहा है जिनके दिन की शुरुआत ही रोजी-रोटी की तलाश से होती थी। इस संबंध में सामने आई संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और क्राइसिस थ्रू ए माइग्रेशन लेंस की रिपोर्ट में इस बात का साफतौर पर जिक्र किया गया है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन की वजह से पूरी दुनिया में रिटेल और मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े कई कारोबार बंद होने की कगार पर खड़े हैं। इसकी वजह से दुनियाभर में 1.6 अरब श्रमिकों कीरोजी-रोटी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक पूरी दुनिया में करीब 330 करोड़ कामगार हैं जो इस तरह के छोटे बड़े उद्यमों से जुड़े हुए हैं।
यह महामारी दबी दबी घुटन का एहसास दिला रही है, किसी माँ के बेटे की सांसें उखड़ी जा रहीं हैं किसी को चार दिनों से रोटी नसीब नहीं हुई तो किसी की अंतड़ियां सूखी जा रहीं हैं
द्रौपदी लाई थी दो दाने कृष्ण के लिये, जो उन्हें संतुष्टि दिला गये, क्योंकि वो भगवान थे.... नेताओं को भगवान समझा था गरीबों ने लेकिन कईयों ने अपने असली रूप उजागर कर दिए ऐसी महामारी में तुमसे ये उम्मीद ना थी, महामारी ने सबकी पोल खोल के रख दी, मधुशालायें खुल सकती हैं तो रोजगार के अवसर क्यूँ नहीं ? सवाल हजारों हैं पर जवाब कुछ भी नहीं !
एक गरीब जाते जाते कह गया
जिस्म तो भूखा मर ही गया,
मेरी रूह को ही खिला देना
भटक ना पाए भूखा कोई
"मस्ताना" ये जीवन दांव पे लगा देना
अमरदीप यादव
कानपुर उत्तरप्रदेश